मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


पर्व परिचय                      

1
सूर्य उपासना का पर्व मकर संक्रांति
-रमेश चंद्र, नरेन्द्र देवांगन एवं संध्या टंडन-


सूर्य की उपासना के लिए उत्तरायण पर्व यानी मकर संक्रांति मनाई जाती है। भारतीय सूर्य-संस्कृति में दैनिक सूर्य पूजा का प्रचलन रामायण काल से चला आ रहा है।

सूर्य उपासना की प्राचीन परंपरा

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख रामकथा में मिलता है। सूर्यवंशी श्रीराम के पूर्व मार्तण्ड थे। राजा भगीरथ भी सूर्यवंशी थे, जिन्होंने तप-साधना के परिणामस्वरूप पापनाशिनी गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करवाया था। कपिल मुनि के आश्रम पर जिस दिन मातु गंगे का पदार्पण हुआ था, वह दिन मकर संक्रांति का ही था। पावन गंगाजल के स्पर्शमात्र से राजा भगीरथ के पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल-अक्षत-तिल से श्राद्ध-तर्पण किया था। तब से माघ मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध-तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है। कपिल मुनि ने वरदान देते हुए कहा था, 'मातु गंगे त्रिकाल तक जन-जन का पापहरण करेंगी और भक्तजनों की सात पीढ़ियों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगी। गंगाजल का स्पर्श, पान, स्नान और दर्शन सभी पुण्यदायक फल प्रदान करेगा।'

मन की संक्रांति के लिये सूर्योपासना

इस दिन सूर्य का प्रवेश मकर राशि में होता है। क्रांति बाहरी दुनिया में भी होती है और मनुष्य के भीतर भी। मनुष्य के भीतर का सूर्य आत्मा है। बाहरी क्रांति में आम तौर पर हिंसा होती है और शक्ति का प्रयोग भी होता है। लेकिन आध्यात्मिक क्रांति सबकी भलाई का संदेश देती है। सभी साथ-साथ रहें, सबकी आजीविका निर्विघ्न चलती रहे, सब शक्तिमान हों, सत्कर्मों से जो कुछ भी हमें मिले, वह हमारा तेज बने। यही मकर संक्रांति का संदेश है। यह पर्व यह एक खगोलीय घटना (सूर्य का मकर राशि में स्थापित होना) के साथ अपने भीतर भी बदलाव लाने की कोशिश की अभिव्यक्ति है। सूर्य आत्म देव के प्रतीक हैं, यानी हमारी आत्मा में जो देवत्व निहित है, उसके प्रतीक। सूर्य ज्ञान, ओज और तेज के प्रतीक हैं। वे पूरे संसार को प्रकाशित करते हैं। मकर संक्रांति अपने भीतर इसी चेतना को विकसित करने वाला पर्व है, हमारे भीतर, हमारी आत्मा में जो सूर्य बसा है, उसके तेज को प्रखर बनाने का पर्व। सूर्य जैसे बादलों से ढका रहता है, वैसे ही हमारी आत्मा भी काम, क्रोध और अहंकार रूपी बादलों से आच्छादित रहती है। बाहरी सूर्य का प्रतीक है बाह्य सूर्य, जो कि जगत को प्रकाशित करता है। यह सूर्य उदय - अस्त होता है, लेकिन हमारा आत्मसूर्य सदैव उदित रहता है।

चेतना और उत्साह के लिये सूर्य की उपासना

तत्वदर्शी महर्षियों ने पर्व व व्रत-विज्ञान के सैकड़ों अंश संयुक्त कर दिए हैं। उनके स्पष्ट अभिमत हैं कि व्रतों के प्रभाव से प्राणी की आत्मा शुद्ध होती है। आत्मबल क्षीण होने पर ही मनुष्य को कई तरह के मनोरोग होते हैं। ऐसी स्थिति में सूर्योपासना से बडा लाभ मिलता है। वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि जब श्रीरामचंद्र रावण के साथ युद्ध करते समय यह सोचकर विचलित हो रहे थे कि रावण की शक्तिशाली सेना पर विजय कैसे प्राप्त होगी तब महर्षि अगस्त्य ने उन्हें आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करने की सलाह दी। इससे श्रीराम के मन में व्याप्त चिंता और निराशा दूर हो गई। उन्होंने लंका पर आक्रमण किया और रावण की सेना पर विजय प्राप्त की। आधुनिक विज्ञान ने भी सिद्ध किया है कि सूर्य की उपासना से संकल्प शक्ति बढ़ती है। ज्ञान तंतु विकसित होते हैं। अंतस्तल में सच्चिदानंद परमात्मा के प्रति श्रद्धा एवं भक्तिभाव का संचार होता है। अत्मा हमारे शरीर में रहती है और शरीर की स्वच्छता एवं स्वास्थ्य आत्मा भी स्वच्छ और प्रसन्न होती है। इसलिये हर त्योहार से किसी विशेष प्रकार के भोजन और उत्सव का संस्कार अवश्य जुड़ा होता है। मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी उत्तर भारत और विशेष रूप से पंजाब में मनाई जाती है। मकर संक्रांति के दिन तमिल हिंदू पोंगल का त्योहार मनाते हैं। असम में बीहू के रूप में यह त्योहार मनाने की परंपरा है। किसी न किसी नाम से मकर संक्रांति के दिन या उससे आगे-पीछे इस तरह का एक त्योहार भारत के विभिन्न प्रदेशों में अवश्य मनाया जाता है। ये सभी प्रकार आत्म विकास के सहायक होते हैं। पूजा पाठ, सम्यक और स्वास्त्यवर्धक खान पान आत्मा को भी संतुष्ट करते हैं।

अच्छे स्वास्थ्य के लिये सूर्य की उपासना

संक्रांति से तिल और गुड़ का नाता है। जो हमारे शरीर को पुष्ट बनाते हैं और प्रतिरोधक शक्ति का विकास करते हैं। विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं- (१) तिल जल स्नान, (२) तिल दान, (३) तिल भोजन, (४) तिल जल अर्पण, (५) तिल आहुति, (६) तिल उबटन मर्दन। निष्कर्ष यह कि सूर्य-संस्कृति में मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना-उपासना का पावन व्रत है, जो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। सूर्य के प्रकाश में निहित रोगनाशक शक्ति को अब वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार कर लिया है। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में धूप स्नान द्वारा कई असाध्य रोगों का इलाज किया जाता है। सूर्य की सात रश्मियों के माध्यम से की जाने वाली सूर्य चिकित्सा पद्धति त्वचा, नेत्र, हृदय और रक्तदोष संबंधी कई गंभीर बीमारियों को दूर करने में सफल रही है। एक पौराणिक कथा के अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को जब दुर्वासा ऋषि के शाप से कुष्ठरोग हो गया, तब सूर्यदेव की उपासना से ही उन्हें पुन: निरोगी काया प्राप्त हुई थी। इसीलिए अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें सूर्यदेव की उपासना करनी चाहिए।

मोक्ष के लिये सूर्य की उपासना

गीता में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरायण के सूर्य को मोक्षदाता बताया है। इसी कारण महाभारत के युद्ध में अर्जुन के बाणों से घायल भीष्म पितामह ने कई दिनों तक शरशैया की पीडा सहन करते हुए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की और जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करके उत्तरायण हो गए, तभी भीष्म ने अपने प्राण त्यागे। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान और दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था। मान्यता है कि इस दिन पुण्य आत्माएँ ही स्वर्ग में प्रवेश करती हैं, इसलिए यह आलोक का पर्व है। भारतीय संस्कृति में पंचदेवों की पूजा का माहात्म्य है। शिव, विष्णु और उनके अवतार, गणपति, आद्यशक्ति के साथ सूर्य, की पूजा, उपासना, आराधना और जप से जापक को लौकिक-पारलौकिक, नैतिक और आध्यात्मिक सभी प्रकार के लाभ मिलते हैं।

मकर संक्रांति का संदेश है कि सूर्य की ही तरह हमें अपना आत्म तज विकसित करना चाहिए, ताकि निराश जनों के मन में भी उत्साह और आनंद भर सकें। मनुष्य के जैसे कर्म, चिंतन और संस्कार होते हैं, वैसी ही उसकी गति होती है। उन्नत कर्म, अच्छी संगति और उच्च चिंतन ही मानव को प्रगति के पथ पर अग्रसर करते हैं। सूर्य से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि वे हमें विकारों से मुक्त करें।

९ जनवरी २०१२

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।