दिशाएँ और उनके लाभ
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विमल झाझरिया
पिछले लेख
में सूर्य ऊर्जा और चुम्बकीय ऊर्जा के विषय में बताया था।
अब हम विभिन्न दिशाओं और उसके लाभों की चर्चा करेंगे।
उत्तर दिशा —
इस दिशा से चुम्बकीय तरंगों का भवन में प्रवेश होता है।
चुम्बकीय तरंगें मानव शरीर में बहने वाले रक्त संचार को
प्रभावित करती हैं और इसी से स्वास्थ्य भी प्रभावित होता
है। अतः स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से इस दिशा का प्रभाव बहुत
बढ़ जाता है। स्वास्थ्य के साथ–साथ यह धन को भी प्रभावित
करती है। इस दिशा में निर्माण में कुछ विशेष बातों को
ध्यान में रखना चाहिए जैसे – इस दिशा में भूमि तुलनात्मक
रूप से नीची होनी चाहिए तथा बालकनी का निर्माण भी इसी दिशा
में करना चाहिए। अधिक से अधिक दरवाजे और खिड़कियां इसी दिशा
रखना चाहिए। बरामदा, पोर्टिकों और वाश बेसिन आदि इसी दिशा
में होने चाहिए।
उत्तर–पूर्व दिशा —
यह दिशा दो प्रमुख ऊर्जाओं का संगम है। उत्तर दिशा और
पूर्व दिशा दोनों इसी स्थान पर मिलती हैं। अतः इस दिशा में
चुम्बकीय तरंगों के साथ–साथ सौर ऊर्जा भी मिलती है। इसलिए
इसे देवताओं का निवास अथवा ईशान दिशा कहते हैं। इस दिशा
में सर्वाधिक खुला स्थान होना चाहिए। नलकूप ह्यबोरिंगहृ
एवं तरणताल ह्यस्विमिंगपुलहृ भी इसी दिशा में होना चाहिए।
घर का मुख्य द्वार इस दिशा में शुभ होता है।
पूर्व दिशा —
पूर्व दिशा से सौर ऊर्जा आती है। यह हमारे ऐश्वर्य ख्याति
आदि को बढ़ाती है। अतः भवन निर्माण में इस दिशा में अधिक से
अधिक खुला स्थान रखना चाहिए। इस दिशा में भूमि नीची होनी
चाहिए। दरवाजे और खिड़कियां ज्यादातर इसी दिशा में होना
चाहिए। पोर्टिको भी पूर्व दिशा में बनाया जा सकता है।
बरामदा, बालकनी और वाशबेसिन आदि इसी दिशा में रखना चाहिए।
बच्चे भी इसी दिशा की तरफ मुंह करके पढ़े।
उत्तर – पश्चिम दिशा —
यह दिशा वायु का स्थान है। अतः भवन निर्माण में गोशाला,
बेड रूम और गैरेज इसी दिशा में बनाना चाहिए। सेवक कक्ष भी
इसी दिशा में होना चाहिए।
पश्चिम दिशा —
यह दिशा सौर ऊर्जा की विपरित दिशा है अतः इसे अधिक से अधिक
बन्द रखना चाहिए। ओवर हेड टेंक इसी दिशा में बनाना चाहिए।
भोजन कक्ष, दुछत्ती, टाइलेट आदि इसी दिशा में होने चाहिए।
इस दिशा में भवन और भूमि तुलनात्मक रूप से ऊंची होनी
चाहिए।
दक्षिण–पश्चिम दिशा —
वास्तु नियमों में इस दिशा को राक्षस अथवा नैऋत्य दिशा
कहते हैं। परिवार के मुखिया का कक्ष इसी दिशा में होना
चाहिए। जीना भी इसी दिशा में बनाया जा सकता है। कच्चा माल
रखने का स्थान मशीने और कैश काउण्टर इसी दिशा में होना
चाहिए। इस दिशा में खूलापन जैसे खिड़की, दरवाजे आदि बिल्कुल
नहीं होने चाहिए। किसी भी प्रकार का गड्ढ़ा, शौचालय अथवा
नलकूप इस दिशा में सर्वथा वर्जित हैं।
दक्षिण –पूर्व दिशा —
यह दिशा अग्नि प्रधान होती है। अतः इस दिशा में अग्नि से
संबंधित कार्य करने चाहिए। जैसे कि किचेन, ट्रांसफार्मर,
जनरेटर ब्वायलर आदि इसी दिशा में होने चाहिए। सेप्टिक टेंक
भी इसी दिशा में बनाया जा सकता है।
दक्षिण दिशा —
इस दिशा में यम का स्थान माना गया है। यम का अभिप्राय
मृत्यु से होता है। इसलिए इस दिशा में खुलापन, किसी भी
प्रकार के गड्ढ़े और शौचालय आदि किसी भी हालत में नहीं होना
चाहिए। भवन भी इस दिशा में सबसे ऊंचा होना चाहिए। फैक्ट्री
में मशीन इसी दिशा में लगाना चाहिए। ऊंचे पेड़ भी इसी दिशा
में लगाने चाहिए। इस दिशा में धन रखने से बढ़ौत्तरी होती
है।
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