|  
						"जो मुँह में आता है बकती 
						रहती हो। माँ, बाप दुश्मन तो नहीं होते।'' "यहाँ आकर दुश्मन भी हो जाते हैं। कुलभूषण जी ने अपनी 
						बिटिया को कितने अनुशासन में रखा हुआ था। बेचारी 
						अवसादग्रस्त होकर छत के कुंडे से झूल गयी। बाप बडे गर्व से 
						अफसोस में आये लोगों को उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट दिखा रहा 
						था कि वह कुंआरी थी।''
 "फाँसी पर झूल गयी, मगर अपनी इज्जत को बट्टा नहीं लगने 
						दिया।'' शील ने कहा, "यों ही दुनिया में सीना तान कर नहीं 
						खडा भारत।''
 "तो जाओ वहीं जा बसो।'' शीनी ने माँ से कहा, "मुझे तो 
						विस्मय होता है कि तुमने इस देश की नागरिकता ली ही 
						क्यों।''
 "मैं तो आना ही नहीं चाहती थी गोमांस भक्षियों के इस देश 
						में।''
 "माँ, क्यों अपने को धोखा देती रहती हो। नागरिकता लेने के 
						लिए न जाने कितने सच्चे झूठे शपथपत्र तुमने दाखिल किये थे। 
						मेरा मुँह न खुलवाओ।''
 
 "तुम्हारे जैसी संतान भगवान किसी को न दे।'' माँ ने बहुत 
						दुखी होकर कहा था, "जो अपने माँ बाप की दुश्मन हो जाए। मैं 
						तो अपने को कोसती रहती हूँ कि ऋषियों मुनियों की पवित्र 
						धरती छोड़ कर यहाँ क्यों चली आयी। पिछले जन्म में जरूर कोई 
						पाप किया होगा, जिसका दंड भोग रही हूँ।''
 "माँ तुम जैसे जानती नहीं कि ऋषियों मुनियों की धरती से छल 
						छद्म से कितने लोग यहाँ आते हैं। कोई सगी बहन से फर्जी 
						शादी रचा कर चला आता है तो कोई बहू से। जितनी झूठी शादियाँ 
						और झूठे तलाक यहाँ के हिन्दुस्तानियों के बीच होते हैं, 
						किसी दूसरे मुल्क के लोगों के बीच न होते होंगे।''
 "मैंने लड़कियाँ नहीं, साँपिनें पैदा की हैं।'' माँ तर्क 
						में नहीं पड़ना चाहती थी।
 
 "तुम्हें गर्व होना चाहिए कि तुम्हारी ये साँपिनें दोहरी 
						जिन्दगी नहीं जीतीं। जब मैं हिन्दुस्तानियों को यह कहते 
						हुए सुनती हूँ कि अवर कंट्री इज वैरी वैरी ग्रेट तो मेरा 
						बहुत मनोरंजन होता है। दलितों, अल्पसंख्यकों और अपनी बहुओं 
						को जिन्दा जलाने वाली कौम जब नैतिकता और अहिंसा का वास्ता 
						देती है तो मेरी हंसी छूट जाती है।''
 "यह जो कैंची की तरह तुम्हारी जुबान चलने लगी है, किसी दिन 
						काट के रख दूँगी। गंदे लोग किस समाज में नहीं होते। मोई 
						मरजानी सारी कौम को बदनाम कर रही है। ऐसी राष्ट्रविरोधी 
						बातें करोगी तो कोई हिन्दुस्तानी तुमसे शादी करने को तैयार 
						न होगा।''
 "मुझे करनी ही नहीं किसी हिन्दुस्तानी से शादी।''
 "मैं जान दे दूँगी, मगर किसी गोरे से शादी करने की इजाजत न 
						दूँगी। राष्ट्रविरोधी कहीं की।''
 "राष्ट्रविरोधी तो तुम हो। यहाँ की नागरिक हो और तुम्हारी 
						लायल्टी दूसरे देश के साथ है। मैं तो यहाँ पैदा हुई थी और 
						यहीं की जीवन शैली अपनाऊँगी।''
 
 "जीवन शैली अपनाने से तुम्हें किसने रोका है। मैं तो सिर्फ 
						इतनी सी बात तुम्हारे भेजे में डालना चाहती हूँ कि बेटा 
						यहाँ की चकाचौंध से इतना प्रभावित न हो जाओ कि नारीसुलभ 
						गुणों को भुला बैठो। नारी का सबसे बडा आभूषण लज्जा है। शील 
						है। कोमलता है। कन्याओं का तो कौमार्य भी है।''
 
 माँ का रटारटाया भाषण सुन कर शीनी भड़क गयी, "तुम लोगों की 
						सारी नैतिकता चड्ढी तक सीमित है।''
 शीनी ने जानबूझ कर चड्ढी का जिक्र किया था। शीला चड्ढी को 
						लेकर बहुत सजग रहती थी। बच्चियों को स्कूल रवाना करने से 
						पहले शुरुआती कक्षा से ही वह सुनिश्चित कर लेती थी कि 
						बच्चियों ने चड्ढी पहनी है कि नहीं। बच्चियाँ अब बडी हो 
						गयी थीं और माँ जब स्कूल जाने से पहले पूछती कि चड्ढी पहन 
						ली है तो दोनों बच्चियाँ जलभुन कर राख हो जातीं। शीनी आजिज 
						आकर एक दिन माँ से भिड़ गयी, "चड्ढी के भीतर क्या हीरे 
						जवाहरात रखे हैं?''
 "हमारी संस्कृति में तो यह हीरे जवाहरात से भी ज्यादा 
						मूल्यवान है। हीरा खो जाए तो दुबारा खरीदा जा सकता है, मगर 
						इसे नहीं। यह स्त्री का ऐसा आभूषण है जो खो जाने पर दुबारा 
						हासिल नहीं किया जा सकता।''
 "माँ, मेरी समझ में नहीं आता कि हिन्दुस्तानी लोग अपनी 
						बेटियों के यौन जीवन के प्रति इतना क्रूर क्यों हो जाते 
						हैं। अपनी बेटी की उम्र तक छह बच्चे पैदा करने वाले माँ 
						बाप भी बेटी को दिमागी तौर पर चेस्टिटी बेल्ट पहनाते रहते 
						हैं।''
 "यह कौन सी बेल्ट होती है। मेरे साथ ज्यादा अंग्रेजी न 
						झाड़ा करो।''
 "गुप्तांग पर ताला लगाने वाली पेटी।''
 "क्या बक रही हो। यह कैसी शिक्षा पद्धति है जो यह भी नहीं 
						सिखाती कि माँ बाप के साथ कैसे पेश आना चाहिए। कौन ऐसे माँ 
						बाप होंगे जो अपनी बेटी के साथ ऐसा व्यवहार करेंगे।''
 "सब हिन्दुस्तानी अपनी बेटियों के साथ ऐसा ही व्यवहार करते 
						हैं। तुम भी ऐसा ही कर रही हो। जब से मैंने होश संभाला है 
						तुम मुझे शीलरक्षक पेटी ही तो पहनाती रहती हो। यह मानसिक 
						पेटी तो असली पेटी से भी ज्यादा यंत्रणा देती है।''
 "मेरा बस चले तो मैं तुझे वापिस पंजाब भेज दूँ। तुम्हारे 
						लच्छन मुझे ठीक नहीं लग रहे। स्कूल से क्या क्या सीख कर 
						आती हो।''
 
 नेहा को शीनी का दो टूक बात करने का अंदाज बहुत अच्छा लगता 
						था। वह खुद तो इतनी दब्बू थी कि अपनी फरमाइश भी शीनी के 
						माध्यम से माँ बाप तक पहुंचाती थी। भीतर ही भीतर वह शीनी 
						के डेट पर जाने के साहसिक कदम से खुश ही थी। जो चीजें शीनी 
						संघर्ष करके हासिल करती थी, नेहा को विरासत मे मिल जाती 
						थी। उसे विश्वास था कि जब वह डेट पर जाएगी तो घर में इतना 
						बवाल न होगा। वह अभी सिर्फ चौदह की थी और उसका एक सहपाठी 
						विलियन उससे कई बार डेट के लिए आग्रह कर चुका था। एक दिन 
						तो वह नेहा की बेरुखी से आजिज आकर बोला, कि हिन्दुस्तानी 
						लड़कियाँ डेट से ऐसे डरती हैं, जैसे अनाडी लड़कियाँ हनीमून 
						से। नेहा तो सचमुच अनाड़ी थी, इतनी अनाड़ी कि हनीमून का मतलब 
						भी न समझती थी। घर जाकर सबसे पहले उसने डैड के 'एन एबी जेड 
						आफ लव' में हनीमून का अर्थ देखा और मुक्कियाँ तान कर 
						विलियम को कोसा। नेहा विचारों में ऐसी खोयी थी कि फोन कई 
						बार टनटना कर शांत हो चुका था। इस बार घंटी बजी तो उसने 
						अनिच्छा से फोन उठा लिया था। डैड थे लाइन पर, "घर में कोई 
						फोन क्यों नहीं उठा रहा, मैं एक घंटे से परेशान हूँ।''
 
 "मैं सो गयी थी डैड।'' नेहा ने कहा।
 "तुम्हारी मम्मी कहाँ हैं?''
 "मम्मी बेडरूम में है।'' नेहा ने बताया, "शीनी डेट पर गयी 
						है और मम्मी तब से रो रही है।''
 "उस बदतमीज लड़की ने मनमानी ही की।'' डैड ने एक लम्बी साँस 
						भरते हुए कहा, "मम्मी उठे तो बता देना मैं खाना खा कर 
						आऊँगा। भारत से स्वामी अपूर्वानंद जी आये हुए हैं। गुजराल 
						के यहाँ उनका प्रवचन और भंडारा है। और हाँ, शीनी आ जाए तो 
						मुझे सूचित जरूर कर देना।''
 "जी डैड।'' नेहा ने कहा।
 
 नेहा को लग रहा था कि घर का वातावरण बहुत तनावग्रस्त हो 
						गया है। शीनी के लौटने पर अच्छा खासा बवाल होने की 
						सम्भावना बन रही थी। माँ को अवसाद से बाहर लाने में काफी 
						मशक्त करनी पड़ सकती है और शीनी ने अगर कहीं डैड से जुबान 
						लडाने की गुस्ताखी कर दी तो उसके गम्भीर परिणाम हो सकते 
						हैं। शीनी पहले ही सबको आगाह कर चुकी है कि किसी ने उस पर 
						हाथ उठाया तो वह पुलिस को खबर कर देगी। अब तक कई 
						हिन्दुस्तानी परिवार बच्चों की शिकायत कर पुलिस की चपेट 
						में आ चुके थे। नेहा की हमदर्दी शीनी के साथ थी, उसे लग 
						रहा था कि उसके माता पिता को पिछडी मानसिकता से मुक्ति 
						पानी चाहिए और वे एक मामूली सी बात को लेकर तूमार बांध रहे 
						हैं। यहाँ के आचार व्यवहार में डेट पर जाना एक सामान्य बात 
						है। विलियम को मना करने के बाद एक दिन नेहा ने अपनी सहेली 
						एस्टैला से पूछा कि क्या वह कभी डेट पर गयी है तो उसने 
						अत्यंत सादगी से जवाब दिया कि वह हर वीकएंड को डेट पर जाती 
						है और उसके घर वाले भी इसमें हस्तक्षेप नहीं करते। एक दिन 
						उसने एस्टैला से डरते डरते पूछा, "एस्टैला, अगर तुम बुरा न 
						मानो तो मैं तुमसे एक निजी सवाल पूछना चाहती हूँ।''
 
 "पूछो पूछो।''
 "एस्टैला, सच सच बताना। क्या तुम अभी तक पवित्रहो?''
 "बडा बेहूदा सवाल है। पवित्र से तुम्हारा क्या अभिप्राय 
						है?''
 "आई मीन कि क्या तुम वर्जिन हो?''
 
 एस्टैला ने बहुत जोर से ठहाका लगाया, "मैं तो साल भर से 
						गर्भनिरोधक गोलियों के कोर्स पर हूँ। अच्छा, तो अब तुम 
						बताओ कि क्या तुम अभी तक वर्जिन हो?''
 नेहा का चेहरा शर्म से सुर्ख हो गया। लजाते हुए बोली, "और 
						क्या।''
 
 "मुझे तो वर्जेनिटी एक बोझ लगने लगी थी। मैं जल्द से जल्द 
						उससे मुक्ति पा लेना चाहती थी ताकि सामान्य जीवन जी सकूं। 
						सच तो यह है मैं इससे आब्सैस्ड नहीं रहना चाहती थी।''
 "तो तुमने क्या किया?'' नेहा ने डरते डरते पूछा।
 "मुक्ति पा ली। और क्या किया?''
 "कैसा था तुम्हारा अनुभव?''
 "बहुत खराब। अनाडीपन की भोंडी मिसाल। चार पाँच सेकेण्ड में 
						ही वारे न्यारे हो गये। आई फाडंड इट लैस इराटिक दैन ए 
						गाइनिकालजिकल एग्जाम।''
 
 एस्टैला की बात सुन कर नेहा बहुत निराश हुई। एस्टैला ने 
						नेहा को भींचते हुए कहा, "निराश न हो मेरी जान। यहीं से 
						स्वर्ग के आनंद द्वार खुलते हैं। मेरे लिए तो प्रत्येक 
						वीकएंड एक नयी एक्स्टेसी, एक नया हर्षोन्माद लेकर आता है। 
						तुम अभी बच्ची हो, ये बातें तुम्हारी समझ में न आयेंगी। 
						मैंने सुना है ज्यादातर हिन्दुस्तानी लड़कियाँ उसी तरह 
						वर्जेनिटी को चिपकाये घूमती हैं जैसे बंदरिया मरे हुए 
						बच्चे को। मुझे लगता है, बहुत से पेरेण्ट्स बच्चों के यौन 
						जीवन से ईष्र्या करने लगते हैं और उन्हें प्रताडित करते 
						हैं।''
 
 नेहा नाराज हो गयी थी एस्टैला की बात से। उसने कहा, 
						"हिन्दुस्तानी पेरेण्ट्स तो ऐसा नहीं करते। हमारे यहाँ हर 
						काम के लिए उम्र तय है।'' नेहा को लगा था कि एस्टैला 
						हिन्दुस्तानियों पर कटाक्ष कर रही है।
 
 "तुम तो नाराज हो रही हो। फर्क सिर्फ इतना है कि हम किसी 
						को अपना भविष्य तय करने की इजाजत नहीं देते।''
 "तुम्हारी दोस्ती तो ट्रेंट से चल रही है न।'' नेहा ने बात 
						का रुख बदलते हुए पूछा।
 "कौन ट्रेंट?''
 "वही जिसने नाईन्थ में टाप किया है।''
 "उसे तो मैंने बहुत पहले लताड़ दिया था।''
 "क्यों?''
 "बहुत शक्की और झक्की स्वभाव का है। कोई लड़की उसके साथ 
						डेट पर नहीं जाना चाहती।''
 "क्यों?''
 "वह भी तुम्हारी तरह वर्जेनिटी के प्रश्न पर अब्सैस्ड रहता 
						है। मैंने बहुत पहले उसे राय दी थी कि उसे किसी वर्जिन की 
						तलाश है तो इंडिया चला जाए, सुनते हैं वहाँ ढेरों मिलती 
						हैं।''
 |