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						होली की 
						हड़ताल- पूरन सरमा
 
 
 
						होली मेरा सबसे प्रिय 
						त्योहार है। इधर फागुन शुरू होता है और उधर मेरा दिल 
						बल्लियों उछलने लगता है। इस बार पता नहीं क्यों, दिल 
						अतिरिक्त उत्साह से भरा हुआ था, सो मैंने होली के एक 
						सप्ताह पूर्व ही मोहल्ले की भाभियों की एक विशेष बैठक 
						बुलाई और अपना होली खेलने का एकमात्र प्रस्ताव प्रस्तुत 
						किया तो भाभियाँ भी उछल पड़ीं। 
 यह तो आप भी जानते हैं कि भाभियाँ कितनी प्यारी होती हैं। 
						मीठी मिसरी की डली-सी और देखते ही मुँह में पानी आ जाए 
						जैसी। सामान्य रूप से भाभियाँ वाचाल होती हैं और मुझे सदैव 
						वाचाल भाभियाँ लुभावनी लगती हैं। मेरा प्रस्ताव सुनकर चंपा 
						भाभी बोलीं, ‘देवरजी, यह मुँह और मसूर की दाल। अब तो आपके 
						बच्चे होली खेलनेवाले हो गए, थोड़ा स्कोप उन्हें भी तो 
						छोड़ दो लल्ला।’ मैं बोला, ‘देखो चंपा भाभी, इसी मुँह से 
						मसूर की दाल खाते रहे हैं। इसलिए आप मुँह पर मत जाइए। रहा 
						सवाल मेरे बच्चों का, तो वे भी होली खेल रहे हैं। मैं अपनी 
						होली की बात कर रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि आप होली पर ऐसे 
						रंग तैयार करें कि मैं पूरे साल उतारता रहूँ, लेकिन उतरे 
						नहीं। मेरा मतलब होली जमकर होनी चाहिए।’
 
 इस बार चमेली भाभी ने पैंतरा मारा, ‘देखो लालाजी, होली तो 
						हम खेल लेंगी, लेकिन रंग बहुत महँगे हो गए हैं, इसलिए रंग 
						की व्यवस्था तो आपकी ओर से होनी चाहिए।’ ‘देखो चमेली भाभी, 
						रंग मैं क्यों लाऊँ। आप मेरी भाभी हैं तो देवर पर आपका खुद 
						का खरीदा रंग जो रंग खिलाएगा, वह रंग मैं लाऊँगा, वह रंग 
						नहीं जमा पाएगा।’ मैं बोला। ‘देखो लाला, समझो! रंग खरीदना 
						हमारे बस की बात नहीं है। रही पिचकारियों की बात, वे हमारे 
						पास लुटी-पिटी अवस्था में गत वर्षों की पड़ी हैं, उन्हें 
						निकाल लेंगी। पानी का इंतजाम हम करेंगी।’ विमला भाभी ने 
						कहा। मैं बोला, ‘देखो, इस बार मेरा यह प्रोग्राम है कि मैं 
						आपके रंगों की मार से भीगता रहूँ और बदले में रंग की एक 
						धार भी आप पर नहीं मारूँ। मेरा मतलब मैं एक कौड़ी का भी 
						रंग नहीं खरीद सकूँगा। गुलाब जामुनों की आप चिंता न करें।’
 
 इस बार कमला भाभी चहकीं, ‘गुलाब जामुन! क्या मतलब?’ ‘मतलब 
						यह कि गुलाब जामुन होली के बाद नि:शुल्क मेरी ओर से। यही 
						नहीं, आप सबके अलावा मेरे भाई साहबों को भी दो-दो गुलाब 
						जामुन खाने को घर-घर पहुँचा दूँगा। यानी गुलाब जामुनों की 
						सर्विस और सप्लाई में आपको कोई शिकायत नहीं होगी। बस मेरी 
						एक शर्त और है!’ ‘शर्त, कैसी शर्त?’ एक साथ सारी भाभियाँ 
						बोलीं। मैंने कहा, “होली मैं पुरानी-धुरानी साडिय़ों में 
						नहीं खेल पाऊँगा। साड़ी या तो नई हो अथवा ठीक-ठाक हालत में 
						हो। यह नहीं कि मुड़ी-तुड़ी गत वर्षों की फटी-पुरानी साड़ी 
						पहनकर आ जाओ। यह मेरी अपनी होली का मौलिक पेंच है, इसे 
						आपको पूरा करना है।’
 ‘अरे वाह लालाजी, बड़े चतुर निकले। साड़ियाँ भी पहनें और 
						वह भी नई, ना बाबा ना। ज्यादा ही हमसे होली खेलने को मन 
						करता है तो सबको साड़ियाँ ला दो। हम नई पहनकर खेल लेंगी।’ 
						चंपा भाभी बोली।
 
 मैं बोला, ‘समझा करो, भाभी-जान! साड़ी की तैयारी आप स्वयं 
						करके आओगी, वह होली खेलने का आनंद और है, मैं साड़ी लाकर 
						दूँ और आप लोग वह साड़ी पहनकर आएँ, वह और है। इसलिए साड़ी 
						का दायित्व तो आपका ही होना चाहिए।’
 तभी विमला भाभी ने कहा, ‘लेकिन लालाजी, मेरे पास तो जैसी 
						भी साड़ी है, वह पहनकर आ सकती हूँ। नई तो आपके भैया ला ही 
						नहीं पाए। बताओ मैं क्या करूँ?’
 ‘आप ऐसा करो, फिर होली मेरे साथ मत खेलो। होली खेलनेवाले 
						बहुतेरे मिल जाएँगे। उनसे खेल लेना। मेरे साथ होली खेलने 
						में थोड़ा खर्च ज्यादा ही आता है, विमला भाभी। एक बार 
						खेलोगी तो पूरे वर्ष भर याद रखोगी।’
 
 विमला भाभी चुप हो गईं, परंतु कमला भाभी भभकीं, ‘ठीक है, 
						हम तो आपके साथ होली खेल लेंगी, लेकिन आपकी श्रीमतीजी 
						किसके साथ खेलेंगी होली?’ ‘देखो कमला भाभी, यह उसका अपना 
						‘आउट लुक’ है। मैं क्यों चिंता करूँ उसकी। मुझे मेरी होली 
						की चिंता है, इसलिए सात दिन पहले ही मैंने यह मीटिंग बुला 
						ली है। लो, वह कलुवा गरम-गरम समोसे ले आया है, बात को आगे 
						बढ़ाओ। जैसा कि मैंने शुरू में ही कहा कि गुलाब जामुनों का 
						इंतजाम पुख्ता है और वे पुष्कल मात्रा में धुलेंडी के दिन 
						उपलब्ध हो जाएँगे, ऐसे में आपकी और कोई समस्या हो तो 
						बताएँ।’
 
 ‘समस्या’ के नाम पर सभी भाभियाँ एक-दूसरे का मुँह देखने 
						लगीं। चंपा भाभी थोड़ा-सा हँसीं और बोलीं, ‘देखो लालाजी, 
						आपका कोई प्रिय रंग हो तो बता दें। वरना काले रंग का 
						प्रयोग तो हम करेंगी ही।’
 मैं बोला, ‘लेकिन आप मेरा मुँह काला क्यों करना चाहती 
						हैं?’
 ‘वह इसलिए कि आप आगे से होली पर अपनी कोई शर्त नहीं रख 
						सको। मेरे कहने का अर्थ है कि होली पर सारी शर्तें आपकी ही 
						मानी जाएँ। रंग भी हमारा, साड़ी भी हमारी और पानी भी 
						हमारा, आप तो खड़े-खड़े भीगते रहें। वाह रे चतुर सुजान 
						देवर! अब हमारी भी यही शर्त है कि काले रंग से होली खेलो 
						तो खेलो वरना पड़े रहो घर में।’ इस बार धर्मसंकट मेरा था। 
						असमंजसपूर्ण स्थिति थी। मैंने फिर वही पैंतरा मारा, ‘लेकिन 
						गुलाब-जामुन तो मेरे हैं न!’
 
 ‘गुलाब-जामुन, गुलाब-जामुन, गुलाब-जामुन, बस एक रट लगा रखी 
						है। हमें नहीं खाने ऐसे गुलाब जामुन। होली खेलकर यदि कुछ 
						खिलाते हो तो क्या अहसान करते हो। हम भी होली पर होली नहीं 
						खेलने की हड़ताल कर देंगी, तब पता चलेगा, यह फागुन किस कदर 
						बरबाद होता है आपका।’
 एक साथ सभी भाभियाँ दहाड़ीं और वे सब चलने को खड़ी हो गईं। 
						मैं खड़ा होकर हाथ बाँधकर बोला, ‘यह क्या अनर्थ कर रही हैं 
						आप सब! थोड़ा मेरी हालत पर तो रहम खाइए। साल का बड़ा 
						त्योहार है। होली नहीं खेला तो पूरे एक साल की जाएगी। अब 
						ऐसा करते हैं कि रंग गुलाबी का इंतजाम मैं करता हूँ, 
						क्योंकि काला रंग मुझे पसंद नहीं है।’
 ‘अब आई न अक्ल ठिकाने! अरे लाला, इन हाथों से आपके जैसे कई 
						देवरों के छक्के छुड़ा चुकी हैं हम। होली की धौंस मत देना। 
						घने ही देवर हैं, जो हमसे होली खेलने को तरसते हैं। होली 
						खेलनी है तो परंपरा को मत छोड़ो।’
 
 ‘परंपरा! मैंने क्या बिगाड़ी है परंपरा?’ मैं बोला। ‘हाँ, 
						आपने बिगाड़ी है परंपरा। होली पुरानी साड़ी में ही खेली 
						जाती है। उसी में भली लगती हैं भाभियाँ। तुमने भाभी को 
						मात्र मनोरंजन बनाना चाहा है, यह हम नहीं होने देंगी। होली 
						का स्वरूप विकृत मत करो, लाला।’ अबकी बार चंपा भाभी ने 
						ज्ञानोत्सर्जन किया।
 मैं बोला, ‘मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रही आप सबकी बातें। 
						चलिए, नई साड़ी की भी बात खत्म करिए। जैसी भी आप सबके पास 
						उपलब्ध हों, पहनकर आ जाना, लेकिन आना जरूर। मैं कड़ाही में 
						रंग भरकर तैयार रखूँगा, बस आप अपनी खाली पिचकारियाँ साथ 
						लेती आएँ।’
 
 ‘अब आए न लाइन पर! होली की हड़ताल का असर पूरा पड़ा है आप 
						पर। अब एक काम और करो, वह यह कि आप होली खेलने आएँ तो कमीज 
						पहनकर न आएँ।’ कमला भाभी का प्रस्ताव आया। मैंने दरवाजे की 
						ओर देखा और लपककर बाहर हो गया। सारी भाभियाँ खिलखिलाकर हँस 
						पड़ीं और अपने घर चली गईं।
 
 होली आ गई है। आज धुलेंडी है और मेरी हिम्मत नहीं हो रही 
						है कि बाहर जाकर भाभियों की चुनौती का सामना कर सकूँ। 
						मैंने पत्नी से कह दिया कि चंपा, चमेली, विमला और कमला 
						भाभी आएँ तो कहना कि मैं घर में नहीं हूँ। पूरे दिन मकान 
						के किवाड़ों के सूराखों से होली का माहौल देखने को तरसता 
						रहा, लेकिन होली किसी ने नहीं खेली। होली की हड़ताल जो थी।
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