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२२. ७. २०१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
रजनी मोरवाल, माधव कौशिक, सुशील कुमार, कमलेश कुमार शुक्ल कमल और श्रीकृष्ण माखीजा की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत दक्षिण भारत के व्यंजनों की विशेष शृंखला में इस बार प्रस्तुत है- सूजी की इडली

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- वायर स्पूल से बना बुक-शेल्फ

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- वर्षा का दिन

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- चंपा के फूल पर आधारित नवगीतों का प्रकाशन अनुभूति के चंपा विशेषांक के बाद अब पाठशाला में प्रारंभ हो गया है।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- इस सप्ताह प्रस्तुत है १ सितंबर २००६ को प्रकाशित संतोष गोयल की कहानी- भटकन

वर्ग पहेली-१४३
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-  

समकालीन कहानियों में भारत से
सुमति सक्सेना लाल की कहानी कौशल्या दी

सुबह सुबह फोन मिला था ’‘सुरेन्द्र बोल रहा हूँ दीदी।”
सुरेन्द्र ..मैं कुछ समझ नहीं पाती कि यह किसका फोन है। तभी उधर से फिर आवाज़ आई थी।”
एक बुरी खबर है, कौशल्या बुआ की डैथ हो गई।”
तब समझ आया था कि यह कौशल्या दी के क़ज़न का बेटा है, यहीं इण्डियन ओवर सीज बैंक में मैनेजर हैं ‘‘ अरे कब, कैसे... कहाँ थीं वे आजकल ?
’’आज ही आधी रात को। आजकल भोपाल में राजन भाई के पास थीं वे।”
’’तुम जा रहे हो भोपाल?’’
’’जी आज ही निकल रहा हूँ।”
मैं चुप रहती हूँ। समझ ही नहीं आता आगे क्या बोलूँ। कुछ देर लाईन पर रहकर सुरेन्द्र ने ‘‘अच्छा दीदी’’ कह कर फोन रख दिया था। फोन रखकर मैं काफी देर चुपचाप वहीं बैठी रहती हूँ।
कौशल्या दीदी नहीं रहीं। उनके जाने से मातम मनाने जैसी कोई बात नहीं। न जाने कितनी बार मन में आता रहा था कि क्यों इतनी लंबी उम्र दे रहा है भगवान उनको। अस्सी साल की तो हो चुकीं। न जाने कितनी बार कितनी तरह से कहतीं कि भगवान से मनाओ अब बुला ले मुझको...आगे-

*

अनुरूप मिश्र का व्यंग्य
कौए क्यों बढ़ रहे हैं
*

दीपक नौंगाईं अकेला के साथ देखें
सीमांत गाँव माणा की दुनिया
*

पंकज परिमल का ललित निबंध
मछली मारने का पुरुषार्थ
*

पुनर्पाठ में- आशीष गर्ग से जानकारी
कैसे काम करता है स्मोक डिटेक्टर

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पिछले सप्ताह-


निशा तोमर की लघुकथा
पिता का आशीर्वाद
*

दर्शन लाल से विज्ञान वार्ता
चला आ रहा है चाँद से भी उज्जवल धूमकेतु
*

पर्व परिचय में
त्रिपुरा की खर्ची पूजा
*

पुनर्पाठ में- कलाकार
रसिक रावल से परिचय
*

समकालीन कहानियों में पोलैंड से
हरजेन्द्र चौधरी की कहानी लेजर शो

बाजीगर कभी भी आ जाता था। उसके आने से पहले उसके आगे-आगे उसके विज्ञापन नहीं आते थे। जब भी आता था- जीता-जागता। बाँस के कई-कई मोटे डंडों को रस्सी में लपेटे, कसकर हाथों में थामे। पीठ पर बोरी से बने कई छोटे-बड़े झोले उठाए। उन झोलों में कुछ छोटे-बड़े मटक रखे होते। पीछे-पीछे उसकी लड़की चलती आती। लड़की के कंधे पर झूलती रस्सी उसके पेट और पीठ को घेरती हुई छोटे-से ढोलक को कसकर पकड़े रहती। चलते समय उसके घुटने लटकते हुए ढोलक को बार-बार ऊपर की ओर सम्हाले रहते। वे अक्सर कस्बे के चौक में आते। ‘पापी पेट का सवाल है’ की घोषणा और ढोलक की थाप से प्रोग्राम शुरू होता। मजमा जुटता। ज़मीन में गाड़े गए और आपस में मजबूती से बँधे बाँसों के उपरी हिस्सों के बीच एक मज़बूत रस्सा झूलने लगता। बाज़ीगर की दोनों पिंडलियों पर फूली हुई नसों की नीली गाँठें थीं। उसके पैर अनगढ़ और बदसूरत थे। पर हम उसके पैर नहीं देखते थे, उसकी श्रम-साधना, कला-साधना देखते थे।  ...आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि

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