मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में प्रस्तुत है
भारत से मीनू त्रिपाठी की कहानी- होली की गुझिया


करीब दस बजे गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ पर वह बाहर आई, तो “हैप्पी होली” के समवेत स्वर के साथ सास-ससुर आते दिखाए दिए। पैर छूती तूलिका को सास ने गर्मजोशी से बाँहों में भर लिया। ससुर ने स्नेहजनित आशीर्वाद भरा हाथ उसके सिर पर रखा। परदेस में सहसा अपने देश की महक उसे भली लगी कि तभी उसकी नज़र समीर को ढूँढने लगी, फिर समीर को देख वह हर्षमिश्रित विस्मय से चिल्ला पड़ी।

तूलिका समंदर के किनारे बैठकर लहरों का आना-जाना देखने लगी। मॉरिशस में समंदर का नीला पन्ने-सा हरा रंग उसे बहुत भाता है। समीर के साथ अक्सर यहाँ आकर घंटों बैठती है। किस वक्त लो टाइड-हाई टाइड होगा, उसे पता है। करीब आधे घंटे बैठने के बाद उसने महसूस किया कि समंदर की लहरें रफ्ता-रफ्ता आगे बढ़ने लगी थीं। आस-पास की गीली रेत को देख मन गीला-गीला-सा होने लगा था।
बीते रविवार की बात मन-मस्तिष्क में घूमने लगी। जब वह सुबह-सुबह समीर के साथ बैठी इत्मिनान से चाय की चुस्कियाँ भर रही थी। उस वक्त उसके मुँह से निकला, “समीर, होली आनेवाली है। काश! हम शादी के बाद की पहली होली इंडिया में मनाते, सच घर की बहुत याद आ रही है।” उसकी बात पर समीर कुछ मौन के बाद बोले, “तूलिका, होली के एक दिन पहले मम्मी-पापा यहाँ आएँगे।”

सास-ससुर के अप्रत्याशित आगमन की ख़बर सुनकर वह चौंकी, तो समीर कहने लगे, “सोचा था तुम्हें सरप्राइज़ दूँगा, पर तुम पहले भी कई बार होली पर इंडिया जाने की बात कह चुकी हो, तो रहा नहीं गया, इसलिए बता दिया।” यह सुनकर वह आश्‍चर्य से बोली, “मम्मी-पापा के आने का प्रोग्राम कब बना? तुम पहले से जानते थे क्या?”

“अरे! अब मॉरिशस का प्रोग्राम अचानक तो नहीं ही बनेगा, करीब एक-दो महीने पहले ही मुझे पता चला।”
“वाह! और तुम मुझे अब बता रहे हो। अरे! इसमें सरप्राइज़ जैसा क्या था।
मम्मी-पापा अचानक मॉरिशस आ जाते, तो मेरे लिए कितनी अजीब सिचुएशन होती।” बेसाख़्ता उसके मुँह से निकला, तो समीर अटपटाकर कहने लगे, “अरे! मैं तो सोच रहा था कि मम्मी-पापा के आने की बात सुनकर तुम ख़ुशी से उछल पड़ोगी, पर तुमने तो बड़ा ठंडा रिस्पॉन्स दिया।”

“अरे नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। अब अचानक किसी के आने की ख़बर दोगे, तो थोड़ी हड़बड़ाहट तो होगी न।” तूलिका के कहने पर समीर बोले, “जानती हो, हमारी शादी के पहले मैंने उन्हें कई बार मॉरिशस घूमने आने के लिए कहा, पर वो नहीं आए और अब देखो अपनी बहूरानी के साथ होली खेलने की इच्छा उन्हें मॉरिशस खींच लाई। वो दोनों बड़े उत्साह से यहाँ आ रहे हैं होली मनाने, ये हमारे लिए बहुत बड़ी बात है।”

समीर की बात पर वह संभलकर बोली, “वो तो ठीक है, पर सोचो, तुम्हारे सरप्राइज़ के चक्कर में मेरे इम्प्रेशन की तो बैंड बज जाती। मम्मी-पापा पहली बार घर आते और मैं उन्हें आठ बजे तक सोती मिलती, घर अस्त-व्यस्त मिलता, तो वो यही कहते कि उनकी बहू को घर सँभालना भी नहीं आता। आज पूरा दिन साफ-सफ़ाई में लगना मेरे साथ।”
यह सुनकर समीर अदा से बोले, “आज बंदा आपकी सेवा में सहर्ष तत्पर है।”
पति-पत्नी के बीच हल्के-फुल्के ढँग से बात का समापन हो गया, पर तूलिका का मन न जाने क्यों होली के अवसर पर सास-ससुर के आने को लेकर असहज था।

उसे याद आया कि कुछ दिनों पहले उसने होली पर अपने मायके जाने की बात कही, तो समीर तनाव में आ गए। फिर उसे भारत जाने से ये कहकर रोक लिया कि ऑफिशियल कमिटमेंट के कारण मैं तो भारत जा नहीं सकता, फिर तुम क्या अकेले जाओगी। वो भी होली पर मुझे अकेले छोड़कर होली का त्योहार मनाना अच्छा लगेगा तुम्हें? तुम्हें रंग लगाए बिना मेरी होली तो फीकी रह जाएगी।”
उसके प्रेम के वशीभूत भावुकतावश उसने आगरा जाना टाल दिया, पर अब वह समझ पा रही थी कि यकीनन सास-ससुर के मॉरिशस आने के कार्यक्रम की वजह से उसने उसे मायके जाने से रोका होगा।
और तो और समीर ने सास-ससुर को घुमाने के लिए हफ़्ते-दस दिन की छुट्टी के लिए भी अप्लाई कर दिया। सास-ससुर किसी और समय मॉरिशस आते, तो वह उत्साह से भर जाती, पर मायके में होली न मनाकर यहाँ सास-ससुर के स्वागत के निहितार्थ उसका रुकना मन को बुझा गया।

दो-तीन दिन तक सास-ससुर कहाँ-कहाँ घूमेंगे, खाने में किस दिन क्या-क्या पकेगा, बाहर कहाँ क्या खाएँगे। होली के एक दिन पहले वे आ रहे हैं, तो होली में क्या पकवान बनेंगे, इस पर चर्चा होती रही। चर्चा के बीच एक दिन समीर ने उत्साह से उससे पूछा, “तूलिका, तुम्हें गुझिया बनानी आती है?”
यह सुनकर तूलिका ने थोड़ी मायूसी से कहा, “नहीं।”
“अरे यार! होली में गुझिया नहीं बनेगी, तो मजा ही नहीं आएगा।” एक लंबी साँस लेते हुए समीर ने कहा, तो तूलिका ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। समीर फिर बोले, “चलो कोई बात नहीं। मम्मी से गुझिया बनवाऊँगा। तुम्हें पता है, मम्मी बहुत अच्छी गुझिया बनाती हैं। वह खोए में ड्रायफ्रूट, किशमिश डालती हैं। सच में मजा आ जाता है उनके हाथ की गुझिया खाकर, आह! याद करके ही मुँह में पानी आ गया।”

यह सुनकर तूलिका तपाक से बोली, “गुझिया तो मेरी मम्मी भी बहुत स्वादिष्ट बनाती हैं। उनके हाथ की गुझिया खाओगे, तो सब भूल जाओगे। वह खोए में नारियल-चिरौंजी डालकर ऐसी स्वादिष्ट गुझिया बनाती हैं कि सालभर तक उसका स्वाद जुबां से जाता नहीं है। पर क्या कहूँ, इस साल मैं उनके हाथ की गुझिया और आगरा की होली बहुत मिस करूँगी।”
यह सुनकर समीर गंभीर हो गए। उसे भी सहसा भान हुआ कि कहीं यह सास और माँ में तुलना तो नहीं हो गयी। एकबारगी उसे अफसोस हुआ, पर वह भी क्या करती, माँ की याद आ जाना स्वाभाविक था।

लहरों के स्वर अब तेज़ हो गए थे। उन्होंने सोच-विचार में खोई तूलिका का ध्यान अपनी ओर एक बार फिर आकर्षित किया। तूलिका ने नज़र भरकर समंदर पर दृष्टि डाली। फिर समय देखा एक घंटा व्यतीत हो गया था, पर समीर अभी तक नहीं आए। समंदर अब पास आ गया था, इसका अंदाजा चट्टानों को देखकर लगाया जा सकता था। कुछ देर पहले जो चट्टानें दिख रही थीं, वे अब समंदर में डूबने लगी थीं।

विचारों ने फिर रफ्तार पकड़ी। करीब छह महीने पहले तक वह भी तो इन चट्टानों की भाँति शादी न करने का संकल्प लिए अटल थी, पर एक तरफ उसके माता-पिता शादी के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे थे, तो दूसरी तरफ समीर अपने प्यार की लहरों से उसके संकल्पों को डुबोने का प्रयास कर रहे थे। आखिरकार तूलिका को मनाने में वह सफल हुए। समीर ने उससे कहा, “इकलौती संतान होने के कारण मैं तुम्हारे माता-पिता के प्रति तुम्हारी सोच और उत्तरदायित्व को समझता हूँ। मैं भी परिवार से प्रेम करता हूँ। तुम्हारे माता-पिता मेरे भी माता-पिता होंगे।”

समीर की समझदारी भरी बातों पर रीझकर उसके प्यार और विश्‍वास पर भरोसा करके उसने शादी के लिए ‘हाँ’ कर दी।
पर आज अपनी उस ‘हाँ’ पर उसे चिंता हो रही है। वह तो उसके मायके को हाशिये पर छोड़कर अपने माता-पिता को घुमाने-फिराने और त्योहार मनाने की योजनाएँ बना रहा है। इस विचार की गड़ी फाँस रह-रहकर मन में टीस उठाती रही। नीले समंदर ने धीरे-धीरे समस्त चट्टानों पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था। तूलिका अब बेचैनी-से समीर के आने का इंतजार करने लगी। कुछ ही देर में समीर आते दिखाई दिए। आते ही उन्होंने पूरे उत्साह से बताया कि वे ट्रैवल एजेंसी से सारी जानकारी जुटा लाए हैं और फेरी वगैरह के टिकट भी ले आए हैं। सप्ताहांत के कारण आज वहाँ काफ़ी भीड़ थी, इसलिए देर हुई।

देखते-देखते होली करीब आ गई और साथ ही सास-ससुर के मॉरिशस पहुँचने की घड़ी भी। सुबह-सुबह उठकर उसने रसोई की सारी व्यवस्था देखी, फिर चाय का कप लेकर बालकनी में आ बैठी। मन मायके की उस देहरी पर चिड़िया-सा फुदकता जा बैठा, जहाँ इस वक्त गुझियों की सुगंध फैली हुई थी। वह आनेवाली होली में खुली आँखों से देखे दृश्य में अपने पापा को अबीर-गुलाल को कटोरियों में सजाए बैठे देख पा रही थी। माँ ने चिप्स, पापड़, नमकीन, मठरी जाने क्या-क्या प्लेट में सजाकर रखा था।

तूलिका की आँखों के सामने वे दिन घूम गए, जब उसके पापा बाल्टी में रंग घोलकर उसके लिए रखा करते थे और वह अपनी पिचकारी भरकर रंगों भरी बाल्टी खाली कर देती थी। सहेलियों का हुजूम इकट्ठा होता था। पूरा आँगन गीला हो जाता था, माँ रेफरी की तरह यहाँ-वहाँ रंग न गिराने की सबको हिदायत देतीं, पर उनकी कोई नहीं सुनता था। और तो और माँ को भी घेरकर लाया जाता। पापा उन पर रंग डालते, तो वह बड़बड़ाती फिर पापा से रंग छीनकर उन्हें रंग लगाने का प्रयास करतीं। होली का हुड़दंग सबको रंगों से सराबोर कर देता। वह जानती थी कि कल सब उसे बहुत मिस करेंगे। उसने तो माँ से कहा भी था कि वह होली पर आगरा आना चाहती है, पर माँ ने बड़प्पन दिखाते हुए उसे पति के संग वहीं रहकर होली मनाने की सलाह दे डाली। वह अंदाजा लगा रही थी कि आगरा में उसकी अनुपस्थिति में कैसी होली मनेगी। शगुन के तौर पर माँ-पापा एक-दूसरे को अबीर-गुलाल का टीका लगाकर एक-दूसरे को गुझिया खिलाकर होली की रवायत पूरी कर लेंगे।

तूलिका का मन अपने माता-पिता से बात करने के लिए सहसा छटपटाया, तो वह बात करने के लिए अपना फोन लेने उठी कि तभी समीर ने उसके दोनों गालों में रंग मल दिया। वह अचानक किए गए इस हमले के लिए तैयार नहीं थी, इसलिए अचकचाकर अपने चेहरे से गुलाल झाड़ते हुए कहने लगी, “अभी तो पूरे घर की सफ़ाई की है और तुम गंदा करने चले आए। और होली आज नहीं, कल है। अभी से परेशान मत करो प्लीज़।”

समीर ने उसके चेहरे को ध्यान से देखा, तो उसे उसकी आँखों में नमी दिखाई दी। समीर ने परेशान होकर उसके माथे को छूकर पूछा, “‘क्या हुआ तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न? इतनी उदास-सी क्यों दिख रही हो।” तूलिका कुछ अनमनी होकर वहाँ से जाने लगी, तो समीर उसका रास्ता रोककर कहने लगा, “माना होली कल है, पर तुम्हें रंग आज इसलिए लगा दिया कि कल कहीं मुझसे पहले कोई और रंग न लगा दे। अरे यार, थोड़ा-सा मुस्कुरा दो वरना…” बात अधूरी छोड़कर वह चुप हो गया।

“थोड़ा मुस्कुरा दो, वरना मेरी पेशी हो जाएगी।” यह वाक्य अक्सर वह अपने माता-पिता की मौजूदगी में कहता है और सच भी है। मजाक में भी वह अपने सास-ससुर से समीर की शिकायत कर दे, तो वह अपने बेटे की अच्छी क्लास ले लेते हैं।
सास-ससुर से तूलिका को भरपूर प्यार मिला, इसमें दो राय नहीं थी, फिर भी आज उनके आगमन पर उसके मन में नैराश्य पनपना निस्संदेह ग़लत था। उसके उदास होने की पृष्ठभूमि में मायके जाकर होली न मना पाने का मलाल था। १०-१५ दिनों में वह यहाँ के अनुभव लेकर चले जाएँगे। नहीं-नहीं, अपनी उदासीनता-खिन्नता से वह त्योहार को फीका नहीं कर सकती और बहुत-से त्योहार आएँगे अपने माता-पिता के संग मनाने के लिए। पूरी ताकत से उसने नैराश्य को मन से उखाड़ फेंका। नए सकारात्मक विचार की सहसा चली हवा पूर्वाग्रह के बादल ले उड़ी। अपने उदासीन व्यवहार का संज्ञान लेते हुए वह मुस्कुराकर समीर के हाथों से रंग लेकर उसी को लगाते हुए बोली, “हैप्पी होली।”

कुछ देर बाद समीर अपने माता-पिता को लेने एयरपोर्ट चले गए। वह तैयार होकर नाश्ते-खाने की व्यवस्था देखने लगी। करीब १० बजे गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ पर वह बाहर आई, तो “हैप्पी होली” के समवेत स्वर के साथ सास-ससुर आते दिखाए दिए। पैर छूती तूलिका को सास ने गर्मजोशी से बाँहों में भर लिया। ससुर ने स्नेहजनित आशीर्वाद भरा हाथ उसके सिर पर रखा। परदेस में सहसा अपने देश की महक उसे भली लगी कि तभी उसकी नज़र समीर को ढूँढने लगी, फिर समीर को देख वह हर्षमिश्रित विस्मय से चिल्ला पड़ी। समीर गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे तूलिका के मम्मी-पापा को उतरने में मदद कर रहे थे।

तूलिका की सास तूलिका के माँ-पापा की ओर इशारा करते हुए बोली, “तूलिका, तुमसे बार-बार पूछा कि उपहार में क्या लाएँ, पर तुमने तो बताया ही नहीं, इसलिए हम ख़ुद ही सरप्राइज़ ले आए।”
तूलिका को भौंचक्का देखकर ससुरजी कहने लगे, “हम सब नए साल में आना चाहते थे, पर तुम्हारे माँ-पापा का वीजा तैयार नहीं था, तो सोचा चलो, होली ही मना आएँगे बच्चों के साथ।”

“कैसा रहा सरप्राइज़?”
सहसा समीर ने प्यार से तूलिका का हाथ थामते हुए प्रश्‍न किया, तो जवाब में उसने भावविह्वल मुग्ध नज़रों से निहारकर धीमे से उसकी हथेलियों को दबा दिया।
“पापा, आपके आने का प्रोग्राम कब बना?” एकांत पाते ही तूलिका ने पूछा, तो वह हँसकर कहने लगे, “अचानक तो नहीं बना। तुम्हारे ससुरालवाले तुम्हें सरप्राइज़ देना चाहते थे, सो चुप रहना मुनासिब समझा।”
“हाँ तूलिका, समीर और तुम्हारे सास-ससुर की वजह से संभव हो पाया है यहाँ आना। मुझे तो जानती ही हो, तीज-त्योहार में घर छोड़कर कहीं आती-जाती नहीं, पर तुम्हारे ससुरालवालों ने घेराव करके मनाया कि जहाँ बच्चे, वहीं त्योहार। तुम्हारे पापा भी जोश में आ गए और देखो होली मनाने मॉरिशस चले आए।”

अपनी माँ के कहने पर तूलिका आश्‍चर्य से बोली, “मैं तो आगरा आने को कह रही थी, तब भी नहीं बताया।”
“इसीलिए तो तुझे रोका। जो तू आगरा आ जाती, तो हम यहाँ कैसे आ पाते? पर सच कहूँ, इन दो-तीन महीनों तक अपने आने की बात तुझसे छिपाना बड़ा कठिन काम रहा।” यह कहकर माँ-पापा हंसने लगे। अपने साथ माँ-पापा को यों उल्लासित पाकर वह आह्लादित थी।

यकीनन ये कार्यक्रम तीन-चार महीनों से बन रहा होगा, इसीलिए उसे भारत जाने से रोका समीर ने। यह सोचकर अथाह प्यार और आदर उमड़ आया अपने जीवनसाथी के प्रति।

पूरे घर में अनोखी रौनक थी। सबके व्यवस्थित होने के बाद वह समीर के पास आई। पत्नी के चेहरे के भाव पढ़कर वह नाटकीय अंदाज़ में बोला, “थैंक्यू मत बोलना। वो तो तुम्हें साबित करना था कि मेरी मम्मी तुम्हारी मम्मी से ज़्यादा स्वादिष्ट गुझिया बनाती हैं। अब तुम तो मानने को तैयार थी नहीं, इसलिए हाथ कंगन को आरसी क्या। दोनों को यहीं बुला लिया।”

“अरे चलो, ये बात तो महज़ चार दिन पहले हुई है। क्या मैं जानती नहीं कि तुरत-फुरत ऐसे कार्यक्रम नहीं बनते हैं, पर एक बार को तुम्हारी बात मान भी लूँ तो भी, तूलिका रसोईं की ओर इशारा करते फुसफुसाई, “तुम्हारा ये प्रयास तो बेकार गया। वो देखो- मेरी सास और तुम्हारी सास मिलकर गुझिया बना रही हैं, इसलिए गुझिया में नया स्वाद होगा। और हाँ, कल सबसे पहले तुमसे रंग लगवाऊँगी, ये मेरा वादा है।”

त्योहार की चहल-पहल में लगा ही नहीं कि वे भारत में नहीं हैं। नवदंपत्ति बड़े-बुज़ुर्गों की स्नेह छाया में निश्‍चिंतता और उत्साह के साथ त्योहार की तैयारियों में जुटे थे। घर में गुझियों की महक फैलने लगी थी। इस बार की गुझियों में वाकई नया स्वाद था। उसमें किशमिश-चिरौंजी-अन्य सूखे मेवे और नारियल सब डाले गए थे।

रिश्तों की मिठास में पकी गुझिया स्वादिष्ट और सालोंसाल तक याद की जाने लायक बनी थी। इस होली के रंग शरीर के साथ मन को भी सराबोर कर गए थे।

१ मार्च २०२२

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।