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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से पवन चौहान की कहानी— चोर


रात के खाने का निबाला अभी मुँह में डाला ही था कि चोरऽऽ चोरऽऽ का शोर मेरे कानों से टकराया। मैं चौंका लेकिन यह सोचकर खाने में मशगूल हो गया कि रोज़ रात को गाँव में रहने लगे ईंट बनाने वाले मज़दूर शराब पीकर अक्सर लड़ते रहते हैं। शायद यह शोर उन्हीं का हो। लेकिन थोड़ी देर बाद चोर-चोर के शब्द फिर गूँजे। आवाज़ गाँव के किसी आदमी की ही लग रही थी। वैसे भी बिहार, छत्तीसगढ़, यू.पी., मध्यप्रदेश आदि राज्यों से आए इन मज़दूरों की बोली हमारी बोली से मेल नहीं खाती।

मैं हैरान था। मेरी आज तक की जि़न्दगी में मैंने इस घने बसे गाँव में किसी चोर के घुसने के बारे में कभी नहीं सुना था। फिर आज यह शोर कैसा? एक अप्रैल का दिन होने की याद आई तो लगा-कहीं कोई मज़ाक तो नहीं कर रहा है? परंतु कुछ क्षणों के बाद एक बार फिर चोरऽऽ चोरऽऽ की पुकार सुनाई दी। मैंने रसोई की छोटी खिड़की से बाहर झाँका तो देखा गाँव के कुछ लोग दक्षिण दिशा की ओर भाग रहे थे। कुछ न कुछ गड़बड़ तो ज़रूर थी, मैंने भोजन वहीं छोड़ा और जल्दी से हाथ धोकर उन लोगों के साथ आवाज़ की दिशा में दौड़ पड़ा। यह तो हमारा फर्ज़ बनता है। गाँव में कोई मुसीबत में हो और लोग उसकी मदद को न आएँ।

गाँव के चौराहे पर लोगों की भीड़ जमा थी। चौराहा तीन तरफ से सड़क तथा एक तरफ से दूसरे गाँव को जाने वाली पक्की पगडंडी से बना था। सड़क पर पाँच-सात लोग ही थे, लेकिन पगडंडी व खेत पर लोगों का हुजूम लगा हुआ था। अॅंधेरे में लोगों के चेहरों को पहचानने में थोड़ी मुश्किल हो रही थी। कभी-कभार जब टॉर्च की रोशनी भीड़ में चमकती तो भीड़ का अहसास आसानी से हो जाता था। गाँव वालों की बातों से लग रहा था कि चोर भीड़ में ही घिरा हुआ है।
‘‘हमें कुछ और नहीं सुनना। तू ये बता तेरे दो और साथी कहाँ हैं?’’ भीड़ में से एक स्वर उभरा।

भीड़ के घेरे के अंदर सफेद चैक कमीज़ और भूरी पैंट पहने चोर यहीं था। जब भी टॉर्च की रोशनी पड़ती तो उसकी खून से लथपथ सफेद कमीज़ साफ दिखाई देती थी। चोट सिर पर आई थी। खून बहना बंद हो चुका था, लेकिन जहाँ पर चोट आई थी, वह स्थान स्पष्ट था। उस हिस्से के बाल आपस में चिपक चुके थे। सारा नज़ारा यही बयान कर रहा था कि चोर की काफी पिटाई हो चुकी है। खून के रंग में उसकी सारी पीठ नहा चुकी थी। टॉर्च की रोशनी में वह अपना मुँह बार-बार छुपाने की कोशिश कर रहा था। वह नशे में धुत्त था। उसकी आवाज़ बार-बार लड़खड़ा रही थी।

चोर ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘मुझे नहीं पता वे कहाँ गए हैं?’’ इतना सुनना ही था कि भीड़ में से एक व्यक्ति उसके गालों पर ज़ोरदार थप्पड़ रसीद करते हुए बोला, ‘‘ज्यादा चालाक बनता है। मैंने दो और लोगों को तेरे साथ देखा है। जल्दी बता वे कहाँ गए हैं? नहीं तो तेरी खैर नहीं। मैं अभी पुलिस को फोन करता हूँ। फिर सब कुछ तेरे से पुलिस वाले ही उगलवायेंगे।’’

‘‘नहीं साहब, पुलिस को फोन मत करना।’’ चोर ने एक बार फिर हाथ जोड़ दिए थे।
‘‘फिर तू बता क्यों नहीं देता, वे कहाँ गए हैं?’’
‘‘मुझे सच में नहीं पता साहब। वे अॅंधेरे में पता नहीं कहाँ चले गए ?’’ यह कहते-कहते चोर खड़ा होने की कोशिश करने लगा।
‘‘यार, तू नीचे ही बैठा रह। कहीं तुझे चक्कर-वक्कर न आ जाए। इस वक्त तुझे सँभालने वाले तेरे साथी भी गायब हैं। वैसे भी तेरा काफी खून बह चुका है। चोट वाले हिस्से को हाथ से दबाए रख।’’ सारी भीड़ में से इस व्यक्ति के शब्दों में चोर के प्रति दया-भाव झलक रहा था।
काफी देर तक गुस्साए लोग चोर से तरह-तरह के सवाल करते रहे। मेरी भी इच्छा हो रही थी कि लगे हाथ मैं भी दो-चार सवाल कर ही डालूँ और अगर इसने सही ढंग से जवाब न दिया तो मैं भी अपने हाथ की खुजली मिटा लूँगा। इससे पहले कि मैं कुछ पूछता, भीड़ में से एक अन्य स्वर उभरा, ‘‘आप सभी क्या ऊल-जलूल सवाल किए जा रहे हैं। इससे, इसके यहाँ आने का मकसद तो पूछो।’

‘बता भई, तुम तीनों यहाँ किस लिए आए थे?’’ यह गाँव के वार्ड मेम्बर की आवाज़ थी।
‘‘जी, हमें सुन्दरनगर की तरफ जाना था, लेकिन पता नहीं हम यहाँ कैसे आ गए।’’ चोर अपनी सफाई पेश करता हुआ बोला। उसके इतना कहते ही चोर को एक और ज़ोरदार थप्पड़ रसीद हुआ। गालों को सहलाते हुए चोर ने सब पर ऐसी हैरानी भरी निगाह डाली जैसे उसे इस थप्पड़ की ज़रा भी उम्मीद न थी।
‘‘अच्छा तू हमें बेवकूफ बनाता है? स्ट्रीट लाइटों की रोशनी में तुम्हें उत्तर और दक्षिण दिशा का ज़रा भी ख्याल नहीं रहा?’’ वार्ड मेम्बर गुस्से में था। वह आगे बोला, ‘‘असली बात बता? तू और तेरे साथी किसके घर चोरी करने आए थे? आजकल वैसे भी यहाँ आस-पास के गाँव में बहुत-सी चोरियाँ होने लगी हैं। इन सबसे तुम ही जुड़े लगते हो?’’
‘‘ये ऐसे नहीं बताएगा। लगता है अभी मार खाकर इसको तसल्ली नहीं हुई है। थोड़ी और कसकर पड़ेगी तो हरामी के मुँह से सब कुछ बाहर आ जाएगा।’’ भीड़ में से एक स्वर फिर गूँजा।

अभी पाँच-सात हाथ हवा में उठे ही थे कि तभी चौराहे पर ज़ोर की ब्रेक के साथ एक जीप रूकी। रात में जीप की हैड लाइट की रोशनी में सभी गाँव वालों के चेहरे साफ दिखाई पड़ रहे थे। अब तक लोगों की काफी भीड़ चौराहे पर जमा हो चुकी थी। यह दूसरे गाँव के व्यक्ति की जीप थी। सभी की नज़रें जीप की ओर मुड़ चुकीं थी। एक-दो लड़के ड्राइवर से हाथ मिलाने जैसे ही आगे बढ़े, उनकी नज़र एक अनजान से चेहरे पर पड़ी जो तमाशबीन की तरह दोनों बाजू काछों में डाले खड़ा था। उनके कदम कुछ क्षण ठिठके, लेकिन फिर यही सोचकर आगे बढ़ गए कि शायद यह लड़का इसी जीप से उतरा होगा और जीप वाले की जान-पहचान का ही होगा। शायद यह गाँव वालों की इस भीड़ का कारण जानने के लिए उतरा होगा। उसके सिर के बाल कंधों को छू रहे थे। चेहरे पर छोटी-छोटी दाढ़ी और माथे पर सिंदूर का टीका था। उन्होंने अपने दोस्त ड्राइवर से हाथ मिलाया। ड्राइवर भीड़ का कारण जानकर आगे बढ़ गया। लेकिन वह लड़का उसी मुद्रा में घबराहट के भाव लिए चुपचाप वहीं खड़ा रहा।
इस अजनबी को देखकर एक लड़के ने उससे पूछा, ‘‘भाई साहब, आप कौन हैं, कहाँ से आए हैं?’’
‘‘मैं....मैं....। बस यहीं से गुज़र रहा था तो...।’’
उसकी हड़बड़ाहट को देखकर लोगों को कुछ शक-सा हुआ। आधी भीड़ ने अब तक इस अजनबी की तरफ अपना रूख कर लिया था।
‘‘कहीं तू इस चोर का साथी तो नहीं?’’ भीड़ में से स्वर उभरा।
‘‘हाँ...पर...।’’

इससे पहले कि वह कुछ कह पाता, सभी लड़के उस पर लात-घूसों से टूट पड़े। लगभग दस मिनट में दूसरे चोर को न जाने कितने लात-घूसों से रू-ब-रू होना पड़ा। इसका अंदाजा लगाना मुश्किल था। बड़े बुजुर्गों की टोक-टकाई से बड़ी मुश्किल से नज़ारा थमा। दोनों चोरों को इकट्ठे सड़क के एक तरफ बने घर के बरामदे में बिठाया गया।
चौराहे के इस खुले हिस्से में लोगों के कई समूह बन चुके थे। चोरों के विषय में सभी अपनी-अपनी बातें बना रहे थे और अपने-अपने नज़रिये से उनके यहाँ आने का आकलन कर रहे थे।
‘‘बेचारे को कितनी बेरहमी से पीटा इन्होंने। एक की तो पूरी कमीज़ खून से लाल हो चुकी है। मुझे तो इन दोनों पर बड़ा तरस आ रहा है।’’ समूह में खड़ी एक महिला ने कहा।
‘‘इन्हें इतनी बेरहमी से पीटने से क्या होगा? कम से कम इनके यहाँ आने का मकसद तो पूछना चाहिए था।’’ समूह में खड़ी एक अन्य महिला ने अपनी बात रखी।

‘‘चुप करो! ’’ वहाँ खड़े एक अन्य व्यक्ति ने इस महिला की बात काटते हुए कहा, ‘‘तुम औरतों के दिल में तो हर किसी के लिए दया के भाव उभर जाते हैं, कम से कम यह तो सोच लिया करो कि इस तरह से रात को अजनबी हमारे गाँव में आते-जाते रहे तो हम कहाँ तक सुरक्षित रह पाएँगें। आज तो पूर्व प्रधान को कंटीली झाड़ियों में धकेला है। ये कल ऐसे ही किसी का खून भी कर जाएँगे। तब तुम दिखाती रहना अपनी दया। जिस तरह का काम इन्होंनें किया है, वह कोई गुंडा-मवाली या चोर ही कर सकता है।’’

इस व्यक्ति की बातें सुनकर महिलाएँ चुप हो चुकीं थीं और भीड़ में घिरे उन दो चोरों से होने वाली गाँव वालों की बातों को सुनने लगी थीं। सभी अपने-अपने तरीके से चोरों से सच्चाई उगलवाने की कोशिश कर रहे थे। कोई प्यार से तो कोई डरा-धमका कर। लेकिन चोर थे कि कुछ बताने को तैयार ही नहीं थे। वे तो बस यही रट लगाए हुए थे कि वे नशे की हालत में पता नहीं यहाँ कैसे पहुँच गए। अॅंधेरा भी था, इसलिए शायद रास्ता भटक गए।
समूह में खड़े लोग खुसर-फुसर कर फिर से चोरों के यहाँ आने का मकसद अपनी-अपनी सोच के मुताबिक बयान करने लगे थे।

‘‘मुझे तो दूसरे गाँव में पिछले महीने हुई गहनों की चोरी के पीछे इनका ही हाथ होने का संदेह हो रहा है।’’ एक महिला ने कहा। दूसरे ही पल इस बात का खंडन करते हुए दूसरी महिला ने कहा, ‘‘शालू, ज्यादा न बोल ! सभी जानते हैं। उस चोरी के पीछे उसी परिवार के सदस्यों का हाथ था। पुलिस से थोड़ी बहुत छानबीन करवाने का नाटक लोगों को यही दिखाने के लिए था कि सचमुच चोरी हुई है। क्यों बेचारों को उस चोरी से जोड़ रही हो?’’ इस बात को सुनते ही दूसरी महिला बुरा-सा मुँह बनाते हुए ऐसे चुप हो गई, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।
दूसरे झुण्ड के कुछ और ही विचार थे। वे इन्हें चोर नहीं मान रहे थे। बल्कि सिर्फ शराबी ही समझ रहे थे। वैसे भी यहाँ शराब की काफी भट्टियाँ चलती हैं। पास के ईंट-भट्ठा म़जदूर व गाँव के शराबी सभी तो इन घरों में रोज़ अपनी हाज़री भरते हैं। इन घरों में बाहरी लोगों का आना-जाना आम बात है।

इनकी बात भी सही थी। शराब तो इन लोगों ने पी ही रखी थी। लेकिन बात शराब तक ही होती तो ठीक था। ये तो पूर्व प्रधान को धक्का मार कर भागे थे। आखिर इनकी मंशा क्या थी? प्रधान ने इनका पता ही तो पूछा था। इनके इरादे नेक नहीं थे, तभी तो ये भाग खड़े हुए।
‘‘कौन जानता है कि प्रधान ने इनका पता ही पूछा हो। इन चारों के सिवा कोई और था घटना स्थल पर? फिर हम सभी तो प्रधान के व्यवहार से वाकिफ हैं ही।’’ फौजी ने यह सब कह कर कई सवाल खड़े कर दिए थे। फौजी की बातें सुनकर भीड़ एकदम शांत हो चुकी थी। ऐसा लगा जैसे भीड़ को साँप सूँघ गया हो। कुछ क्षण की चुप्पी के बाद चोर से तहकीकात की प्रक्रिया फिर उसी ढंग से शुरू हो गई। सब कुछ देखकर ऐसा लग रहा था। जैसे फौजी की बात को सबने अनसुना कर दिया हो।

‘‘अच्छा, तो तुम तीसरे बंदे का नाम नहीं बताओगे। तुम ऐसे नहीं मानोगे। जा अंशुल, पुलिस को फोन कर। दो डंडे पड़ते ही सब कुछ पता चल जाएगा।’’ वार्ड मेम्बर ने गाँव के एक लड़के को हुक्म लगाते हुए कहा।
पुलिस की धमकी का चोरों पर तो कोई खास असर नहीं हुआ, लेकिन हाँ घर का मालिक जिसके बरामदे में उन्हें बिठाया गया था चिल्ला पड़ा, ‘‘पुलिस को बुलाने की कोई ज़रूरत नहीं है। पुलिस सबसे पहले मुझसे ही सवाल-जवाब करेगी। इनका फैसला यहीं और इसी वक्त सबके सामने कर दो। इन्हें ऐसा सबक सिखाओ कि दूसरी बार बदमाश इस गाँव की तरफ आने का साहस भी न कर सकें। मेरे पास वैसे भी समय नहीं है। मुझे कोर्ट-कचहरी के चक्कर में नहीं पड़ना है।’’
इतना कहने की ही देरी थी कि एक बार दोनों चोरों को फिर भीड़ के लातों-घूसों का सामना करना पड़ा। कुछ औरतों और बुजुर्गों ने सबको एक बार फिर रोका।

नाक-मुँह से निकलने वाले खून को पोंछते हुए एक चोर अपने यहाँ आने के मकसद का खुलासा करते हुए बोला, ‘‘दरअसल हम अपने दोस्त के काम से उसके साथ यहाँ तक आ गए। हमें क्या पता था कि वह हमें जिस काम के लिए यहाँ लाया है, उसका नतीजा हमें इस तरह से भुगतना पड़ेगा।’’ ‘‘कौन-सा काम?’’ उत्सुकतावश एक आदमी ने पूछा।
‘‘इस काम को हमारा समाज दिन में तो गुनाह मानता ही है। रात को तो....।’’ इतना कहते-कहते चोर रूक गया।
‘‘ चोर सच्चाई बकने जा रहा है। लगता है इस बार के लातों-घूँसों ने इसकी पूरी शराब को उतार दिया है। या फिर शायद, अब इसको ज़ख्मों की पीड़ा सताने लगी है। चल यार, ज़रा आगे चल कर सुनें।’’ समूह में खड़े एक व्यक्ति ने लगभग घसीटते हुए दूसरे को भीड़ तक पहुँचाया।
चोर थोड़ा रूककर फिर कहने लगा, ‘‘ वह हमें अपने किसी रिश्तेदार के घर किसी काम के सिलसिले में ले जाने की बात कहकर यहाँ लाया था। लेकिन यहाँ पर पहुँचकर हमें पता चला कि हकीकत कुछ और ही है।’’ अभी वह अपना वाक्य पूरा भी न कर पाया था कि गाँव का पहलवान काकू एक अन्य मरियल से आदमी को कॉलर से पकड़कर लगभग घसीटते हुए घटना स्थल पर पहुँचा, ‘‘असली गुनाहगार तो ये है। आपका तीसरा चोर।’’

पहले चोर की बात को अनसुना-सा करती हुई भीड़ का ध्यान अब पूरी तरह से तीसरे चोर की तरफ खिंच गया था।
तीसरे चोर को देखकर नहीं लगता था कि इसने गाँव के इतने हट्टे-कट्टे पूर्व प्रधान को झाडि़यों पर धकेल दिया होगा। उसे देखकर तो यह लग रहा था जैसे यह अभी गिरा कि अभी गिरा। सूखी-पतली लकड़ी-से उसके शरीर को हवा का छोटा-सा झोंका भी गिरा सकता था। आँखों के नीचे गालों की हड्डियाँ बाहर की ओर ऐसे निकली हुई थीं जैसे अपने चेहरे की रक्षा के लिए उसने नुकीले भाले लगा रखे हों। दाढ़ी हल्की-हल्की बढ़ी हुई थी जो चेहरे को भरा-पूरा बनाने में मदद कर रही थी। लेकिन यह उस चेहरे के साथ बिलकुल मेल नहीं खा रही थी। ऐसा लगता रहा जैसे उसे महीनों से भोजन ही नसीब न हुआ हो या फिर कई दिनों से पेचिस की मार को झेल रहा हो।

जिस तरह से पहले और दूसरे चोर पर गाँव वाले टूट पड़े थे। इस तीसरे चोर के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। शायद सभी समझ गये थे कि इस मरे हुए को मारने से क्या फायदा। लेकिन अशोक से न रहा गया। उसने खींच कर दो थप्पड़ उसके गाल पर रसीद कर ही दिए। तभी जाकर उसके हाथों की खुजलाहट शायद दूर हुई। तीसरे चोर को भी दोनों चोरों के साथ बिठा दिया गया। तीसरे चोर की आँखों में डर का रत्ती भर भी अहसास न था। ऐसा लगता था जैसे उसे अपनी ग़लती पर कोई अफसोस न हो। या जैसे उसने कुछ ग़लत किया ही न हो। तीसरा चोर पहले वाले दोनों चोरों की तरह गँवार नहीं, बल्कि पढ़ा-लिखा लग रहा था। इसकी उम्र यही कोई छब्बीस-सत्ताईस के लगभग होगी।

‘‘तुमने प्रधान को धक्का क्यों दिया?’’
लेकिन इस प्रश्न पर पूर्व प्रधान सभी को लगभग रोकने की मुद्रा में कहने लगा, ‘‘जाने दो यार। वैसे भी इनकी काफी पिटाई हो चुकी है और रही इस मरियल की बात, इस मरे हुए को क्या मारना। जाने दो इन्हें।’’
प्रधान की बात सभी मानते थे। इसलिए लगभग सभी ने अपनी सहमति जताई।
‘‘ऐसे कैसे जाने दें। इतनी रात को हमारे गाँव में ये अजनबी क्या कर रहे थे और वैसे भी इन्हें गाँव के किसी आदमी के ऊपर हमला करने की हिम्मत कैसे हुई ? हम कारण जाने बगैर इन्हें यहाँ से नहीं जाने देंगे।’’ एक रौबीला स्वर भीड़ में से उभरा। यह स्वर रिटायर्ड फौजी का था।
‘‘हमला इन्होंने मुझ पर किया है। मैं इन्हें माफ कर रहा हूँ। तुम भी इन्हें माफ कर दो। इन्हें जाने दो। वैसे भी काफी रात हो चुकी है।’’ प्रधान ने कहा।
हो न हो दाल में कुछ काला, ज़रूर था। अबकी बार की प्रधान की दलील से गाँव वालों का माथा कुछ ठनका था। जो प्रधान कुछ समय पहले इन्हें सबक सिखाने की बात कर रहा था, वह अचानक तीसरे चोर के आ जाने पर अपनी बात से फिसल कैसे रहा है? उसकी बातों से ऐसा लगता रहा जैसे उसका भेद अभी खुल जाने वाला हो।

‘‘प्रधान साहब, यह सिर्फ आपके ऊपर हमले का सवाल नहीं है। ऐसा हादसा गाँव के किसी अन्य व्यक्ति के साथ भी हो सकता है। क्या वह व्यक्ति भी इन्हें आपकी तरह जाने के लिए कहता? कसूरबार को सज़ा मिलनी ही चाहिए। न्याय तो अभी होकर ही रहेगा।’’ फौजी की बातों में आक्रोश था। वह चोर की ओर रुख करते हुए आगे बोला, ‘‘हाँ भई, चोर नम्बर तीन। बता, तूने गाँव में एंट्री क्यों मारी और प्रधान के ऊपर हमला क्यों किया? सच-सच बताना। नहीं तो तू इस फौजी को नहीं जानता। हमने तुम जैसे बड़ों-बड़ों को दुरूस्त किया है। ऐसा फौजी ट्रीटमैंट करूँगा कि बच्चू सारी उम्र इस फौजी को याद करता फिरेगा।’’ फौजी अपनी धाक जमाता हुआ बोला।

तीसरा चोर बेधड़क व बेख़ौफ होकर बोला, ‘‘गाँव वालों, अगर मैं सच कहूँगा तो आपको विश्वास नहीं होगा। हम तीन, आप लोगों के बीच अजनबी व अकेले हैं। अभी स्थिति ऐसी है कि हमारा सच भी आपको झूठ लगेगा। इसलिए सच बताने से क्या फायदा? आप चाहें तो हमें मार सकते हैं और जितना हो सके हमें मारिए। हम चुपचाप आपकी मार खाने को तैयार हैं। हमारी बातों की सच्चाई की गवाही देने के लिए हम तीनों के सिवा और कोई नहीं है और हम पर तो पहले ही आप लोगों द्वारा तरह-तरह के इल्ज़ाम जड़े जा चुके हैं। सच बोलने वालों की वैसे भी आजकल कोई कहाँ सुनता है। ग़लती हमारी ही थी जो हम रात को ही आ गए।’ इतना कहते ही चोर चुप हो गया।

छोटे-छोटे समूहों में बँटे गाँव वाले अब भीड़ के पास जमा हो चुके थे। पंजों के बल ऊपर उठ-उठ कर चोर का चेहरा देखने व उसको ध्यान से सुनने का प्रयास कर रहे थे।
चुप्पी तोड़ते हुए फौजी बोला, ‘‘बच्चे, तू बोल। चाहे और तेरी बातों पर यकीन करे या न करे। मैं तुम्हारी बात पर ज़रूर यकीन करूँगा।’’ तीसरे चोर ने एक नज़र प्रधान की ओर डाली और फिर न जाने क्या सोचकर गर्दन झुका ली। वह देर तक चुपचाप बैठा रहा।
‘‘चोर यही है। तभी तो यह यूँ खामोश है। यह हम सब को उल्लू बना रहा है।’’ भीड़ में से फिर गुस्से से भरा एक और स्वर गूजा। यह सुनते ही तीसरा चोर गर्दन ऊपर की ओर कर लगभग चिल्ला पड़ा, ‘‘नहीं, हम चोर नहीं हैं। हम रात को इस गाँव में घुसे ज़रूर लेकिन किसी ग़लत मकसद से नहीं। हम तीनों शरीफ घरों के लड़के है। प्लीज, हम पर चोरी का यह इल्ज़ाम न लगाएँ।’’

‘‘तो फिर सच्चाई क्यों नहीं बक देते।’’ वार्ड मेम्बर ने कहा।
इस पर तीसरे चोर ने कहना शुरू किया, ‘‘दरअसल मैं एक लड़की से मिलने आया था जो आपके गाँव में खुले इंजीनियरिेग कॉलेज में पढ़ती है और यहीं हॉस्टल में रहती है। हम दोनों आपस में प्यार करते हैं लेकिन यह बात उसके घरवालों को जरा भी मंजूर नहीं है। उसके घर वाले मुझे कोई नुकसान न पहुँचाएँ इसलिए उसने अपनी कसम देकर मुझे मिलने के लिए मना कर दिया था। न चाहते हुए भी हम एक-दूसरे से काफी अरसे से मिल नहीं पाए थे। यह हम दोनों की मजबूरी थी। लेकिन कल ही मुझे उसका फोन आया और उसने आज मुझसे मिलने को कहा। कहा, बहुत जरूरी काम है मिलने पर बताऊँगी। गाँव शहर से काफी दूर है इसलिए हमें कॉलेज ढूंढने में परेशानी भी हुई और देरी भी। हमें रात हो चुकी थी। हम काफी देर तक भटकते रहे। लेकिन तभी मेरा यह तीसरा दोस्त मुझे मिला जो हमें यहाँ ले आया। मुझे उसने आज ही बुलाया था, इसलिए मुझे रात को ही अपने दोस्तों के साथ यहाँ आना पड़ा। अभी हम यहाँ पहुँचे ही थे कि यह व्यक्ति हमें यहाँ सड़क पर टहलता हुआ मिला।’’

तीसरे चोर ने प्रधान की ओर इशारा करते हुए कहा,‘‘इसने हमें रोका और सिगरेट की माँग करने लगा। सिगरेट हममें से कोई पीता नहीं, इसलिए हमने सिगरेट के लिए मनाही कर दी। सिगरेट न मिलने पर ये हमसे रूपयों की माँग करने लगा। जब हमने रूपये देने से इनकार किया तो यह शख्स हमें धमकाने लगा। जब हम इसकी धमकियों से न डरे तो इसने तेज धार हथियार दिखा कर हम से रूपये बसूलने की कोशिश की। लेकिन जब हम फिर भी न माने तो इसने अपने हथियार से मेरे एक साथी के सिर पर वार कर दिया। जैसे ही यह शख्स मुझ पर वार करने लगा, मैंने इस धक्का दे डाला। इतना ही हुआ था कि ये ज़ोर-ज़ोर से चोर-चोर चिल्लाने लग पड़ा। हम डर गए और हड़बड़ाहट में भाग पड़े। जिसमें मेरा साथी ये ड्राइवर पकड़ा गया, जिसके सिर चोट आई है।’’

सभी तीसरे चोर की बातें ध्यान से सुन रहे थे तभी वह आगे बोला, ‘‘इससे पहले कि हम अपने साथी को छुड़ाते, बहुत सारे लोग इकट्ठे हो चुके थे। फिर उस समय सबको समझाना मूर्खता होती। हम भागने की बजाय वहीं खड़े रहकर भी गाँव वालों को अपनी सच्चाई बता सकते थे, लेकिन हम जानते हैं कि कोई भी व्यक्ति सबसे पहले अपने आदमी पर विश्वास करता है। उसके बाद दूसरों पर। फिर यह समय भी रात का था। इसलिए हमने भागना ज्यादा बेहतर समझा। लेकिन मेरी वजह से जब मेरे दोनों दोस्तों को इतनी मार खानी पड़ी तो मुझसे नहीं रह गया। मैंने काकू पहलवान को अपनी मज़बूरी बयान कर दी। ये मुझे अपने संरक्षण में यहाँ ले आए। बस, यही सारी बात थी जो मैंने आपको बता दी। अब आगे आप जाने, आपकी इच्छा। आप हमारी बात पर विश्वास करें या न करें। हमें मारें या पुलिस के हवाले कर दें। लेकिन मुझे इस बात का सदा पछतावा रहेगा कि मेरी वजह से मेरे दोस्तों को मार खानी पड़ी। ’’

‘‘अगर ये बात थी तो यह दोनों अब तक चुप क्यों थे? यह सब ये दोनों बता देते तो शायद बात यहाँ तक न पहुँचती।’’ फौजी ने कहा।
फौजी की बात का जवाब देते हुए पहला चोर बोला, ‘‘पहली बात, हमें अपनी सच्चाई पेश करने का मौका ही नहीं दिया गया। शायद नरमी से यह सब हमसे पूछा जाता तो हम बिना डर और आप पर विश्वास कर सब कुछ साफ-साफ बता देते। जब बिना कुछ किए ही हमें चोर बना दिया गया तो लड़की वाली बात बताकर हम अपने पैरों पर भला क्यों कुल्हाड़ी मारते।’’
सभी अपने किए पर शर्मिन्दा थे। खासकर औरतों को तो इन लड़कों पर बड़ा तरस आ रहा था। कह रहीं थी,‘हाय ! देखो बेचारों को कितना मारा इन्होंने। बेचारों पर जरा भी तरस न आया।’
भीड़ की नज़रें अब प्रधान को ढूँढने का प्रयास कर रहीं थीं, लेकिन असली दोषी प्रधान जाने कब का भीड़ में से खिसक चुका था।

 ३१ मार्च २०१४

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