सिर्फ
१५ दिन शेष हैं ‘हिन्दी दिवस’ में... । उस मध्यमवर्गीय,
लगभग दो हज़ार रहवासियों वाली सोसाइटी में सुरक्षा कर्मियों
की गतिविधि बढ़ गई थी। इस बार संचालकों द्वारा सांस्कृतिक
कार्यक्रमों का आयोजन प्रस्तावित था। हर परिवार से
कार्यक्रमों में हिस्सा लेने का आग्रह किया गया था। सारी
व्यवस्था पर मैनेजर पूरी नज़र थी… और जैसा कि हमेशा होता था
हर विशेष स्थान पर अंग्रेज़ी में सूचना-पट चिपका दिये गए।
किसी भी गड़बड़ी की संभावना के मद्देनजर सुरक्षाकर्मी
सूट-बूट और गले में कसी हुई टाई के साथ चाक-चौबन्द होकर
निगरानी कर रहे थे।
अचानक सुबह-सुबह एक
सुरक्षाकर्मी की नज़र सूचना-पट पड़ी। किसी ने नीचे लिखा था-
“हम हिंदुस्तानी हैं, सब रहवासी हिन्दी अच्छी तरह समझते
बोलते हैं जबकि अंग्रेज़ी बहुतों को नहीं आती फिर ‘हिन्दी
दिवस’ पर कार्यक्रमों की सूचना अंग्रेज़ी में क्यों? हम
चाहते हैं कि आज के बाद हर सूचना हिन्दी में भी लिखी
जाए”... -एक हिन्दी प्रेमी। सोसाइटी के जो बुजुर्ग चाहते
थे कि सूचनाएँ हिन्दी में भी लगाई जानी चाहिएँ, लेकिन नई
पीढ़ी के दबाव के कारण कुछ कह पाने में खुद को असहाय महसूस
करते थे, सूचना पढ़ते ही यह सोचकर खुशी से फूल उठे कि ऐसे
समर्पित हिन्दी प्रेमियों के होते हिन्दी का कोई कुछ नहीं
बिगाड़ सकता।
लेकिन सुरक्षाकर्मी शंकित हो उठे। ५ वर्षों में ऐसा आज तक
नहीं हुआ, फिर यह कौन है जो बिना नाम लिखे हमें धमकी दे
रहा है। थे तो वे सब भी हिंदुस्तानी और हिन्दी बोलते समझते
थे। लेकिन निर्णय लेना उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं था।
बात मैनेजर तक पहुँचाई गई। उसने आदेश दिया कि रात की गश्त
बढ़ा दी जाए और किसी तरह उस रहवासी को खोज निकाला जाए। अभी
हिन्दी दिवस के कारण अतिरिक्त सुरक्षाकर्मियों को भी तैनात
किया गया था। बुजुर्ग रामदीन को रात भर जागकर चौकसी करनी
पड़ती थी। उसे कुछ और चौकस रहने के लिए कह दिया गया। फिलहाल
मैनेजर ने चालाकी से काम लेकर लिखवा दिया-“आपकी बात पर
विचार किया जाएगा लेकिन आपको सामने आकर अपनी बात रखनी
चाहिए।”
दूसरे दिन लिखा हुआ था, “आज के बाद अगर कोई सूचना हिन्दी
में न हुई तो सूचनापत्र फाड़ दिये जाएँगे”। मैनेजर अकड़ू था
और अंग्रेज़ी बोलने में अपनी शान समझता था, वो इस तरह हार
क्यों मान लेता। सोचा किसी तरह यह समय निकल जाए । फिर सब
गुबार शांत हो जाएगा। उसने तुरंत काँच के ढक्कन वाली
पेटियाँ बनवाकर सूचनापत्रों पर ताले लगवा दिये। पर यह
क्या? अगले ही दिन सभी पेटियों के काँच पर गहरा काला रंग
पोत दिया गया था। मैनेजर को आग लग गई, वो किसी भी तरह उस
व्यक्ति को पकड़ना चाहता था। आठ दिन बाकी बचे थे। कहीं रंग
में भंग न हो जाए, यह सोचकर बहुत विचार के बाद मैनेजर ने
सहकर्मियों के साथ मिलकर योजना बनाई और दूसरे दिन ही सहमति
की सूचना शांति के निवेदन के साथ हिन्दी में लगवा दी।
पर्चे बँट चुके थे अतः कोई परेशानी नहीं आई।
आखिर हिन्दी-दिवस आया। सबने उत्साह के साथ कार्यक्रमों में
हिस्सा लिया। सब कुछ आराम से सम्पन्न हो गया। अंतिम दिन
मैनेजर ने अपनी योजनानुसार घोषणा की कि आज हम उस हिन्दी
प्रेमी रहवासी का आभार मानकर धन्यवाद कहते हैं जिसने हमारी
आँखें खोल दीं। कृपया वो सज्जन आगे आए, हम उसे इस शुभ अवसर
पर सम्मानित करना चाहते हैं। जन समुदाय में सन्नाटा छा
गया, सब लोग इधर-उधर देखने लगे। तभी सहसा वृद्ध रामदीन
गर्दन झुकाए हाथ जोड़े मैनेजर के सामने आकर खड़ा हो गया। सब
हैरानी से उसे देखने लगे। मैनेजर अवाक् रह गया। अब तो सबके
सामने उसकी इज्ज़त का सवाल था। पूरा सुरक्षा-अमला रामदीन का
आदर करता था। आखिर उसने अपनी हार मानते हुए रामदीन को गले
लगा लिया। यह देखकर सभी सुरक्षाकर्मी, जो मन से यही चाहते
थे, अपने गले की ‘गुलामी की गाँठ’ को ढीला करते हुए रामदीन
को बधाई देने लगे फिर तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उसे
सम्मानित किया गया।
१ सितंबर २०१५ |