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					 ¨सिगरेट 
					मुक्त तुम्हारी उँगलियाँ देखना मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा 
					लड़की... उस शांत दोपहर सोफिया को ऐसा कहने से रोक न पाई खुद 
					को। 
 - “या! इन्तेन्तो देखार दे फुमार। मी माद्रे ई यो, वामोस आ 
					देखार दे फुमार एन ओक्टुब्रे।” (जी! धूम्रपान छोड़ने का पूरा 
					प्रयास है मेरा। मेरी माँ और मैं, हम दोनों ही अक्टूबर में 
					धूम्रपान छोड़ देंगी।) सोफिया ने पूरे आत्मविश्वास से जवाब 
					दिया।
 
 ब्रोचेता एस्पान्या में समय बिताना अपने घर सा सुखद रहा है। 
					मधुर संगीत से गुंजित और जिंदादिल वातावरण वाला वह रेस्त्राँ 
					मद्रिद के चहल पहल वाले एक इलाके में है। उनके बहुत से ग्राहक 
					भारतीय हैं, जिनमें से कुछ हमारे मित्र भी हैं। रेस्तराँ की 
					मालकिन मारिया और उसकी बेटी सोफिया अक्सर वहाँ मिल जाती हैं। 
					दोपहर की सुस्ती काटने के लिये उससे अच्छी कोई जगह नहीं। 
					स्वादिष्ट कफे सोलो और कफे कोरतादो वहाँ की विशेषता है।
 
 उस रोज लोग कम थे। मैं उसे गौर से देख रही थी। मैंने देखा कि 
					कुछ कुछ मिनटों के अंतराल पर वह २२ साला लड़की, बाहर जाकर एक 
					सिगेरट के हडबडाहट में और जल्दी जल्दी कश लेती, उसके धुएँ में 
					अपने बनते बिगड़ते भविष्य की रूप रेखा देखती, उसकी टोंटी को एश 
					ट्रे में तत्परता से बुझाती और पुनः आकर हमारे साथ बार में बैठ 
					जाती। चुलबुली बातें करती। अपनी बातों से, अपने खुशमिजाज़ 
					स्वभाव से बच्चों, बड़ों सभी का दिल जीत लेती। जब वो बाहर जाती, 
					तो उसका प्रेमी भी उठकर उसके साथ बाहर चल देता, उसके साथ कुछ 
					लम्हे अकेले में बिता उसी के साथ लौट आता।
 
 शाम कब की बीत चुकी थी। पर सूरज अभी सर पर चमक रहा था। अगस्त 
					के नितांत खामोश महीने में मद्रिद एकाकीपन की बेबस परतों में 
					डूबा सा दिखाई देता है। न सड़कों पर यातायात का बोझ, न ही आसपास 
					दोस्तों का मजमा। न त्यौहार का उल्लास, न ही स्कूल या ऑफिस 
					जाने का रूटीन। ऐसे में कुछेक मित्र मिल जाएँ तो शाम की रौनक 
					कुछ देर को एकाकीपन दूर कर देती है। हम सब साथ समय बिताने की 
					गरज से एक बार में ड्रिंक्स लिए बैठे बातें कर रहे थे। इन तेज 
					गर्मियों में दिन का कोई भी पहर एक चिल्ल्ड़ बियर पीने के लिए 
					सुखकर है। शाम के सात बज रहे थे, अभी रात होने में समय था और 
					हम में से किसी को रात की प्रतीक्षा भी न थी।
 
 बार धूम्रपान मुक्त था, वहाँ अंदर धूम्रपान निषिद्ध था, अतः वो 
					उठकर बाहर जाती, जल्दी में या कुछ बेचैनी में छोटे छोटे कश 
					लेती, मानो एक ही पल में पूरी सिगरेट खतम कर लेना चाहती हो, और 
					उसी बेचैनी में अंदर आ जाती। मैं कब से उसे देख रही थी। मुझे 
					ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उसे सिगरेट की आदत न थी न ही उसे धुएँ 
					में मज़ा आ रहा था। बस वो अपनी माँ की नकल कर रही थी। शायद अपनी 
					माँ की सिगरेट की आदत छुड़ाना चाहती थी वह!
 
 मुझे बुरा लग रहा था कि इतनी छोटी सी उम्र में उस खूबसूरत लड़की 
					ने अपने हाथों में मौत पकड़ रखी थी। स्पेन के नियमानुसार सिगरेट 
					के प्रत्येक पैक पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा जाता है “फुमार 
					माता” (धूम्रपान जानलेवा है)। फिर भी मैंने देखा है, यहाँ पर 
					बारह-तेरह साल के बच्चे छुप छुप कर या अपने माता पिता की नकल 
					कर सिगरेट पीना शुरू कर देते हैं। मेरा मन कहता है उन्हें 
					समझाऊँ कि जिस ज़हर को इतना मज़ा ले ले फूँक रहे हैं वे, उसे 
					बनाने वाली कंपनी को अपने सबसे अच्छे ग्राहक की भी परवाह नहीं 
					होती। वो तो अपने ही ग्राहक की जान से खेल कर अपना नाम बनाए 
					रखती है। पर मैं किसी को समझा पाने की सामर्थ्य अपने तक सीमित 
					रख लेती हूँ।
 
 मैंने मारिया की तरफ देखा। मेरी नज़रों में सवाल था। उसकी नज़रों 
					ने वो सवाल पढ़ लिया। उसके चेहरे पर कोई परछाई नहीं आई, वैसे ही 
					हँसते मुस्कुराते हुए मीठी हामी भरी उसने, “सोफिया से वादा 
					किया है डार्लिंग, अक्टूबर में हम दोनों ही सिगरेट छोड़ देंगी।”
 उस लड़की की और मुखातिब हुई मैं, “देखो बेटा, माँ बेटी दोनों ने 
					वादा किया है, पूरा तो ज़रूर होना चाहिए।”
 
 वो अल्हड़ लड़की पूरी अल्हड़ता से खिलखिलाई और कहा, “ऐसो ऐस।” 
					(बिलकुल होगा)।
 
 रात के नौ बजने को आये, हम डिनर के लिए चल दिए। हालाँकि खाने 
					की जल्दी अब भी न थी। उजाला चारों ओर अब भी फैला हुआ था। 
					सूर्यदेव को भी घर जाने की कोई शीघ्रता न थी। आराम से स्पेन की 
					गर्मियों का आनंद ले रहे थे वे भी। यूरोप के बाक़ी देशों के 
					मुकाबले यहाँ देर से खाना खाने का चलन है। देर तक खुले भी रहते 
					हैं रेस्तराँ। अगर रात के बारह बजे कुछ मीठा खाने का दिल हो 
					आये तो बहुत संभव है कि कतार में प्रतीक्षा करनी पड़ जाए।
 
 ये दोनों माँ बेटी मेरे लिए खुशमिजाज़ जीवन की प्रतिमूर्ति रहीं 
					हमेशा से ही। जब भी मिली उनसे, एक सर्वकालिक खुशी के साथ ही 
					देखा। कोई दुःख हुआ भी तो वे उसे अपने बैग के आखिरी कोने में 
					छुपाकर उस पर अपनी हँसी का सामान फैला देतीं। दुःख के पास 
					झाँकने की भी जगह न बचती। बस हँसी ही उनके चारों ओर जगर मगर 
					दिखाई देती। मैं जानती थी कि माँ ने अपना पति खोया था और बेटी 
					ने पिता। मगर जीवन सदा बिना शिकायत देखा उनका।
 
 अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर, नवम्बर बीत गए, उनसे न बात हुई इस 
					बीच न ही मुलाक़ात हो पाई। मिले तो साल के आखिरी दिन, न्यू इयर 
					इव पर ही मिलना हुआ। हम पूरी गर्मजोशी से मिले, इतने महीने न 
					मिल पाने का उलाहना भी बातों के बीच अटका था। मुझे बहुत बदली 
					बदली सी लगी वह। उसकी सेहत कमज़ोर थी। आँखों के नीचे काले धब्बे 
					थे, कमर तक लहकते बाल कानों तक छोटे हो चुके थे। और रंग बेहद 
					बुझा बुझा। मन में कई सवाल घुमड़ रहे थे, डिनर के बाद तक उस से 
					सब कुछ पूछना स्थगित रहा।
 
 कई लोगों के बड़े से ग्रुप में साल की आखिरी रात का उत्सव गमक 
					रहा था। अधिकतर हम सब भारतीय मूल के लोग ही थे ग्रुप में। 
					कुछेक भारतीय मित्रों के जीवन साथी स्पैनिश भी हैं, अतः कुछ 
					स्पैनिश लोग भी साथ दे रहे थे हमारा, किन्तु सभी एक समान थे 
					वहाँ। वही उल्लास, वही भोजन का स्वाद, वही नए साल के स्वागत की 
					उत्सुकता।
 मुझे यहाँ भोजन में थ्री कोर्स मील का रिवाज बेहद पसंद है। 
					सर्वप्रथम हलके स्टार्टर्स सर्व करते हैं, जो एक से अधिक भी हो 
					सकते हैं, फिर भारी मुख्य भोजन और अंत में मीठा। साल की आखिरी 
					रात का मेनू कुछ अपवाद छोड़कर अधिकतर निश्चित रहता है। उस रात 
					मेनू में एक स्पैनिश शेफ द्वारा प्रस्तावित और परिकल्पित भोजन 
					था। इस्पिंच क्रीम विथ चीज़ और लोबस्टर सलाद स्टार्टर रहे। 
					मुख्य भोजन में मांसाहारियों के लिये भपाई हुई सब्जियों के साथ 
					सालमन मछली और शाकाहारियों के लिये सालमन मछली के स्थान पर 
					जुकिनी (एक प्रकार की तुरई) टार्ट परोसा गया। और अंत में 
					चोकलेट सॉस पाइनेप्पल कारपचियो। कारपचियो - एक निश्चित रूप से 
					सज्जित पतली पतली फाँकों को कहते हैं।। वाइन यहाँ के दैनिक 
					भोजन का हिस्सा है। स्पेन के कई शहरों में अलग अलग किस्म की 
					वाइन तैयार की जाती है और उसके स्वाद के अनुसार ही उसे किसी 
					उपयुक्त भोजन के साथ पिया जाता है। इसे भी शेफ ही निर्धारित 
					करते हैं कि किस भोजन के साथ कौन सी वाइन परोसी जा सकती है। 
					भोजन स्वादिष्ट तो था ही, उसका प्रस्तुतीकरण भी बेहद सुन्दर 
					था। और सबसे सुन्दर यह कि भोजन के बाद स्वयं शेफ ने आकर सभी 
					मेहमानों को अभिवादन किया।
 
 डिनर के बाद जब रात के बारह बजने में १० मिनट थे, तब, मद्रिद 
					के ‘प्लाज़ा दे सोल’ से सीधा प्रसारण देखने के लिए रेस्तराँ में 
					लगा टीवी चालू कर दिया गया। वहाँ लगे घंटाघर के सामने जमकर भीड़ 
					रहती है और हर मद्रिद निवासी अपने जीवन में कम से कम एक बार 
					ज़रूर नए साल की शुरुआत उस भीड़ भरे प्लाज़ा में करना चाहता है। 
					घंटाघर की बालकनी में खड़े प्रेसेंटेटर अपनी बातों और कमेंट्री 
					से उस भीड़ की रौनक बनाए रहते हैं। उस रात भी हम रेस्तराँ में 
					उस रौनक को देखते हुए इस साल के अंतिम दस मिनट बीतने की राह 
					देख रहे थे। इस बीच सभी को अंगूर के पैकेट्स बाँट दिए गए। सब 
					ने देख लिया, हर एक पैक में बारह अंगूर थे। ठीक बारह बजे जब 
					घंटाघर में बारह घंटे बजते, तब हर एक घंटे के नाद के साथ एक 
					अंगूर खाना अगले बारह महीने भाग्यशाली होने का संकेत है। हमने 
					भी वैसा ही किया। जैसे ही बारह घंटे खतम हुए, नया साल हमारा 
					स्वागत कर रहा था और हम एक दूसरे को उल्लास भरे साल की बधाई 
					देने में मशगूल हो गए।
 
 जैसे ही कुछ शोर थमा, मुझे मारिया की कहानी पूछने की याद आई। 
					तभी उसने मेरा हाथ पकड़ा, अपना और मेरा ओवर कोट उठाया और मुझे 
					उस हाल से बाहर निकाल लाई। सड़क जीवन से भरपूर थी उस समय। 
					सुन्दर रंग बिरंगे अलंकारों से सारा शहर सज्जित और जगमग था। 
					लोग पटाखों से नव वर्ष का स्वागत कर रहे थे। सब तरफ खुशी बिखरी 
					थी उस पल में। उसने सिगरेट निकाली और जैसे ही जलाने लगी, मैंने 
					हाथ रोक लिया उसका, उसने मेरे तनाव को सूँघ लिया। “मरने वाली 
					हूँ मैं। कैंसर डिटेक्ट हुआ है मुझे।”
 मैं वहीं थम गई। “तुम सिगरेट छोड़ क्यों नहीं देती यार?”
 
 “जब तक जीवन है, मुझे जी लेने दो मेरी जान।” उसने अपने 
					स्वभावगत प्यार से कहा और बेहिचक जला ली सिगरेट। फिर उसने 
					अचानक हुई अपनी कैंसर जाँच के बारे में बताया। अपनी कीमोथेरेपी 
					के किस्से बिना दुःख सुनाती रही। जेल से सजे अपने सुन्दर नाखून 
					दिखाती रही, दिसम्बर की सर्द रात में अपने जीवित होने के छल्ले 
					बनाती रही जो उस बर्फीली हवा में ठहर ठहर जाते। मैं उसके बैग 
					में छिपे दुःख को झाँकता देख भी अनदेखा किये उसके साथ चलती 
					रही। उसकी हँसी पर एक भी प्रश्नचिन्ह लगाए बिना उसे सुनती रही। 
					वह खिलखिलाती रही।
 
 हम एक लंबे रस्ते पर पैदल चल कर लौट आये। अब तक रेस्तराँ का वह 
					हाल डिस्को बन चुका था, सभी थिरक रहे थे अंग्रेजी स्पैनिश 
					धुनों पर। मेरे मन में एक कसैलापन छाया था, इस राग रंग से दूर 
					जाने का मन हो रहा था उस समय। नए साल में प्रवेश करने की खुशी 
					गहरी पीड़ा में बदल गई थी।
 कोने की एक टेबल पर उसकी बेटी और बेटी का प्रेमी खाना खा रहे 
					थे। सोचा उनसे मिल लूँ।
 
 ओला (हलो) और फेलिज़ आन्यो (शुभ नववर्ष!) अभिवादन के बाद 
					हालचाल पूछते हुए कुछ औपचारिक बातचीत हुई और मैं मुख्य बात पर 
					आ गई- “तुम अब भी धूम्रपान करती हो?''
 
 हमेशा की तरह जल्दी में थी वह। मानो एक ही पल में सब बता देना 
					चाहती थी। उसने कहा, “मेरी माँ के लिए बहुत देर हो चुकी थी, 
					डॉक्टर ने कहा कि सिगरेट छोड़ देगी तो बिलकुल जी नहीं पायेगी।। 
					पेरो यो ऐ कुम्प्लिदो मी प्रोमेसा।” (किन्तु मैंने अपना वादा 
					निभाया है।)
 
 -बिएन एचो मी निन्या! एन्होराबुएना पोर एल कोराखे! (बहुत बढ़िया 
					किया तुमने मेरी बच्ची। इस साहस के लिए बधाई तुम्हें।) मैंने 
					बधाई देकर उसका मान बढ़ाया और उसने ग्रासियास कह कर मुझे 
					धन्यवाद दिया।
 उसकी बात सुनकर मुझे खुशी हुई। उसे गले लगा लिया मैंने और पीठ 
					थपथपाकर शाबाशी दी उसे। मेरे कन्धों पर उसकी माँ के हाथ का 
					दबाव पड़ा। मैंने पीछे मुड कर देखा। उसके नेत्र गर्व भरे थे, 
					अपनी बेटी के भविष्य को लेकर कोई शंका न थी उसके पास। मैंने 
					बेटी की आवाज़ में सुनिश्चितता की ध्वनि सुनी। दो वज्र समान 
					शख्सियतें मेरे सामने थीं। व्यर्थ
  ही 
					व्याकुल थी मैं। उनके साथ मुस्कुराई मैं और उन्हें अपने साथ 
					चुर्रो चौकलेट (एक तरह के फीके-मीठे तले हुये पेस्ट्री स्टिक 
					जिन्हें गर्मागर्म चोकलेट में डुबाकर खाते हैं) खाने का 
					निमंत्रण दिया। जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। 
 सुबह के पाँच बजने वाले थे, सर्दी अपने पूरे शबाब पर थी। शहर 
					अब तक सोया न था। हमें भी नींद न थी। हम सब एक चुर्रेरिया की 
					तरफ चल दिए। नव वर्ष का पहला स्वाद था वह। मीठे का आलिंगन, 
					सारी व्याकुलता विदा करने को काफी था। सुबह होने में देर न थी।
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