इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-1
राजेन्द्र वर्मा, संजय विद्रोही, पंखुरी
सिन्हा, हातिम जावेद और केवल गोस्वामी की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक
शुचि लेकर आई हैं शर्बतों की शृंखला में-
बादाम का शर्बत।
|
बागबानी में-
आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने
में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
२२-
घास के मैदान की देखभाल |
कला
और कलाकार-
निशांत द्वारा
भारतीय चित्रकारों से परिचय के क्रम में
रबीन
मंडल
की कला और जीवन से परिचय |
सुंदर घर-
घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
२२- नया
रंगरोगन, पुराने पर्दे
|
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं-
आज
के दिन-
(६ जुलाई को) गुरू हर किशन सिंह, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, कैलाश खेर,
महेन्द्रसिंह धोनी, अनिल बिस्वास...
विस्तार से
|
नवगीत संग्रह- में इस सप्ताह
प्रस्तुत है- कुमार रवीन्द्र की कलम से रजनी मोरवाल के नवगीत
संग्रह-
अँजुरी भर प्रीति का परिचय। |
वर्ग पहेली- २४४
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
भारत से
सुदर्शन वशिष्ठ की कहानी
जंगल का संगीत
"पेड़ कुदरत का करिश्मा है। अजूबा है पहाड़ पर पेड़। ऊँचा, सीधा,
समाधि में लीन योगी सा। जो जितना ऊँचा है, उतना ही शांत है।
जितना पुष्ट उतना ही अहिंसक। देखो, टेढ़ी पहाड़ी पर सीधा खड़ा
रहता है, झण्डे सा। हरी वर्दी पहने पेड़ लगता है पहरेदार, कभी
लगता है झबरीला भालू, कभी तिलस्मी एय्यार। कभी लगता है पेड़
रामायण की चौपायी, जो हनुमान ने गायी। कभी ऊपर चाँद से बातें
करता, हवा से हाथ मिलाता...सच्च बच्चो! एक अजूबा है पहाड़ पर
पेड़...।" बाबा कहा करते।
हरे भरे जंगल में शाम की धूप की लाली चमक रही होती। सभी पेड़,
पहाड़ एक ओर से सुनहरे हो कर चमक रहे होते। इस समय पक्षी पूरे
जोर से शोर मचाते। इस कलरव में हवा के साथ जंगल का संगीत बज
उठता।
बाबा की बातें सुनते हुए बच्चों के बीच बैठी वसुंधरा की आँखें
अनायास जंगल की ओर घूम जातीं। जंगल उसे जादूगर सा लगता जिसकी
पोटली में... आगे-
*
दीपक दुबे का व्यंग्य
बाबा जी का ठुल्लू
*
डॉ. कैलाश कौशल का रचना प्रसंग
ललित-निबंध- परंपरा-एवं-आधुनिक-चेतना-का-समन्वय
*
प्रह्लाद रामशरण से
रणजीत पांचाल का साक्षात्कार
*
पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का दूसरा भाग |
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पिछले
सप्ताह- बेला विशेषांक के अंतर्गत |
कुमार गौरव अजीतेन्दु की
लघुकथा- बँसवारी
*
सरिता भावे का यात्रा संस्मरण
रणथम्भौर की बाघिन
*
जगजीत सिंह का आलेख
अकाल तख्त के संस्थापक गुरू हरगोविंद सिंह जी
*
पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का पहला भाग
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
भारत से
सुभाष चंदर की कहानी
बजरंगी लल्ला की बारात
गाँव में बारात की तैयारियाँ
पूरे जोरों पर थीं। बिंदा चाचा कल की बनी दाढ़ी को चिम्मन नाई
से दुबारा खुरचवा रहे थे तो मास्टर तोताराम अपने सफेद सूट के
साथ मैच मिलाने के लिए अपने काले जूतों पर खड़िया पोत रहे थे।
जुम्मन मियाँ के बालों की मेहँदी सूखने वाली थी, सो अब दाढ़ी
रँगाई का काम चल रहा था। बलेसर के ताऊ पगड़ी को साँचे में
बिठाने के प्रयास में खुद बैठे जा रहे थे। किस्सा कोताह ये कि
बारात में जाने वाला हर व्यक्ति मुस्तैदी से अपनी तैयारी में
लगा था।
दूल्हे राजा उर्फ बजरंगी लाल गुप्ता वल्द लाला रामदीन हलवाई की
तैयारियाँ भी काफी हद तक पूरी हो चुकी थीं। पीले रंग की कमीज,
हरे रंग की पैंट और उसके नीचे चमचमाते काले बूढ में बजरंगी
पूरे फिट-फाट लग रहे थे। कुल जमा आधा कटोरी कड़वे तेल ने बालों
के साथ चेहरा भी चमका दिया था।
बजरंगी की अम्मा ने अपने लल्ला को ऊपर से नीचे तक देखा,
न्यौछावर हो आईं। ... आगे-
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