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पर्व परिचय                      

वसंत पंचमी-
साधना का संकल्प लेने का दिन
रमेश चंद

 

वसंत पंचमी मूलरूप से प्रकृति का उत्सव है। इसे आनंद का पर्व भी कहा जाता है। इस दिन से धार्मिक, प्राकृतिक और सामाजिक जीवन के कामों में बदलाव आने लगता है। लेकिन सिर्फ़ प्रकृति का ही नहीं, यह आध्यात्मिक दृष्टि से अपने को समझने, नए संकल्प लेने और उसके लिए साधना आरंभ करने का पर्व भी है।

भारत में माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सरस्वती की पूजा का दिन माना गया है। धार्मिक ग्रंथों में ऐसा मान्यता है कि इसी दिन शब्दों की शक्ति मनुष्य की झोली में आई थी। हिंदू धर्म में देवी शक्ति के जो तीन रूप हैं -काली, लक्ष्मी और सरस्वती, इनमें से सरस्वती वाणी और अभिव्यक्ति की अधिष्ठात्री हैं।

सृष्टि का कामकाज मूक होकर नहीं हो सकता था। इसलिए कहते हैं कि ब्रह्मा ने कमंडल से जल लेकर चारों दिशाओं में छिड़का। इस जल से हाथ में वीणा धारण किए जो शक्ति प्रगट हुई, वह सरस्वती कहलाई। उनके वीणा का तार छेड़ते ही तीनों लोकों में कंपन हो गया (यानी ऊर्जा का संचार आरंभ हुआ) और सबको शब्द और वाणी मिल गई। वसंत पंचमी को सरस्वती का जन्मदिन भी मानते हैं।

सरस्वती कला और विद्या की देवी हैं, ज्ञान के साथ-साथ उन्हें पवित्रता, सिद्धि, शक्ति और समृद्धि की देवी भी माना गया है। वे ज्ञान की गंगा हैं। इसीलिए पुराणों में सरस्वती नदी के पंजाब से निकलकर प्रयाग में गंगा-यमुना के साथ मिलकर त्रिवेणी के रूप में संगम का रूप धारण करने की कल्पना की गई है। दुर्गा सप्तशती में सरस्वती के दिव्य रूप को दुर्गा का ही एक रूप माना गया है।

देवी भागवत में उल्लेख है कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द शक्ति जीव को प्राप्त हुई थी। सरस्वती प्रकृति की देवी भी हैं। वसंत पंचमी पर पीले वस्त्र पहनने, हल्दी से सरस्वती की पूजा और हल्दी का ही तिलक लगाने का विधान है। यह सब भी प्रकृति का ही शृंगार है। पीला रंग इस बात का भी द्योतक है कि फसलें पकने वाली हैं। पीला रंग समृद्धि का सूचक कहा गया है।

वसंत पंचमी आनंद का पर्व है। वसंत आते-आते शीत ऋतु लगभग समाप्त होने लगती है। चारों ओर नई कोपलों और रंग-बिरंगे फूलों से सज-धज कर प्रकृति दुलहन-सी नज़र आती है। इस पर्व के साथ ही मदनोत्सव शुरू हो जाता है। ठंड खत्म होने के बाद मन-मस्तिष्क चेतन और आनंदमय हो जाते हैं।

सरस्वती पूजा मंत्र के आह्वान के साथ आराधना शुरू की जाती है। आज के दिन से बच्चों को विद्यारंभ कराना शुभ माना जाता है। वसंत पंचमी के दिन से ही होली की तैयारी शुरू हो जाती है। इस दिन से फाग खेलना शुरू हो जाता हैं। वसंत पंचमी पर प्रेम के देवता कामदेव के साथ रति की भी पूजा होती है। स्कूल-कॉलेजों में आज के दिन विशेष आयोजन किए जाते हैं।

विश्व के लगभग सभी प्रदेशों में कला, विद्या और ज्ञान का संरक्षक तथा अधिष्ठाता देवियों को ही माना गया है। इसके लिए उनके विभिन्न रूपों की कल्पना की गई है। यूनान के कवि होमर ने सात प्रकार की सरस्वती का उल्लेख किया है। एथंज़ में संगीत की देवी म्यूज की आराधना होती है, इस दिन मंदिर में महिलाएँ गीत और नृत्य का आयोजन करती हैं। यूनान में सैफो सरस्वती का रूप मानी जाती हैं। प्राचीन चीन में बहुरंगी कला की देवी नील सरस्वती की उपासना होती थी। यूरोप में सरस्वती पूजन जैतून के वृक्ष की पूजा के रूप में मनाया जाता है। मिस्र में ज्ञान और प्रज्ञा की देवी के रूप में सरस्वती की पूजा की जाती थी। रोम की अग्नि की देवी वेस्ता पाक विद्या की देवी हैं। इटली में सौंदर्य और स्वास्थ्य विज्ञान की अधिष्ठात्री की पूजा इसी ऋतु में बागों में की जाती थी, जिन्हें फेमिना कहा जाता है।

९ फरवरी २००९

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