समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
डॉ.-सरस्वती-माथुर-की-कहानी-
नये-साल-का-पहला-दिन
कल नये साल का पहला दिन है। यह
दिन प्रसादी देवी को एक अजीब सी बैचेनी से जकड़ लेता है। जब भी
वह आज के दिन के बारे में सोचती है तो मन की ख़ाली दीवारों पर
अतीत की असंख्य तस्वीरें उभर कर उनके वजूद पर प्रहार करने लगती
है। वे अपनी खोजती निगाहों से इधर-उधर देखने लगती हैं। मन के
अंधेरे में एक तीखी आवाज़ से वह पगलाने लगती हैं, तब उन्हें
लगता है कि कोई पाखी अपना घरोंदा भूल गया है और उसे ढूँढता हुआ
एक डाल से दूसरे डाल पर घूमते हुअे गहरी पीड़ा से करहा रहा है,
यह पीड़ा प्रसादी देवी के मन की दिवारों पर खरोंचें लगाती हुई
हवा में तैरने लगती हैं, प्रसादी देवी की आँखों से दो बूँदें
लुढ़क जाती हैं। हर साल नये साल का यह दिन उन्हें ऐसी ही टीसें
देता है। एक हफ़्ते पहले से उन्हें अपनी सांसें घुटती सी जान
पड़ती हैं। आज दिसंबर का आख़िरी दिन है, बाहर कड़ाके की ठंड
पड़ रही है, शायद पहाड़ों पर बर्फ़ गिरी होगी इसलिये ठंडी
हवाएँ चल रही थी। यह हवाएँ प्रसादी देवी को बहुत उदास कर जाती
है। न जाने क्यों इस उदासी में ख़ामोशी को बाँधती हुई कुछ
आवाज़ें...आगे-
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मुक्ता पाठक की लघुकथा
फिर
आएगा नया साल
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अमृत राय का निबंध
नया साल मुबारक
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ब्रह्मानंद राजपूत से सामयिकी
में
नया साल, मोदी और
चुनौतियाँ
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पुनर्पाठ में नव वर्ष से संबंधित
विविध विधाओं में अनेक
रचनाएँ |