इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-1
बेला के फूल को केन्द्र में रखकर लिखे गए अनेक कवियों की
गजलें, दोहे हाइकु व छंदमुक्त रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक
शुचि लेकर आई हैं शर्बतों की शृंखला में-
सेब का शर्बत।
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बागबानी में-
आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने
में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
२०-
खर-पतवार से बचाव |
कला
और कलाकार-
निशांत द्वारा
भारतीय चित्रकारों से परिचय के क्रम में
कृष्णजी
हौवालजी आरा
की कला और जीवन से परिचय |
सुंदर घर-
घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
२०- गहरे रंगों के विरुद्ध
|
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं-
आज
के दिन-
(२२ जून को) अभिनेता अमरीश पुरी, टॉम ऑल्टर, लेखिका मंजुल भगत,
वंशी वादक रोनू मजूमदार...
विस्तार से
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नवगीत संग्रह- में इस सप्ताह
प्रस्तुत है- सौरभ पाडेय की कलम से देवेन्द्र शर्मा इंद्र द्वारा
संपादित
महेन्द्र भटनागर के नवगीत दृष्टि और सृष्टि का परिचय। |
वर्ग पहेली- २४२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
भारत से
शिबनकृष्ण रैणा की कहानी
रिश्ते
जिस दिन मिस्टर मजूमदार को पता
चला कि उनका तबादला अन्यत्र हो गया है, उसी दिन से दोनों
पति-पत्नी सामान समेटने और उसके बण्डल बनवाने, बच्चों की टी.सी
निकलवाने, दूधवाले, अखबार वाले आदि का हिसाब चुकता करने में लग
गए थे। पन्द्रह वर्षों के सेवाकाल में यह उनका चौथा तबादला था।
सम्भवत: अभी तक यही वह स्थान था जहाँ पर मिस्टर मजूमदार दस
वर्षों तक जमे रहे, अन्यथा दूसरी जगहों पर वे डेढ़ या दो साल
से अधिक कभी नहीं रहे। मि. मजूमदार अपने काम में बड़े ही
कार्यकुशल और मेहनती समझे जाते थे, किन्तु महकमा उनका कुछ इस
तरह का था कि तबादला होना लाजि़मी था। वैसे प्रयास तो उन्होंने
खूब किया था कि तबादला कुछ समय के लिए टल जाए किन्तु उन्हें
सफलता नहीं मिली थी।
ऑफिस से मि. मजूमदार परसों रिलीव हुए थे। ‘लालबाग’ में उनकी
विदाई पार्टी हुई और आज वे इस शहर को छोड़ रहे थे। उनके बच्चे
सवेरे से ही तैयार बैठे थे। श्रीमती मजूमदार ने उन्हें पन्द्रह
दिन... आगे-
*
आजाद बरेलवी का व्यंग्य
घुटनों का भला न दर्द
*
स्वाद और स्वास्थ्य में
तुरई भी स्वास्थ्य वर्धक हैं
*
डॉ. सौरभ मालवीय का
दृष्टिकोण -
संस्कार की परिधि
*
पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा
तेरे
बगैर का दसवाँ भाग |
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पिछले
सप्ताह- बेला विशेषांक के अंतर्गत |
आभा सक्सेना की लघुकथा
बेला महका
*
सुधा उपाध्याय का निबंध
लोकगीतों के
बहाने बेला की याद में
*
मुक्ता की कलम से
बेला का सुगंधित
संसार
*
पुनर्पाठ में सुधीर बाजपेयी का
आलेख- फूलों से
रोगों का इलाज
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
यू.के. से अचला शर्मा की कहानी
उस दिन आसमान में
कितने रंग थे
नर्स
चली गई। और जाने से पहले हिदायतें दोहरा गई कि जो प्लास्टिक की
बोतल दी गई उसी का इस्तेमाल किया जाए। नर्स के जाने के बाद
अभिनव ने पहली बार कमरे को गौर से देखा। सफेद दीवारें, सफेद
छत, बिस्तर पर बिछी चादर भी सफेद, कमरे के साथ जो बाथरूम है,
उसमें रखा तौलिया भी सफेद। इतनी सफेदी कि जैसे पूरे कमरे को
ब्लीच किया गया हो। फिर जाते जाते शायद कमरे की सजावट करने
वाले को कमरे का प्रयोजन याद आया तो उसने रंग छिड़कने के लिए
कमरे की एकमात्र खिड़की पर हल्के नीले रंग का पर्दा टाँग दिया,
बस। खिड़की के नीचे एक बाईस इंच का टीवी और डीवीडी प्लेयर।
सबकुछ बड़ा क्लिनिकल। रुपाली के हाथ में होता तो इस कमरे का मूड
रोमानी होता। दीवारों का रंग हल्का क्रीम होता, खिड़की के पर्दे
से मैच करता बिस्तर के पास एक लैंप होता, बिस्तर पर इंडिया से
लाया गया कोई रेशमी बैडकवर होता, सिरहाने ढेरों रंगबिरंगे कुशन
होते, कम से कम एक गुलदान...
आगे
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