मीनल
देवी को इस पहाड़ी इलाक़े में सब जानते हैं। वे पर्यावरण
की रक्षक हैं। उन्हें याद आये वो दिन जब उनके पति श्रीचंद
जी चमोली एक पहाड़ी गाँव में एक फॉरेस्ट अधिकारी की हैसियत
से ट्रांसफर होकर आये तब वह मात्र एक गृहिणी थी। प्रकृति
से उन्हें शुरू से प्रेम था। जब पति काम पर चले जाते थे तो
घर में दिल लगाने के लिये वो बागवानी करती थीं। मीनल देवी
के बँगले के अहाते से जुड़ा सरकारी ज़मीन पर लगा एक सुंदर
देवदार का पेड़ था। वहाँ बहुत से पक्षियों के छोटे-बड़े
नीड़ बने हुए थे। वहाँ सुबह सुबह जब मीनल देवी बरामदे में
बैठ कर चाय पीती थीं तो बहुत सी रंग बिरंगी चिड़ियाँ वहाँ
चहकती उड़ती दिखती थीं। मीनल देवी ने बहुत से पक्षी वहाँ
देवदार की शाखों पर विश्राम करते भी देखे थे।
एक दिन मीनल देवी सुबह जागीं तो देवदार के तरु के इर्द
गिर्द लोगों की भीड़ जमा थी। पहाड़ी क्षेत्र था तो वहाँ
मीनल ने देखा कि विभिन्न अलग सी दिखने वाली रंगीन वेशभूषा
में बहुत से स्त्री पुरुष खड़े हैं। उनकी पहाड़ी भाषा भी
मीनल देवी को पूरी तरह से समझ नहीं आ रही थी। महिलाओं के
नाक में बहुत बड़ी गोल नथनी झूल रही थी जिसके बीचों बीच
फूल बना हुआ था। मीनल देवी को लगा जैसे बचपन में वो
लोककथओं की किताबें पढ़ती थीं तो उसमें जादूगरनी का पात्र
कुछ ऐसा ही नज़र आता था। मीनल देवी ने उस पहाड़ी रमणी से
इशारे से पूछा -"क्या हो रहा है यहाँ?"
उस पहाड़ी जादूगरनी सी लगने वाली रमणी ने इशारे से बतलाया
कि यहाँ देवदार के पेड़ के नीचे एक पहाड़ी देवता ने जन्म
लिया है। मीनल ने फिर इशारे से कहा -"बताओ कहाँ?" तो वह
रमणी उनका हाथ पकड़ कर तेज़ी से चलती हुई देवदार के पास
पहुँची। मीनल देवी ने देखा कि एक बड़ा सा तिकोना सिंदूर
लगा हुआ काला पत्थर देवदार के तने के नीचे रखा था और उसके
आसपास डकोत टाइप के (शनिवार के दिन माँगने वाले पंडित) लोग
खड़े थे। वो टूटी फूटी हिंदी बोलते थे। उन्होंने मीनल देवी
के पूछने पर बताया कि यह देवदार तो अब कटेगा और यहाँ भैरों
जी का मंदिर बनायेंगें।
"अरे ग़ज़ब करते हो, इतना सुंदर देवदार कैसे काटोगे यह तो
वन विभाग की धरोहर है।"
"नहीं यहाँ यह भैरों जी (एक देवता) उगड़े (निकले) हैं।
इसलिये यह कटेगा और यहाँ मंदिर बनेगा।"
कुछ ही देर में वहाँ से भीड़ छँट गई। मीनल देवी ने अपने
पति को बताया तो वह बोले - "मीनल यह सरकारी वन विभाग की
ज़मीन है, यहाँ गाँव वाले जो रहते हैं उनकी इनमें आस्था
है। हम तुम कुछ नहीं कर सकते और मैं तो किसी प्रपंच में
नहीं पड़ना चाहता। इन्हें अपना काम करने दो। तुम कुछ भी
करोगी तो मीडिया आ जायेगा। फिर तुम आगे जानती ही हो क्या
होगा। मीनल देवी चुप हो गईं, कहती भी क्या...
दिन गुज़रा संध्या हो गयी। चाँदनी बरसाती पूनम की रात थी।
मीनल देवी देवदार तक पहुँची। अभी भी कुछ पहाड़ी चिड़ियाँ
चहचहा रही थीं। उन्होंने देखा पत्थर पर लच्छा, कुमकुम,
फूल, मालाएँ और बताशे कोई चढ़ा गया है। उसे चौकीदार ने
बताया कि कल से मंदिर का काम शुरू होगा। पहले भैरों जी का
चबूतरा बनेगा फिर मंदिर और इस कड़ी में देवदार कटेगा तभी
यह काम बढ़ेगा, अगले हफ़्ते देवदार तरु को काटना पड़ेगा।
मीनल देवी बहुत देर तक इधर उधर टहलती रही। पहाड़ी इलाके
में रात तक गहन सन्नाटा हो जाता है। लोग घरों से बाहर नहीं
आते।
जाने मीनल देवी के अंदर एकाएक कैसी नारी शक्ति आई थी कि
उन्होंने वो पत्थर जिन्हें भैरों जी का नाम दे दिया गया था
उठाया और एक लाल कपड़े में लपेट कर सामने कुछ दूरी पर बने
एक अन्य चबूतरे पर एक कोने में रखकर तुरंत घर लौट आई।
देवदार के नीचे सफ़ाई कर घर में जाकर बिस्तर पर लेट गई।
रात भर करवटें बदलती रही। मीनल देवी की सुबह सुबह ही आँख
लगी थी कि बाहर से आरती के घण्टे बजने की आवाज़ें आने
लगीं, उससे मीनल देवी की आँख खुल गई। वह तुरंत बरामदे में
पहुँची। देखा, सामने चबूतरे के इर्द गिर्द पहाड़ी महिला
पुरूषों की भीड़ जमा थी। वो लोग हाथ में प्रसाद व मालाएँ
लिये खड़े आरती गा रहे थे। एक पहाड़ी महिला को रोक कर मीनल
देवी ने पूछा -"क्या हुआ माई? तो वो बोली- "वो रात ही रात
में भैरों बाबा ने स्थान बदल लिया है। आज वहाँ स्थापना
पूजा है आप भी चलो, टूटी फूटी हिंदी में वो पहाड़ी महिला
बोलते हुए निकल गई।
मीनल देवी ने चैन की साँस ली। उनकी आँखों में खुशी की लहर
दौड़ गई यह देख कर कि देवदार तरु पर चिड़ियाँ चुहलबाजी कर
रही थीं और कोयल से भी मधुर स्वर में एक पहाड़ी चिड़िया गा
रही थी, उनके सुर आरती में घुल मिल कर घाटियों में गूँज
रहे थे।
१५ मई २०१६ |