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 १५. ५. २०१६

इस पखवारे-

अनुभूति-में-
देवदार विशेषांक में देवदार के वृक्ष से सम्बंधित अनेक रचनाकारों की सुरुचिपूर्ण एवं संवेदनशील रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- झटपट खाना शृंखला के अंतर्गत-हमारी-रसोई संपादक शुचि लाई हैं जल्दी से तैयार होने वाली पौष्टिक व्यंजन विधि- आलू गोभी गाजर के पराठे

फेंगशुई में- २४ नियम जो घर में सुख समृद्धि लाकर जीवन को सुखमय बना सकते हैं- १०- ध्वनियाँ जो प्रेरित करें

बागबानी- के अंतर्गत लटकने वाली फूल-टोकरियों के विषय में कुछ उपयोगी सुझाव- १०- फ्यूशिया के रंगीन झुमके

सुंदर घर- शयनकक्ष को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो इसके रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- १०- फीरोजी एक नया रंग

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- आज के दिन (१५ मई को) बल राज साहनी, रामेश्वर शुक्ल अंचल, मन्ना डे, नामवर सिंह व अनुष्का शर्मा का जन्म...विस्तार से

नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है- रामशंकर वर्मा की कलम से श्याम श्रीवास्तव के नवगीत संग्रह- जिंदगी की तलाश में का परिचय।

वर्ग पहेली- २६८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

वरिष्ठ रचनाकारों की चर्चित कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में प्रस्तुत है शैलेष मटियानी की कहानी ऋण

सब झूठ-भरम का फेर रे-ए-ए-ए...
माया-ममता का घेरा रे-ए-ए-ए...
कोई ना तेरा, ना मेरा रे-ए-ए-ए...
नटवर पंडित का कंठ-स्वर ऐसे पंचम पर चढ़ता जा रहा था, जैसे किसी बहुत ऊँचे वृक्ष की चूल पर बैठा पपीहा, चोंच आकाश की ओर उठाए, टिटकारी भर रहा हो-
बादल राजा, पणि-पणि-पणि... बादल राजा, पणि-पणि... और अपने बीमार बेटे के पहरे पर लगे जनार्दन पंडा को कुछ ऐसा भ्रम हो रहा था कि, मरने के बाद, यह नटवर पंडित भी, शायद ऐसे ही किसी पंछी-योनि में जाएगा और नरक के किसी ठूँठ पर टिटकारी मारेगा - ए-ए-ए...
आधी रात बीत जाती है। गाँव के, वन-खेत के कामों से थके लोग सो जाते हैं, मगर नटवर पंडित का कंठ नहीं थमता। वन के वृक्षों और खेतखड़ी फसल को साँय-साँय झकझोरती बनैली बयार, रात के सन्नाटे में फनीले सर्पों जैसी फूत्कारें छोड़ती है। शिवार्पण की रुग्ण काया जैसे प्रेतछाया की पकड़ में आई हुई-सी...
आगे-
*

सरस्वती माथुर की लघुकथा
धरा का सिरमौर - देवदार
*


हजारी प्रसाद द्विवेदी का
ललित निबंध- देवदारु

*

शेखर जोशी का संस्मरण
एकाकी देवदारु
*

एन के बौहरा व प्रदीप चौधरी का आलेख
देवताओं का वृक्ष देवदार

पिछले पखवारे-

भावना सक्सैना की लघुकथा
छुट्टियाँ खत्म हो गईं
*


नवीन पंत का आलेख
पांडुरंग वामन काने

*

डॉ. गुरुदाल प्रदीप की विज्ञान वार्ता
लंबी उम्र तक जीने की कोशिश
*

पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की आत्मकथा
सागर के इस पार से उस पार से का पंद्रहवाँ भाग

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
दीपक शर्मा की कहानी मेंढकी

निम्मो उस दिन मालकिन की रिहाइश से लौटी तो सिर पर एक पोटली लिए थी-
“मजदूरी के बदले आज कपास माँग लायी हूँ।”
इधर इस इलाके में कपास की खेती जमकर होती थी और मालिक के पास भी कपास का एक खेत था जिसकी फसल शहर के कारखानों में पहुँचाने से पहले हवेली के गोदाम ही में जमा की जाती थी।
“इसका हम क्या करेंगे?”
हाथ के गीले गोबर की बट्टी को अम्मा ने दीवार से दे मारा।
“दरी बनाएँगे।”
“हमें दरी चाहिए या रोकड़?” मैं ताव खा गया। मालिक के कुत्ते की सेवा टहल के बदले में जो पैसा मुझे हाथ में मिलता था, वह घर का खरचा चलाने के लिए नाकाफ़ी रहा करता।
“मेंढकी की छोटी बुद्धि है। ज्यादा सोच-भाल नहीं सकती”, गुस्से में अम्मा निम्मो को मेंढकी...आगे-

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संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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