"जैसे
बचपन में पहाड़े याद किये थे।'' स्वामी जी ने अपने झोले में
हाथ डाला और सूर्य उपासना का एक कैसेट उसे भेंट किया और
बोले आरोग्य प्राप्ति के लिए सूर्य की उपासना करनी चाहिए—
एकचक्रो रथे यस्य दिव्य कनकभूषित।
स मे भवतु सुप्रीत पद्महस्तो दिवाकर।
शील और हरदयाल बहुत प्रसन्न हुए कि शीनी ने स्वामी जी से
अँगूठी ले ली। उन्हें विश्वास हो गया कि अब ईश्वर उसे
सद्बुद्धि प्रदान करेंगे।
तभी स्वामी जी का मोबाइल बज उठा। वह उसे एक हाथ से कान तक
ले गये और दूसरे हाथ से अपना मुँह ढाँप कर बतियाने लगे।
उनकी भारी आवाज न जाने कहाँ विलीन हो गयी। सब लोग हैरान थे
कि स्वामी जी बात कर रहे हैं मगर उनकी आवाज किसी को सुनाई
नहीं दे रही। बात समाप्त करने के बाद उन्होंने फोन अपने
झोले में डालते हुए कहा— "आपके सांसद जिम कपलैण्ड दस
पंद्रह मिनट में पहुँच रहे हैं।''
अबरोल को लगा कि जिम के आने पर बाबा व्यस्त हो जाएँगे और
शायद वह भी व्यस्त हो जाए। उसने बगैर और समय गँवाए स्वामी
जी के चरणों पर शीश नवा दिया और बोला "स्वामी जी मेरा यहाँ
छोटा मोटा करोबार है। आपका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता
हूँ।''
स्वामी जी काफी समय से उस पर नजर रखे थे। उन्हें समझते देर
न लगी थी कि यह कोई चलता पुर्जा आदमी है। उन्होंने मंद मंद
मुस्कराते हुए जवाब दिया "बच्चा छोटा मोटा नहीं अच्छा खासा
कारोबार है यहाँ तुम्हारा। माँस मदिरा को सेवन छोड दोगे तो
और तरक्की करोगे।''
"स्वामी जी मैं न माँस खाता हूँ न मदिरा छूता हूँ। इस शहर
में मेरा एकमात्र ऐसा होटल है जहाँ गोमांस का प्रवेश
वर्जित है।''
"यही तुम्हारी तरक्की का राज है। गोमांस भक्षण के खिलाफ
आंदोलन चलाओगे तो और तरक्की करोगे।'' स्वामी जी ने अबरोल
की बात को आधार बना कर अपना प्रवचन प्ररम्भ किया "हमारे
पूर्वजों ने अकारण ही गऊ को माता का दर्जा नहीं दिया।
हमारे शास्त्रों में गोमाता की महिमा का विशाल वर्णन मिलता
है। वस्तुतः गाय के पृष्ठ भाग में ब्रह्मा, गले में विष्णु
और मुख में रुद्र का वास होता है। गाय के गोबर में आठ
ऐश्वर्यों से युक्त लक्ष्मी का वास होता है।''
श्रोताओं में अधिसंख्य ऐसे लोग थे जो स्वयं तो शाकाहारी थे
मगर जिनकी संतानों को गोमांस से परहेज न रह गया था। स्वामी
जी श्रोताओं के चेहरों का पाठ पढ़ना जान चुके थे। उन्हें
समझते देर न लगी कि लोगों की रुचि इस विषय में नहीं है।
उन्होंने मंदिर निर्माण का मुद्दा उठाया उस पर भी लोग
उदासीन रहे। अब तक कई साधु संन्यासी और महात्मा और तरह तरह
की परिषदों के पदाधिकारी कई बार मंदिर निर्माण के नाम पर
चंदा उगाह कर ले जा चुके थे। लोगों को शंका हुई कि यह
स्वामी भी देखते देखते डालरों के लिए झोली फैला देगा।
श्रोताओं के चेहरे पर शंका का भाव देख कर स्वामी जी मंदिर
से गंगा जी में उतर आये। उन्होंने गंगा जी में एक डुबकी
लगायी और बोले कि जिस प्रकार देवताओं के लिए अमृत पितरों
के लिए स्वधा तथा नागों के लिए सुधा है उसी प्रकार
मनुष्यों के लिए गंगा जल है। लोग गंगा में फैल रहे प्रदूषण
पर बात करने लगे तो स्वामी जी ने गंगा का प्रसंग भी बीच
धार में छोड दिया। उन्हें प्रवासी भारतीयों पर बहुत दया
आयी। बेचारे अपने इतिहास, परम्पराओं, संस्कारों से कट कर
यहाँ वनवास झेल रहे हैं। उन्होंने लगभग डाँटते हुए कहना
शुरू किया कि इस संसार में कलयुग पश्चिम के रास्ते ही आया
है। आप लोग इस देश में रहते हुए कभी हीनता की भावना से
ग्रस्त मत होइए। कभी यह मत भूलिए कि आप उस महान देश से आये
हैं जिसकी संस्कृति यहाँ की संस्कृति से प्राचीन ही नहीं
अति उत्तम रही है। मैं देख रहा हूँ यहाँ संस्कृति का नहीं
अपसंस्कृति का ही विस्तार हो रहा है। आप लोग अपसंस्कृति की
इस चकाचौंध में मत आइए। अपने बाल बच्चों को भारत के
प्राचीन गौरव से अवगत कराइए। शादी विवाह के मामले में
सतर्क रहिए। ये लोग यौनगत नैतिकता में विश्वास नहीं करते
इसलिए इनके यहाँ तलाक आम है। हमारे यहाँ विवाह को जन्म
जन्मांतर का पावन रिश्ता माना जाता है।
दोनों लडकियाँ स्वामी जी की बातों से ऊब रही थीं। सच तो यह
है कि उनकी न स्वामी जी में और न ही स्वामी जी के प्रवचनों
में कोई रुचि थी। लडकियों का यों सभा से बहिर्गमन कर जाना
हरदयाल और शील को बहुत बुरा लगा। हरदयाल ने नजरों ही नजरों
से शील को इशारा किया कि वह उन दोनों को वापिस बुला लाये।
शील उठी और दोनों लडकियों को समझा बुझा और डरा धमका कर
बाहर से ले आयी। स्वामी जी ताड़ गये कि उनकी बातें नयी नस्ल
की लड़कियों को दकियानूसी लग रही हैं। उन्होंने शीनी से कहा
"बेटी मन में कोई जिज्ञासा उठ रही हो तो निस्संकोच कहो।''
"नो थैंक्यू स्वामी जी।'' शीनी ने कहा।
"हम दिल की बात भाँप लेते हैं। तुम्हारे भीतर कोई प्रश्न
कसमसा रहा है।''
"नहीं स्वामी जी।'' कहते कहते शीनी को लगा कि स्वामी जी
चाह रहे हैं तो वह क्यों न मन की बात रख ही दे।
"बोलो बोलो बेटी।'' स्वामी जी ने अनुरोध किया।
"स्वामी जी सुनने में आता है कि भारत में औरतों को दहेज के
लिए जिन्दा जला दिया जाता है। क्या यह सच है?''
हाल में सन्नाटा खिंच गया। क्षण भर के लिए स्वामी जी भी
हत्प्रभ रह गये मगर उन्होंने शीघ्र ही अपने को समेट लिया
और बोले "बेटी मैं यह नहीं कहता कि भारत में स्त्री के
प्रति हिंसा नहीं होती। यूरोप और अमरीका जैसे विकसित देशों
में भी होती है। भारत में जब कोई इस प्रकार की घटना होती
है तो उसे अनुपात से अधिक फैला कर पेश किया जाता है। मैं
मानता हूँ भारत में बहुत गरीबी है, अशिक्षा है,
रूढिग्रस्तता है। मगर ऐसी गरीबी भी नहीं जैसी यहाँ के
इलेक्ट्रानिक माध्यमों में दिखायी जाती है। आज भारत के कई
राज्यों में पूर्ण साक्षरता है। कुछ गरीबी के सौदागर हैं
जो यहाँ आकर भारत के कृष्ण पक्ष का धंधा करते हैं। यहाँ
आकर लोगों से बातचीत करके महसूस होता है जैसे भारत
सँपेरों, बाजीगरों, मछुआरों और आदिवासियों का देश हो। जबकि
सचाई यह है कि भारत एक विकासशील देश है भारत किसी भी दिन
टेकआफ कर सकता है। स्वाधीनता से पूर्व भारत में सुई जैसे
छोटे उपकरण का भी आयात किया जाता था आज हम अंतरिक्ष में
उपग्रह छोड रहे हैं। हम अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हैं।
बिटिया तुम्हें भारत की यही छवि दिखायी गयी है, इसमें
तुम्हारा कोई दोष नहीं। तुम्हारे जैसे बहुत से मासूम लोग
भारत के खिलाफ किये जा रहे इस दुष्प्रचार से प्रभावित हो
रहे हैं।''
"स्वामी जी आप गंगा के महत्व का इतना बखान कर रहे थे सुनते
हैं गंगा जल पीने लायक नहीं रहा।'' एक अधेड़ स्त्री ने
स्वामी जी के सामने अपनी जिज्ञासा रखी।
"आपने ठीक सुना है बहन जी। अब तो संत महात्मा भी गंगा
स्नान करने से कतराने लगे हैं। विकासशील राष्ट्र की बहुत
सी समस्याएँ होती हैं। प्रदूषण भी विकास का बाई प्रोडक्ट
है। इन समस्याओं को व्यापक परिपे्रक्ष्य में देखना होगा।
पर्यावरण प्रदूषण भारत की ही नहीं पूरे विश्व की समस्या
है। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकार जो राशि
आवंटित करती है उसे भ्रष्ट नौकरशाह और इंजीनियर मिल कर
डकार जाते हैं। जिस दिन हम लोग भारत को भ्रष्टाचार से
मुक्त करने में सफल हो गये गंगा अपने आप पहले की तरह
निर्मल और प्रदूषण मुक्त हो जाएगी।''
बाहर एक साथ कई गाडियाँ रुकने की आवाज सुनाई दी। अबरोल और
हरदयाल लगभग भागते हुए दरवाजे की ओर लपके। जिम कपलैण्ड
प्यारा सिंह और कुछ अन्य लोग हाथ जोड़े हुए आगे बढ़ रहे थे।
प्यारा सिंह ने भीतर दो चार सिक्ख भाइयों को देखा तो
दरवाजे पर से ही आवाज बुलंद की "जो बोले सो निहाल।''
"सत सिरी अकाल।'' भीतर लोगों ने गुहार लगायी।
प्यारा सिंह ने आगे बढ़ कर स्वामी जी का चरण स्पर्श किया।
जिम कपलैण्ड ने भी झुक कर अपना सम्मान प्रकट किया। हरदयाल
और अबरोल प्यारा सिंह को एक कोने में ले गये। प्यारा सिंह
को आगे के कार्यक्रम की जानकारी दी। प्यारा सिंह ने जिम के
कान में कहा "अभी आपको होटल के एक रेस्तराँ का उद्घाटन
करना है। वहाँ आपको हमारी कम्युनिटी के कुछ और लोग भी
मिलेंगे। अच्छा अवसर है। आप स्वीकार कर लें।''
"ओके ओके।'' जिम कपलैण्ड के सेक्रेटरी ने कहा और अबरोल से
पूरी जानकारी ले ली। वह वहीं खडे खडे अपने प्रेस के
मित्रों से सम्पर्क करने लगा। उसका यही काम था। अबरोल ने
देखा तो बोला "आप जिम के सेक्रेटरी हैं और मैं आपका।''
"यानी।''
"यानी मैं पूरे प्रेस को निमंत्रण भेज चुका हूँ। अभी यहाँ
से मेरे एक मित्र ने एक मल्टी लिंगुअल साप्ताहिक शुरू किया
है- पंज दरिया। वह हिन्दी, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेजी का
मिक्स्ड पिकैल है और हमारी कम्युनिटी का हर शख्स उसे पढ़ता
है। वह अपनी तरह का अनोखा साप्ताहिक है। आपको घर बैठे खबर
लग जाएगी कि किसकी शादी हो रही है और किसका तलाक। किसके
यहाँ बच्चा पैदा हुआ है और कौन देस गया है। पंज दरिया का
अगला अंक जिम कपलैण्ड पर केन्द्रित होगा। अभी उसके सम्पादक
से मिलवाऊँगा।''
जिम का सचिव हतप्रभ सा अबरोल की तरफ देख रहा था। वह इतने
बातूनी आदमी से आज तक न मिला था। उसने यह भी तय किया कि इस
शख्स को यथासम्भव जिम से दूर ही रखना बेहतर होगा वर्ना यह
जिम के लिए नहीं उसके लिए भी सिरदर्द बन सकता है।
जिम के आते ही वातावरण जीवंत हो उठा। स्वामी जी ने अपना
प्रवचन बंद किया और लगभग मौन धारण कर लिया। भारत से वह एक
छोटा सा इंगलिश स्पीकिंग कोर्स करके आये थे। उनके सामान
में इस विषय पर कुछ उपयोगी पुस्तकें तथा एक अंग्रेजी
हिन्दी कोश भी था। अभी तक भाषा की समस्या उनके सामने न आयी
थी। अपने भक्तों के बीच वह अत्यंत विश्वासपूर्वक गलतसलत
अंग्रेजी का प्रयोग भी कर लेते थे मगर अब इन गोरों की
उपस्थिति में वह उतनी ही अंग्रेजी बोलना मुनासिब समझते थे
जो व्याकरण और उच्चारण की दृष्टि से शुद्ध हो। जिम उनके
व्यक्तित्व से प्रभावित नजर आ रहा था। वह जानना चाह रहा था
कि स्वामी जी ने गले में इतनी मालाएँ क्यों पहन रखी हैं।
स्वर्णजटित मोटे मोटे रुद्राक्ष की माला उसे अत्यंत भव्य
लग रही थी। कुछ मालाएँ स्वामी जी अपने यजमानों के लिए भी
पहने रहते थे। जिस पर प्रसन्न हो जाते उसकी हैसियत के
मुताबिक एक माला अपने गले से उतार कर उसके गले में पहना
देते। जब से जिम से उनका परिचय हुआ था उनके मन में कशमकश
चल रही थी कि जिम पर कितनी रकम की बाजी लगायी जा सकती है।
स्वामी जी के गले में मूँगा, स्फटिक, स्वर्णजटित
रुद्राक्ष, मोती माणिक्य की मालाएँ शोभायमान हो रही थीं।
जिम सोच रहा था कि स्वामी जी की तरफ देख कर सबसे पहले दो
चीजों पर नजर अटकती थी— किस्म किस्म की मालाओं और उनकी
तोंद पर। |