इस पखवारे- |
अनुभूति-में-
शिरीष के फूल को समर्पित विविध विधाओं में अनेक रचनाकारों की संवेदनशील रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- झटपट खाना शृंखला के
अंतर्गत-हमारी-रसोई संपादक शुचि लाई हैं
जल्दी से तैयार होने वाली पौष्टिक व्यंजन विधि-
पाड थाई
नूडल।
|
फेंगशुई
में-
२४ नियम जो घर में सुख समृद्धि लाकर
जीवन को सुखमय बना सकते हैं-
१२- कार्यजीवन की सफलता के लिये फेंगशुई। |
बागबानी-
के अंतर्गत लटकने वाली फूल-टोकरियों के विषय में कुछ उपयोगी सुझाव-
१२-
स्वीट एलीसम का घना गुच्छा |
सुंदर घर-
शयनकक्ष को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो इसके रूप रंग को
आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
१२-
सुरुचिपूर्ण सजावट का आकर्षण |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं- आज के दिन (१५ जून को) इब्ने इंशा, उस्ताद-जिया-फरीदुद्दीन-डागर,
सुरैया, अन्ना हजारे और लक्ष्मीनिवास मित्तल का जन्म...विस्तार से
|
नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है-
आचार्य संजीव सलिल की कलम से सुरेशचंद्र सर्वहारा के नवगीत संग्रह-
ढलती हुई धूप का परिचय। |
वर्ग पहेली- २७०
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष के सहयोग से
|
हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले |
|
साहित्य एवं
संस्कृति में- शिरीष विशेषांक के अंतर्गत |
वरिष्ठ रचनाकारों की चर्चित
कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में प्रस्तुत है गजानन माधव
मुक्तिबोध की कहानी पक्षी
और दीमक
बाहर
चिलचिलाती हुई दोपहर है लेकिन इस कमरे में ठंडा मद्धिम उजाला
है। यह उजाला इस बंद खिड़की की दरारों से आता है। यह एक चौड़ी
मुंडेर वाली बड़ी खिड़की है, जिसके बाहर की तरफ, दीवार से लग
कर, काँटेदार बेंत की हरी-घनी झाड़ियाँ हैं। इनके ऊपर एक जंगली
बेल चढ़ कर फैल गई है और उसने आसमानी रंग के गिलास जैसे अपने
फूल प्रदर्शित कर रखे हैं। दूर से देखनेवालों को लगेगा कि वे
उस बेल के फूल नहीं, वरन बेंत की झाड़ियों के अपने फूल हैं।
किंतु इससे भी आश्चर्यजनक बात यह है कि उस लता ने अपनी
घुमावदार चाल से न केवल बेंत की डालों को, उनके काँटों से बचते
हुए, जकड़ रखा है, वरन उसके कंटक-रोमोंवाले पत्तों के एक-एक
हरे फीते को समेट कर, कस कर, उनकी एक रस्सी-सी बना डाली है और
उस पूरी झाड़ी पर अपने फूल बिखराते-छिटकाते हुए, उन
सौंदर्य-प्रतीकों को सूरज और चाँद के सामने कर दिया है।...
आगे-
*
सरस्वती माथुर की लघुकथा
शिरीष खिल रहा है
*
विद्युल्लता का ललित निबंध
ओ शिरीष,
सुन रहे हो न ?
*
डॉ क्षिप्रा शिल्पी की कलम से
शिरीष का वृक्ष और उसके गुण
*
पूर्णिमा वर्मन का आलेख
डाक टिकटों में शिरीष की उपस्थिति |
|
आभा खरे की लघुकथा
नया दिन
*
गुणशेखर की चीन से पाती
बुद्ध की करुणा और
वाल्मीकि की संवेदना
*
अशोक उदयवाल का आलेख
नेह रखें नाशपाती से
*
पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का सोलहवाँ भाग
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
अश्विन गांधी की कहानी
पर्वातारोहण
सुबह
११ बजे अमृतसर से मुसाफिरी शुरू हुई। आरामदायक बड़ी गाड़ी।
गुरुदीप सिंह ड्राइवर। अशोक आगे बैठा, आशा और केतकी पीछे अपनी
अपनी अलग पायलट सीट में बैठे, और सब का सामान गाड़ी के पिछले
भाग में रखा गया। लंबी मुसाफिरी थी, हिमाचल प्रदेश के चाँबा
पहुँचना था। पंजाब के बड़े बड़े खेतों के बीच से गुजरती हुई गाड़ी
अमृतसर शहर के बाहर आ पहुँची। फौजी घराने से आई आशा को तीन समय
दिन में ठीक से खाना खाना बहुत जरूरी था। गुरुदीप की पहचान
वाला एक ढाबा दिख गया। जबरदस्त पंजाबी खाना हो गया। पंजाब की
प्रख्यात लस्सी भी हो गई। सब को लस्सी हज़म हो गई, सिर्फ केतकी
को तकलीफ हुई, पेट में असुख रहा। गाड़ी आगे चली। गुरुदासपुर, और
फिर पठानकोट। अभी-अभी यहाँ आतंकी हमला हुआ था। आस पास काफी
फौजी दिख रहे थे। कोई रुकावट के बिना गाड़ी पठानकोट से बाहर
निकल गई और हिमाचल प्रदेश की ओर चल पड़ी।
...आगे- |
|