समकालीन कहानियों में इस सप्ताह
प्रस्तुत है
कृष्णलता सिंह की कहानी
छोटी सी शरारत
कनुप्रिया
अभी दस दिन पहले इस अपार्टमेन्ट में आई थी। अभी उसका परिचय
किसी से नहीं था। बस हरीश भाई ने फ्लैट का सारा काम करा दिया
था। फ्लैट तैयार होते ही रहने आ गयी थी। नयी जगह में अपने को
व्यवस्थित करने में वह इतनी व्यस्त हो गयी कि उसे होली का
ध्यान ही नहीं रहा। वह तो कामवाली आया रामवती ने याद दिलाया-
'मैडम होली खेलने को कोई पुरानी सफेद साड़ी दो। आप तो सफेद
पहनती हैं।'
हैरान होकर उसने पूछा- 'होली कब है?'
रामवती मन ही मन हँसी- 'कैसी मैडम हैं?’
फिर बड़ी उमंग से कहा- 'परसों है। 'साथ ही अल्टीमेटम देती हुई
बोली- 'परसों छुट्टी लूँगी।'
आज होली थी। दूधवाले और कामवाली को आना नहीं था। देर तक
बेफिक्र सोती रही। आँख खुली तो घड़ी साढ़े नौ बजा रही थी। मन
में अपराध बोध लिये वह जल्दी जल्दी तैयार हो गयी। फिर सोचा उसे
जाना कहाँ है? फिर इतनी हड़बड़ी और अपराधबोध क्यों? होली खेलना
नहीं है। टीवी अभी लगा नहीं है।
आगे...
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