इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-1
टीकम चन्दर ढोडरिया, आशी श्रीवास्तव, संजय आटेड़िया, पुरुषोत्तम व्यास और गिरीश
शर्मा की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- बसंत पंचमी के अवसर पर हमारी रसोई-संपादक शुचि
लाई हैं स्वाद और स्वास्थ्य से भरपूर-
रवा केसरी। |
वास्तु विवेक
के
अंतर्गत-- घर के
निर्माण से संबंधित उपयोगी जानकारी से भरपूर विमल झाझरिया की लेखमाला
वास्तु-विवेक में-
पंचतत्व-और-ऊर्जा-के-कोण |
जीवन शैली में-
१५ आसान सुझाव जो जल्दी वजन घटाने में सहायक हो सकते हैं-
२-
पानी की बोतल सदा साथ रहे।
|
सप्ताह का विचार-
प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में
ही राजा को अपना हित समझना चाहिए।
- चाणक्य |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या-आप-जानते-हैं-
आज के दिन (१९ जनवरी को) माता जीजाबाई, स्वामी विवेकानंद,
महर्षि महेश योगी, अरुण गोविल, साक्षी तँवर का जन्म...
विस्तार से |
नये नवगीत संग्रहों से परिचय के क्रम में इस बार
आचार्य संजीव सलिल की कलम से ब्रजेश श्रीवास्तव के नवगीत संग्रह-
बाँसों
के झुरमुट से |
वर्ग पहेली- २२०
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
अन्विता अब्बी की कहानी-
रबरबैंड
उसका बिस्तर
से उठने का मन नहीं कर रहा था। करवट लेने पर उसे लगा कि बिस्तर
बेहद ठंडा है। उसने आँखों पर हाथ रखा, उसे वे भी ठंडी लगीं
प़लकें उसे भीगी लग रही थीं। तो क्या वह रो रही थी?
नहीं, वह
क्यों रोएगी? और उसने फिर अपनी पलकों को छुआ। उसने पलकें
झपकाईं। उसे बहुत खिंचाव का अनुभव हो रहा था। वह चाहकर भी पूरी
तरह आँख नहीं खोल पा रही थी मानो किसी ने जबरदस्ती उसकी पलकें
पकड़ लीं हों। उसे लगा उसे बाथरूम में जाकर 'वॉश' कर लेना
चाहिए। पर वह नहीं चाह रही थी कि दिन इतनी जल्दी शुरू हो जाय।
रात कैसे इतनी जल्दी खत्म हो गई? उसे लग रहा था कि यह पहाड़-सा
दिन उससे काटे नहीं कटेगा।
उसकी पीठ के नीचे कुछ चुभ रहा था। हाथ डालकर देखा उसकी चोटी का
'रबर बैण्ड' था। उसने अपनी चोटी आगे की ओर कर ली और तभी उसे खयाल आया कि वह
सारी रात अजीबो-गरीब सपने देखती रही है। किसी ने उसके बाल काट दिए हैं उसको
सपने वाली अपनी शक्ल याद आ रही थी उफ कितनी घृणित लग रही थी वह।
आगे-
*
अंशुमान अवस्थी का व्यंग्य
वेताल कथा
*
डॉ अशोक उदयवाल से जानें
सर्दियों में स्वास्थ्यवर्धक
फूलगोभी
*
श्यामनारायण वर्मा का आलेख
मादक छंद वसंत के
*
पुनर्पाठ में रमेश चंद का आलेख
वसंत पंचमी-
साधना का संकल्प लेने का दिन |
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पिछले
सप्ताह- मकर संक्रांति के अवसर पर |
आभा सक्सेना की लघुकथा
मनसी हुई खिचड़ी
*
कुमार कृष्णन के साथ
मकर संक्रांति में
चलें मंदार
*
सौरभ पांडेय का आलेख
विभिन्न प्रांतों
में मकर संक्रांति
*
पुनर्पाठ में समसामयिक आलेख
सूर्य उपासना का
पर्व मकर संक्रांति
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
लता शर्मा की कहानी-
पेंच पाना
"ये मिक्सी खराब हो गई।'' बेटा मिक्सी मेज पर रख कर जाने वाला
था कि बाबू उठ बैठे।
''देखूँ!'' उन्होंने मिक्सी हाथ में ली और सूँघा। न... जलने की
गंध नहीं है। अखबार तह कर रख दिया और चश्मा ठीक कर मिक्सी के
ब्लेड को हिलाने की कोशिश की। नहीं हिला। ''जरा इसका ब्लेड
ओपनर दो।'' आज मिक्सी में त्रिफला पीसा था बाबू ने। तब से ही
जाम पड़ी है। बेटे ने ब्लेड ओपनर
पकड़ा दिया। उसके चेहरे पर बड़ी सूक्ष्म सी व्यंग्यात्मक और बड़ी
तृप्त सी मुस्कान थी। अब करो इस मिक्सी को ठीक तो जानू।
इंजीनियर बेटा मैकेनिक बाप की लिहाड़ी ले रहा था। उनका मजाक उड़ा
रहा था। तंग आ गया था वह उनकी हरकतों से।
हर मशीन के साथ छेड़छाड़। ''ये पंखा आवाज क्यों कर रहा है। जरा
स्टूल ला! पंखा उतार! पेंचकस ला। कस के पकड़!'' हलकान हो जाता
था बेटा! ऊपर से यह हिकारत भरा जुमला और!
''कैसा इंजीनियर है रे तू। तेरे घर की कोई मशीन ठीक नहीं चलती!
आयरन का बल्ब फ्यूज है
आगे- |
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