इस पखवारे- |
अनुभूति
में-1
१५ दिसंबर २०१५ से १४ जनवरी २०१६ तक प्रतिदिन एक नयी काव्य रचना के साथ उत्सव
नये वर्ष का। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- सर्दियों के स्वास्थ्यवर्धक व्यंजनों की
शृंखला में, हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है-
चंद्रकला।
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फेंगशुई
में-
२४ नियम जो घर में सुख समृद्धि लाकर जीवन को सुखमय बना सकते हैं-
१- घर में चीजों को भरकर मत रखें। |
बागबानी-
के अंतर्गत लटकने वाले बगीचों को लिये कुछ उपयोगी सुझावो में पढ़ें-
१- धूप और
छाया का ध्यान रखें। |
सुंदर घर-
शयनकक्ष को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो इसके रूप रंग को
आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
१-
पीले और नारंगी
रंगों का मेला |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं- आज के दिन (१ जनवरी को) सम्पूर्णानन्द, प्रो.
सत्येंद्रनाथ बोस, काशीनाथ सिंह, असरानी, दीपा मेहता, नाना पाटेकर...
विस्तार से
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नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है-
भारतेन्दु मिश्र की कलम से कृष्ण शलभ के नवगीत संग्रह-
''नदी
नहाती है'' का परिचय। |
वर्ग पहेली- २५९
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष के सहयोग से
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हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- नव वर्ष के अवसर पर |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है स्पेन से
पूजा अनिल की कहानी
ब्रोचेता
एस्पान्या
¨सिगरेट मुक्त तुम्हारी उँगलियाँ
देखना मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा लड़की... उस शांत दोपहर सोफिया
को ऐसा कहने से रोक न पाई खुद को। जी! धूम्रपान छोड़ने का पूरा
प्रयास है मेरा। मेरी माँ और मैं, हम दोनों ही अक्टूबर में
धूम्रपान छोड़ देंगी। सोफिया ने पूरे आत्मविश्वास से जवाब दिया।
ब्रोचेता एस्पान्या में समय बिताना अपने घर सा सुखद रहा है।
मधुर संगीत से गुंजित और जिंदादिल वातावरण वाला वह रेस्त्राँ
मद्रिद के चहल पहल वाले एक इलाके में है। उनके बहुत से ग्राहक
भारतीय हैं, जिनमें से कुछ हमारे मित्र भी हैं। रेस्तराँ की
मालकिन मारिया और उसकी बेटी सोफिया अक्सर वहाँ मिल जाती हैं।
दोपहर की सुस्ती काटने के लिये उससे अच्छी कोई जगह नहीं।
स्वादिष्ट कफे सोलो और कफे कोरतादो वहाँ की विशेषता है। उस रोज
लोग कम थे। मैं उसे गौर से देख रही थी। मैंने देखा कि कुछ कुछ
मिनटों के अंतराल पर वह २२ साला लड़की, बाहर जाकर एक सिगेरट के
हडबडाहट में और जल्दी जल्दी कश लेती...
आगे-
*
नरेन्द्र कोहली का व्यंग्य
नया साल मुबारक
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गुणशेखर की चीन से पाती
मन, मधु और
मधुकरी का मादक आतिथ्य
*
उषा वधवा का ललित निबंध
स्नेह
पगी पाती
*
नव वर्ष के अवसर पर
विशेष लेख- देश देश
में नव वर्ष |
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राजेन्द्र वर्मा का व्यंग्य
गेहूँ घुन और लोकतंत्र
*
भारतेन्दु मिश्र का आलेख
गोपाल सिंह
नेपाली की गीत साधना
*
कल्पना रामानी की कलम से
''पंख
बिखरे रेत पर''
: धूप की विभिन्न छवियाँ
*
पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का दसवाँ भाग
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
पद्मा मिश्रा की कहानी
अपना वतन
उकड़ूँ बैठे बैठे उसके घुटनों में
दर्द होने लगा था, जोरों से प्यास भी
लगी थी, कंठ सूखा जा रहा था, पानी पीने की कोशिश भी
जानलेवा साबित होती, बाहर बरसती तड़ तड़ गोलियाँ किसी भी क्षण
उसका सीना छलनी कर देतीं, उस छह फुट लम्बे गबरू जवान मंजीत की
आँखों में आँसू थे, उसने कभी भी अपने आपको इतना विवश और
निरुपाय नहीं पाया था, यही हाल उसके अन्य साथियों का भी था।
कम्पनी के निचले हिस्से के गोदाम में सिकुड़े सिमटे दस भारतीय
युवकों का एक दल भयभीत, निराश, हताशा के एक एक कठिन दौर से
गुजर रहा था। मिटटी की टोंटी वाली मटकी सामने थी, उनके और
प्यास बुझाने के बीच की दुरी बहत मामूली थी लेकिन दर्दनाक अंत
या हादसे को न्योता देने वाली थी, फतेहअली के हाथों में गोली
लगी थी, उसे बुखार भी हो आया था। बार बार पानी की रट लगाता और
फिर अपनी व साथियों की बेबसी जानकर चुप हो जाता। तभी अनीस ने
चुप रहनेका इशारा किया। ...
आगे- |
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