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लेखकों से
 १. ६. २०१६

इस पखवारे-

अनुभूति-में-
प्रमोद कुमार सुमन, हाशिम रजा जलालपुरी, संजय भारद्वाज, परमजीत रीत और मोहन कीर्ति की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- झटपट खाना शृंखला के अंतर्गत-हमारी-रसोई संपादक शुचि लाई हैं जल्दी से तैयार होने वाली पौष्टिक व्यंजन विधि- पनीर काठी रोल

फेंगशुई में- २४ नियम जो घर में सुख समृद्धि लाकर जीवन को सुखमय बना सकते हैं- ११- फेंगशुई घर के नौ भाग

बागबानी- के अंतर्गत लटकने वाली फूल-टोकरियों के विषय में कुछ उपयोगी सुझाव- ११- मिलियन बेल्स की आकर्षक घंटियाँ

सुंदर घर- शयनकक्ष को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो इसके रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- ११- छोटे शयनकक्ष में भरपूर सुविधा

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- आज के दिन (१ जून को) सत्येन्द्र नाथ टैगोर, नरगिस, इस्माइल दरबार, और आर माधवन का जन्म...विस्तार से

नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है- आचार्य भगवत दुबे की कलम से संजीव सलिल के नवगीत संग्रह- काल है संक्रांति का परिचय।

वर्ग पहेली- २६९
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
अश्विन गांधी की कहानी पर्वातारोहण

सुबह ११ बजे अमृतसर से मुसाफिरी शुरू हुई। आरामदायक बड़ी गाड़ी। गुरुदीप सिंह ड्राइवर। अशोक आगे बैठा, आशा और केतकी पीछे अपनी अपनी अलग पायलट सीट में बैठे, और सब का सामान गाड़ी के पिछले भाग में रखा गया। लंबी मुसाफिरी थी, हिमाचल प्रदेश के चाँबा पहुँचना था। पंजाब के बड़े बड़े खेतों के बीच से गुजरती हुई गाड़ी अमृतसर शहर के बाहर आ पहुँची। फौजी घराने से आई आशा को तीन समय दिन में ठीक से खाना खाना बहुत जरूरी था। गुरुदीप की पहचान वाला एक ढाबा दिख गया। जबरदस्त पंजाबी खाना हो गया। पंजाब की प्रख्यात लस्सी भी हो गई। सब को लस्सी हज़म हो गई, सिर्फ केतकी को तकलीफ हुई, पेट में असुख रहा। गाड़ी आगे चली। गुरुदासपुर, और फिर पठानकोट। अभी-अभी यहाँ आतंकी हमला हुआ था। आस पास काफी फौजी दिख रहे थे। कोई रुकावट के बिना गाड़ी पठानकोट से बाहर निकल गई और हिमाचल प्रदेश की ओर चल पड़ी। ...
आगे-
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आभा खरे की लघुकथा
नया दिन
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गुणशेखर की चीन से पाती
बुद्ध की करुणा और वाल्मीकि की संवेदना
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अशोक उदयवाल का आलेख
नेह रखें नाशपाती से
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पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की आत्मकथा
सागर के इस पार से उस पार से का सोलहवाँ भाग

पिछले पखवारे-

सरस्वती माथुर की लघुकथा
धरा का सिरमौर - देवदार
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हजारी प्रसाद द्विवेदी का
ललित निबंध- देवदारु

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शेखर जोशी का संस्मरण
एकाकी देवदारु
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एन के बौहरा व प्रदीप चौधरी का आलेख
देवताओं का वृक्ष देवदार

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वरिष्ठ रचनाकारों की चर्चित कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में प्रस्तुत है शैलेष मटियानी की कहानी ऋण

सब झूठ-भरम का फेर रे-ए-ए-ए...
माया-ममता का घेरा रे-ए-ए-ए...
कोई ना तेरा, ना मेरा रे-ए-ए-ए...
नटवर पंडित का कंठ-स्वर ऐसे पंचम पर चढ़ता जा रहा था, जैसे किसी बहुत ऊँचे वृक्ष की चूल पर बैठा पपीहा, चोंच आकाश की ओर उठाए, टिटकारी भर रहा हो-
बादल राजा, पणि-पणि-पणि... बादल राजा, पणि-पणि... और अपने बीमार बेटे के पहरे पर लगे जनार्दन पंडा को कुछ ऐसा भ्रम हो रहा था कि, मरने के बाद, यह नटवर पंडित भी, शायद ऐसे ही किसी पंछी-योनि में जाएगा और नरक के किसी ठूँठ पर टिटकारी मारेगा - ए-ए-ए... आधी रात बीत जाती है। गाँव के, वन-खेत के कामों से थके लोग सो जाते हैं, मगर नटवर पंडित का कंठ नहीं थमता। वन के वृक्षों और खेतखड़ी फसल को साँय-साँय झकझोरती बनैली बयार, रात के सन्नाटे में फनीले सर्पों जैसी फूत्कारें छोड़ती है। शिवार्पण की रुग्ण काया जैसे प्रेतछाया की पकड़ में आई हुई-सी... आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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