समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
भारत से
विजय कुमार सापत्ति की कहानी
साहित्य का अखाड़ा
बहुत समय पहले की बात है। मुझे
एक पागल कुत्ते ने काटा और मैंने हिंदी साहित्यकार बनने का
फैसला कर लिया। ये दूसरी बार था कि मुझे किसी पागल कुत्ते ने
काटा था और मैं अपनी ज़िन्दगी से जुड़ा हुआ कोई महत्वपूर्ण फैसला
कर रहा था। पहली बार जब एक महादुष्ट पागल कुत्ते ने काटा था तो
मैंने शादी करने का फैसला किया था, उस फैसले पर आज भी अफ़सोस
है, खैर वो कहानी फिर कभी!
तो हुआ यों कि उस कुत्ते ने मुझे काटा और जब मुझे हॉस्पिटल में
इंजेक्शन लगाए जा रहे थे तो मैंने सोचा कि इस घटना पर कुछ
लिखना चाहिए। दर्द दूर हुआ तो मैं अपने दफ्तर के लिये निकल
पड़ा। रास्ते में मेरे दोस्त बाबू से मुलाकात हुई, मैंने उसे
कुत्ते के काटने की कहानी बतायी, वो जोर जोर से हँसने लगा,
“साले! तुझे काटने के कारण वो कुत्ता जरुर पागल हो गया होगा"।
मैंने कहा, “यार बाबू, दिल बहुत दुखी है, सोचता हूँ अपने दुःख
पर एक कविता लिखूँ।”
उसने कहा, “अबे तो लिख न, कौन रोक रहा है। हम दोनों ने फिर
ठहाका लगाया। आगे-
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कल्पना रामानी की लघुकथा
गुलामी की गाँठ
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हनुमान सरावगी का
दृष्टिकोण-
लॉर्ड मैकाले का सपना
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वेद प्रकाश वैदिक का
आलेख-
उच्च न्यायालय में हिंदी
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सुबोधकुमार नंदन के साथ पर्यटन
अजगैबीनाथ मंदिर और बैद्यनाथ यात्रा |