इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
कुमार दिनेश प्रियमन, नितिन जैन,
कात्यायनी, पूनम शुक्ला और शैल अग्रवाल की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत
दक्षिण भारत के व्यंजनों की विशेष शृंखला में इस बार प्रस्तुत है-
करेले का तोरण। |
रूप-पुराना-रंग
नया-
शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें
रूप बदलकर-
पुस्तक
चिह्नों का अलंकृत संसार। |
सुनो कहानी- छोटे
बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में
इस बार प्रस्तुत है कहानी-
पौधों की देखभाल।
|
- रचना और मनोरंजन में |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-२९ का विषय है मेरा देश। रचना भेजने की अंतिम तिथि
है १० अगस्त। विस्तार से जाने के लिये
यहाँ देखें। |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें। |
लोकप्रिय
कहानियों
के
अंतर्गत- इस
सप्ताह प्रस्तुत है २४ अगस्त २००६ को
प्रकाशित दीपक शर्मा की कहानी-
गुलाबी
हाथी।
|
वर्ग पहेली-१४५
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
|
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य
एवं
संस्कृति
में-
|
समकालीन
कहानियों में भारत से
राहुल यादव की कहानी
दोस्ती
कड़ाके की हड्डी गला देने वाली ठंडी पड़ रही थी, और साथ ही साथ
थोड़ा थोड़ा कुहरा भी छाया हुआ था। धूप अभी निकलने की कोशिश ही
कर रही थी, लेकिन इन सब की परवाह न करते हुए रोज की ही भाँति
बब्बा का कौड़ा (लकड़ी का अलाव) जल चुका था। वैसे मैं रोज
बब्बा के जागने के बाद ही जागता था, इसलिये मुझे कभी पता नहीं
चला की ये कौड़ा बब्बा कब जलाते हैं और कौड़ा जलाने के लिये
इतनी ढेर सारी लकड़ी कहाँ से लाते हैं। लेकिन इतना पता था की
सूरज की पहली किरण निकलने से पहले गोशाला के पास में कौड़ा जल
जाता था और गाँव के सभी बूढ़े आ जाते थे। जब मैं जगा तो गाँव
के ५-६ बूढ़े पहले से ही बब्बा के पास पुआल पर आसन जमा के बैठे
थे और हुक्के की गुड़ गुड़ के साथ सर्दी की सुबह वाली चाय का
आनंद ले रहे थे। आज चर्चा का विषय ये था कि चरखे पर किसके
गन्ने की पेरेन होगी और किसका गुड़ बनेगा। गाँव में सभी लोग
मिल बाँट कर काम करते हैं, तो एक ही चरखे पर बारी बारी से सब
अपना गन्ना पेर लेते हैं। वैसे भी हमारे गाँव में सिर्फ घर के
इस्तेमाल भर का ही गन्ना लोग उगाते थे इसलिये एक-दो दिन में ही
एक खेत गन्ने की पेराई हो जाती थी।
...आगे-
*
डॉ. अजित गुप्ता का व्यंग्य
चाहत शेर को देखने की
*
शैलेन्द्र चौहान से फिल्म इल्म में
मन्ना डे का संगीत-संसार
*
कुमुद शर्मा से व्यक्तित्व में
जगन्नाथदास रत्नाकर
*
पुनर्पाठ में- यश मालवीय का संस्मरण
जो कहते थे कि
जीते रहिये |
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पिछले
सप्ताह- प्रेमचंद जयंती के अवसर पर |
१
प्रेमचंद की लघुकथा
बाबा जी
का भोग
*
डॉ. गौतम सचदेव की कलम से
मजदूर फिल्म की नायिका
बिब्बो
*
कृष्ण कुमार राय का आलेख
प्रेमचंद की लुप्त कहानियाँ
*
पुनर्पाठ में- डॉ. जगदीश व्योम से जानें
प्रेमचंद मुंशी कैसे बने
*
वरिष्ठ कथाकारों की प्रसिद्ध कहानियों
के स्तंभ गौरवगाथा में प्रेमचंद की कहानी
शतरंज
के खिलाड़ी
वाजिदअली शाह का समय था। लखनऊ विलासिता के रंग में डूबा हुआ
था। छोटे-बड़े, गरीब-अमीर सभी विलासिता में डूबे हुए थे। कोई
नृत्य और गान की मजलिस सजाता था, तो कोई अफीम की पीनक ही में
मजे लेता था। जीवन के प्रत्येक विभाग में आमोद-प्रमोद का
प्राधान्य था। शासन-विभाग में, साहित्य-क्षेत्र में, सामाजिक
अवस्था में, कला-कौशल में, उद्योग-धंधों में, आहार-व्यवहार में
सर्वत्र विलासिता व्याप्त हो रही थी। राजकर्मचारी विषय-वासना
में, कविगण प्रेम और विरह के वर्णन में, कारीगर कलाबत्तू और
चिकन बनाने में, व्यवसायी सुरमे, इत्र, मिस्सी और उबटन का
रोजगार करने में लिप्त थे। सभी की आँखों में विलासिता का मद
छाया हुआ था। संसार में क्या हो रहा है, इसकी किसी को खबर न
थी। बटेर लड़ रहे हैं। तीतरों की लड़ाई के लिए पाली बदी जा रही
है। कहीं चौसर बिछी हुई है; पौ-बारह का शोर मचा हुआ है। कही
शतरंज का घोर संग्राम छिड़ा हुआ है। राजा से लेकर रंक तक इसी
धुन में मस्त थे। शतरंज, ताश, गंजीफ़ा खेलने से बुद्धि तीव्र
होती है, विचार-शक्ति का विकास होता है...आगे-
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