अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

पुरालेख तिथि-अनुसार पुरालेख विषयानुसार हमारे लेखक लेखकों से
तुक कोश // शब्दकोश //
पता-


७. ४. २०१४

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
शशि पाधा, सुरेन्द्रपाल वैद्य, भास्कर चौधरी, ओमप्रकाश तिवारी और अंशुमान शुक्ला की रचनाएँ।

कलम गही नहिं हाथ-

पिछले दिनों इमारात में यातायात सप्ताह मनाया गया। इस-पर अचानक ध्यान तब गया जब आप्रवासन कार्यालय के सामने भयंकर रूप से...आगे पढ़ें

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- चैत्र नवरात्रि की तैयारी में फलाहारी व्यंजनों की विशेष शृंखला के अंतर्गत- फलाहारी सामो चावल की खीर

आज के दिन कि आज के दिन (७ अप्रैल को) १९२० में सितार वादक रविशंकर, १९२५ में राजनीतिज्ञ चतुरानन मिश्रा, १९४२ में फिल्म अभिनेता...

हास परिहास के अंतर्गत- कुछ नये और कुछ पुराने चुटकुलों की मजेदार जुगलबंदी का आनंद...

घर परिवार के अंतर्गत- खिलौनों को लेकर बच्चों के आग्रह से संबंधित गृहलक्ष्मी से महत्वपूर्ण जानकारी- जब बिस्तर खिलौनों से भर जाए...

सप्ताह का विचार में- नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना बुरा है,-मगर-सामने-हँसकर-बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। -संत तिरुवल्लुवर

वर्ग पहेली-१८०
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

अपनी प्रतिक्रिया लिखें / पढ़ें

साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में यू.एस.ए. से
सुदर्शन प्रियदर्शिनी की कहानी- सेंध

धर्म को लेकर उस ने कभी कोई पूर्वाग्रह या रूढ़ि नहीं पाली। न उस ने कोई कट्टरता का कुत्ता ही पाल रखा है। वह खुले मन से, खुले दिल से स्वीकारती है कि कोई जैसा है ठीक है। जब तक आप किसी पर अपने हिंसक धर्म की लाठी नहीं ठोकते सब ठीक है। फिर यह तो सब हमारे ही गढ़े हुए हथकंडे हैं जिन से हम धर्म को ईश्वर का रास्ता बना कर चलाते हैं या आपसी वैमनस्य की नींव दृढ़ करते है। यों अंततः सब जानते हैं कि धर्म का ईश्वर से कुछ लेना-देना नहीं है। हम ने धर्म को ईश्वर के द्वार की कुण्डी बना रखा है और गाहे-बगाहे उसे टंकारते रहते हैं। भगवान अगर धर्म के रास्ते से ही मिलता है तो किस रास्ते से और कौन है भगवान- हिन्दू ,सिख , ईसाई या मुसलमान या कोई और! किसी के पास इस का उत्तर नहीं है फिर हम क्यों इसे अपना प्रश्न-चिन्ह बना कर दीवार से अपना माथा फोड़ते रहें। धर्म को ईश्वर का मुगालता हो सकता है पर ईश्वर को धर्म का मुगालता नहीं है। पर शायद यह सब खोखली बातें हैं। जब अपने द्वार की कुंडी पर सच खटखटाता है तो हम... आगे-
*

महेश द्विवेदी का व्यंग्य
किराये का पंच बैग
*

डॉ. हरिमोहन के साथ
पंचकेदार की ओर पर्यटन
*

डॉ. देवव्रत जोशी का आलेख
गीतकार मुक्तिबोध
*

पुनर्पाठ में- उषा राजे सक्सेना के
कहानी संग्रह 'प्रवास में' से परिचय

1

अभिव्यक्ति समूह की निःशुल्क सदस्यता लें।

पिछले सप्ताह-


पूजा अनिल की लघुकथा
माँ सब देखती है
*

शीला इंद्र का संस्मरण
नमक सत्याग्रह और मेरी माँ
*

डॉ. अशोक उदयवाल का आलेख
सुन सुन लहसुन
*

पुनर्पाठ में-
चित्रकार सतीश गुजराल से परिचय

*

समकालीन कहानियों में भारत से
पवन चौहान की कहानी- चोर

रात के खाने का निबाला अभी मुँह में डाला ही था कि चोर...चोर... का शोर मेरे कानों से टकराया। मैं चौंका लेकिन यह सोचकर खाने में मशगूल हो गया कि रोज़ रात को गाँव में रहने लगे ईंट बनाने वाले मज़दूर शराब पीकर अक्सर लड़ते रहते हैं। शायद यह शोर उन्हीं का हो। लेकिन थोड़ी देर बाद चोर-चोर के शब्द फिर गूँजे। आवाज़ गाँव के किसी आदमी की ही लग रही थी। वैसे भी बिहार, छत्तीसगढ़, यू.पी., मध्यप्रदेश आदि राज्यों से आए इन मज़दूरों की बोली हमारी बोली से मेल नहीं खाती। मैं हैरान था। मेरी आज तक की जि़न्दगी में मैंने इस घने बसे गाँव में किसी चोर के घुसने के बारे में कभी नहीं सुना था। फिर आज यह शोर कैसा? एक अप्रैल का दिन होने की याद आई तो लगा-कहीं कोई मज़ाक तो नहीं कर रहा है? परंतु कुछ क्षणों के बाद एक बार फिर चोर... चोर... की पुकार सुनाई दी। मैंने रसोई की छोटी खिड़की से बाहर झाँका तो देखा गाँव के कुछ लोग दक्षिण दिशा की ओर भाग रहे थे। आगे-

अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ

आज सिरहाने उपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग पर्व पंचांग घर–परिवार दो पल नाटक परिक्रमा
पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरण
चुटकुलेडाक-टिकट संग्रहअंतरजाल पर लेखन साहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वास्थ्य हास्य व्यंग्यडाउनलोड परिसरहमारी पुस्तकेंरेडियो सबरंग

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

Loading
 

Review www.abhivyakti-hindi.org on alexa.com