इस पखवारे- |
अनुभूति
में-1
शशि पुरवार, विजयप्रताप आँसू, मीना चोपड़ा, बसंत शर्मा और प्रज्ञा
ऋचा
श्रीवास्तव
की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- सर्दियों के स्वास्थ्यवर्धक व्यंजनों की
शृंखला में, हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है-
गोंद के लड्डू।
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फेंगशुई
में-
२४ नियम जो घर में सुख समृद्धि लाकर
जीवन को सुखमय बना सकते हैं-
५- फेंगशुई झरने का उचित स्थान। |
बागबानी-
के अंतर्गत लटकने वाली फूल-टोकरियों के विषय में कुछ उपयोगी सुझाव-
५- तनातनी की सदाबहार ताजगी। |
सुंदर घर-
शयनकक्ष को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो इसके रूप रंग को
आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
५-
फूलदार पर्दों का सौंदर्य |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं- आज के दिन (१ मार्च को) रामप्रसाद गोयनका,
नितिश कुमार, सलिल अंकोला, और मेरीकॉम का जन्म हुआ था...
विस्तार से
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नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है-
डॉ.
शैलेश गुप्त ‘वीर’
की कलम से भावना तिवारी के नवगीत संग्रह-
''बूँद
बूँद गंगाजल'' का परिचय। |
वर्ग पहेली- २६३
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष के सहयोग से
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हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
सुशांत सुप्रिय की कहानी
कहानी खत्म नहीं होती
वे खुद भी एक कहानी थे, एक
लम्बी कहानी और उनके भीतर मौजूद थीं -- अनगिनत कहानियाँ। क्या वे
क़िस्से-कहानियों की खेती करते हैं? हम सारे बच्चे अक्सर हैरान होकर यह सोचते।
छब्बे पा' जी के पास अद्भुत कहानियों का खजाना था। हालाँकि वे हम बच्चों के
पिता की उम्र के थे लेकिन गली में सभी उन्हें पा' जी (भैया) ही कहते थे। प्याज
की परतों की तरह उनकी हर कहानी के भीतर कई कहानियाँ छिपी होतीं। अविश्वसनीय
कथाएँ। उनसे कहानियाँ सुनते-सुनते हम बच्चे किसी और ही ग्रह-नक्षत्र पर चले
जाते। अवाक् और मंत्रमुग्ध हो कर हम उनकी कहानियों की दुनिया में गुम हो जाते।
उनके शब्दों के जादू में खो जाते। परियाँ, जिन्न, भूत-प्रेत, देवी-देवता,
राक्षस-चुड़ैल उनके कहने पर ये सब हमारी आँखों के सामने प्रकट होते या गायब हो
जाते। छब्बे पा' जी की एक आवाज पर असम्भव सम्भव हो जाता, मौसम करवट बदल लेता,
दिशाएँ झूम उठतीं, प्रकृति मेहरबान हो जाती, बुराई घुटने टेक देती, शंकाएँ भाप
बनकर उड़ जातीं।... आगे-
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सुखविंदर सिंह कौशल की
लघुकथा- पिज्जा
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संजय द्विवेदी से सामयिकी में
क्या शिक्षक हार
रहे हैं
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गुणशेखर की चीन से पाती
पीली नदी की
सभ्यता
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पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का तेरहवाँ भाग |
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सुशील यादव का व्यंग्य
जागो ग्राहक जागो
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मधुकर अष्ठाना की पड़ताल
२०१५ में
प्रकाशित नवगीत संग्रह
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महेन्द्र सिंह रंधावा का आलेख
सुंदर वृक्षों की खोज
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पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का बारहवाँ भाग
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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
पुष्पा तिवारी की कहानी
पलटवार
"पापा ने बिल्कुल ठीक किया
तुम्हारे साथ। तुम तो हो ही ऐसी।"
क्रोध से तमतमाये चेहरे ने तर्जनी हिला हिलाकर कहा और फिर फूट फूटकर रो पड़ी।
मैं स्तब्ध थी! रोते रोते भी शब्द अपनी सीमाएँ तोड़ते जा रहे थे। लेकिन मैं तो
पत्थर सी बैठी केवल उसे देख रही थी, चलती जुबान, बिखरे बाल, चलते हाथ पाँव जो
आल्मारी के तह लगे कपड़ों को उठा उठाकर आँगन में फेंक रहे थे, बीच बीच में
आँसुओं के साथ वह आती नाक को बाँह से पोंछते जा रहे थे। आँसुओं के खर्च पर उसे
कभी कोई कंजूसी नहीं रही। जिन्दगी शुरू हुई है अभी उसकी। अभी तो न जाने कितने
बहाने पड़ेंगे। इस समय तो वह क्षण में तोला बनी हुई अपनी माँ को ज्यादा से
ज्यादा दुख देना चाह रही है। पता नहीं क्यों, कहाँ का दुख उसके अपने अंदर उग
आया है जिसे वह क्रोध के जरिए मुझ पर उड़ेल रही है। बिल्कुल अपनी ममता की तरह।
मुझे बात अंदर कहीं चुभ गई तभी तो मैं हिल डुल नहीं पा रही।...
आगे-
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