कॉलोनी
की सभी महिलाओं ने कॉलोनी के छोटे से मंदिर में कीर्तन
वाली किट्टी डाल रखी थी। ३० महिलाओं का यह समूह हर माह
मंदिर में मिलता और कीर्तन करता। एक पंथ दो काज, मिलना भी
हो जाता और ईश्वर का स्मरण भी। पर्ची डालकर जिसकी किट्टी
निकलती, वह अगले कीर्तन में प्रसाद व जलपान का आयोजन करती।
पिछली कई बार से सुधा किट्टी में नहीं आ रही थीं। उन की
पड़ोसन कविता जी ने बताया वह बेटे के पास मैसूर में हैं,
अभी पोता हुआ है तो कुछ माह वही रहेंगी। तारीफों के पुल
बँधने लगे... वाह! आज के जमाने में भी ऐसी सास, कमाल है!
आजकल कौन बहू की सेवा करता है? और वह भी तब जबकि सुधा जी
के पाँव में इतनी तकलीफ है।
अगली कुछ बार, हरदम चर्चा का विषय सुधा जी ही रहतीं, वे
वहाँ नहीं हो कर भी वहीं थीं, आदर्श का प्रतीक। उनके प्रति
आदर व सम्मान जताया जाता। अगली किट्टी सुधा जी की निकल आई
थी, बातचीत चल ही रही थी कि पर्ची दोबारा निकाली जाए या
सुधाजी से बात की जाए, कि तभी सुधा जी का ही फोन आ गया
कविता के पास। उसने बताया कि सुधा अगले माह वापस आ रही हैं
तो किट्टी उन्हीं की ओर से होगी।
अगली बार सब मुस्कराती हुई सुधा जी की बधाइयाँ ले रही थीं।
"वाह, सुधा जी आपने तो कमाल कर दिया! बहू कैसी है बच्चा
कैसा है?"
सुधा जी भी सबको मिठाई खिलाती गौरवान्वित हो रही थी, अचानक
राधा ने पूछ लिया तो अब आगे का क्या कार्यक्रम है, यही
रहेंगी या वापस जाएँगी?
... अरे नहीं, अब तो यहीं रहना है, बहू की छुट्टियाँ तो
खत्म हो गईं!
१ मई २०१६ |