१
चला
आ
रहा
है
चाँद
से
उज्ज्वल
धूमकेतु
-दर्शनलाल
बवेजा
खगोलप्रेमियों एवं पृथ्वी वासियों को इस वर्ष २०१३ के अंत में
और २०१४ के शुरुआती महीनों में आकाश में एक नहीं बल्कि दो-दो
चमकते खगोलीय पिंड दिखाई देंगे। इनमें एक तो हमारा चन्द्रमा
होगा और दूसरा उतना ही बड़ा एक नया खोजा गया पुच्छल तारा
(धूमकेतु/कॉमेट) होगा। हमारे सौरमंडल के बहुत दूर से एक बहुत
बड़ा दड़ियल धूमकेतु सूर्य की तरफ बहुत तेज गति से आ रहा है।
नवम्बर २०१३ में यह सूर्य से निकटतम दूरी पर होगा, तब इसकी चमक
चन्द्रमा को भी मात देने लगेगी।
कितनी दूर यह है पृथ्वी और सूर्य से?
जब यह पहली बार देखा गया तब यह पृथ्वी से ६२५ लाख मील या एक
अरब किलोमीटर दूर था और तब इसकी दूरी सूर्य से ५८४ मिलियन मील
या ९३.९ करोड़ किलोमीटर दूर थी। यह तब कर्क तारामंडल के धूमिल
कोने में विराजमान था।
कब व कहाँ दिखेगा यह धूमकेतु?
इन खगोलविज्ञानियों ने इस पुच्छल तारे (कॉमेट) को C/२०१२ S१
(ISON) नाम दिया है। यह वर्तमान में कर्क तारामंडल के उत्तर
पश्चिमी कोने में है। आकाशीय पिंडों की चमक मापने की रिवर्स
स्केल पर इसकी चमक १८.८ परिमाण में मापी गयी। सीसीडी उपकरणों
से अभी यह खगोलविदों के जद में धूमिल दृश्यमान है और २०१३
अगस्त तक यह बायनाकुलर से दृश्यमान होगा जबकि नवम्बर २०१३ तक
तो यह नंगी आँखों से भी दिखाई देगा, तत्पश्चात मध्य जनवरी २०१४
तक यह उत्तरी गोलार्द्ध निवासियों को दृश्यमान रहेगा। इन दोनों
शौकिया खगोलविदों, अर्त्योम नोविचोनोक और विटाली नेवेस्की का
मानना है कि देर नवम्बर से मध्य जनवरी तक यह एक भव्य उज्जवल
धूमकेतु बनेगा।
कहाँ से आते हैं धूमकेतु?
इसोन C/२०१२ S१ (ISON) का नामकरण अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक
ऑप्टिकल संजाल का संक्षिप्त रूप है। यह नेटवर्क दुनिया भर में
परस्पर सम्बद्ध कम्प्यूटरों का एक विशाल तंत्र होता है। यह
रेडियो दूरबीनों से प्राप्त ब्यौरे का संसाधन करता है। विज्ञान
पत्रिका न्यू-साइंटिस्ट में प्रकाशित तथ्यों के अनुसार
नेपच्यून ग्रह के पथ के बाहर विशाल धूमकेतुओं का एक बहुत विशाल
झुरमुट है जिसे उर्ट क्लाउड कहते हैं। वहाँ से यदा-कदा इन
धूमकेतुओं के दीर्घ वृत्ताकार पथ से कोई बर्फ-धूल व चट्टानों
का बड़ा सा गोला यानि धूमकेतु सूर्य की प्रभावी क्षेत्रीय
गुरुत्व सीमा में आ जाता है और दीर्घवृत्तीय कक्षा में सूर्य
की परिक्रमा करने लगता है।
किसने
खोजा यह धूमकेतु?
सितम्बर २०१२ में दो शौकिया खगोलविदों बेलारूस के अर्त्योम
नोविचोनोक और रूस के विटाली नेवेस्की ने इसे अपने प्रेक्षण में
पाया था। दोनों खगोलविद जब किस्लोवोद्स्क के निकट २१ सितम्बर
२०१२ को १५.७ इंच (०.४ मीटर) परावर्तक दूरदर्शी से सीसीडी पर
इमेज ले रहे थे तब उन्होंने पाया कि उर्ट बादलों की तरफ से कोई
ताजा विशाल बर्फ का गोला सौरमंडल में सूर्य की परिक्रमा पथ पर
आ रहा है।
कैसे बनती है इसकी पूँछ और चमक?
सूर्य की तेज उष्मा से इसकी धुँधली बर्फीली चट्टानें पिघलने लग
जाती हैं। आरम्भ में धूमकेतु एक धुँधली बर्फीली गेंद के जैसा
ही होता है। इसके पिघलने से इसके आगे जटाधारी सिर, जो कि
किनारों से धुँधला बनता है, और इस सिर के नीचे होता है, बन
जाता है। इसका केन्द्रीय भाग यानि कि इसका नाभिक सौर विकिरण के
दाब से इसे धरती की ओर ठेलता है और पीछे इसकी पूँछ का निर्माण
होता है। जैसे-जैसे दीर्घवृत्तीय सौर परिक्रमा पथ पर यह सूर्य
के नजदीक आता है इसका आभामंडल (हालो) बनना शुरू हो जाता है।
सौर हवाएँ पिघलते हिम धूल को सूर्य के विपरीत बहा ले चलती हैं
जिनसे इसकी खास पूँछ का निर्माण होता है।
क्या पुच्छल तारा अनहोनी लाता है?
भारत में प्रायः इसे पुच्छल तारे के नाम से जान जाता है जबकि
संस्कृत ग्रंथों में इसे केतु कहा गया है। यहाँ पुच्छल तारों
को अशुभ माना जाता है। किन्तु इन पिंडों का आगमन अन्य खगोलीय
घटनाओं की तरह सामान्य घटनाएँ ही है। हालाँकि खतरे की थोड़ी
आशंका बनी रहती है कि कहीं कोई धूमकेतु पथभ्रष्ट होकर पृथ्वी
के परिक्रमा पथ पर आकर धरती से ही ना टकरा जाए। ना जाने कितनी
ही बार पृथ्वी विशालकाय धूमकेतुओं की विरलीकृत विशालकाय पूँछ
में से गुजर चुकी है पर इसका कोई बड़ा नुकसान रिकार्ड नहीं हुआ
है। एक आम धारणा है कि धूमकेतु के पृथ्वी के नजदीक से गुजरने
से पृथ्वी पर कोई अनहोनी या महामारी होती है परन्तु इसका कोई
प्रमाण नहीं है। धूमकेतु कोई अनर्थ, अमंगल या अनहोनी नहीं
लाते। इनके पृथ्वी से टकरा जाने की संभावना भी अति क्षीण ही
होती है। यदि ऐसा कभी दर्ज होता है तो मनुष्य अपनी वर्तमान समय
की विकसित तकनीक से पृथ्वी से ही रॉकेट-मिसाइल दाग कर इनको
परिक्रमा पथ से विचलित कर परे ठेल सकता है। वैज्ञानिकों के एक
बड़े वर्ग का यह भी मानना है कि पृथ्वी पर जीवन के लिए जरूरी
कच्चा माल सुदूर अतीत में धूमकेतुओं से ही आयातित हुआ था।
फ़्रेड होइल और कुछ खगोलविद ऐसा मानते आये हैं कि अब से कोई
साढ़े छह करोड़ वर्ष पहले एक विशालकाय धूमकेतु के पृथ्वी से आ
टकराने से विशालकाय प्राणी डायनासोर का सफाया हुआ था।
कब दिखाई देगा पृथ्वी से
यदि अनुमान सच साबित हुए तो यह धूमकेतु आगामी दिसम्बर महीने
में दिन में भी चन्द्रमा जैसा दिख सकता है। यह परिमाप में काफी
बड़ा लग रहा है। ऐसा भी समझा जा रहा है कि इसोन बहुत कुछ १६८०
के ग्रेट कॉमेट ऑफ़ न्यूटन धूमकेतु जैसा हो और वैसा ही उसका
भ्रमण पथ हो। इसी अगस्त माह तक इसोन धरती से लगभग ३२ करोड़
कि॰मी॰ तक आ पहुँचेगा और इसका आभामंडल बनना शुरु हो जायेगा और
तभी सही अंदाजा भी हो सकेगा कि यह कैसा दिखेगा इसलिए तब तक
खगोलप्रेमियों व आम जनों को प्रतीक्षा करनी होगी।
धूमकेतुओं की समयावधि
वास्तव में धूमकेतु सूर्य के समयावधिक मेहमान होते हैं। जो
धूमकेतु २०० साल से पहले सूर्य से मिलने चले आते हैं इन्हें
लघुआवधिक धूमकेतु (शार्ट पीरियड कॉमेट) कहा जाता है। जो
धूमकेतु २०० साल के बाद सूर्य के निकट आ पाते हैं, उन्हें
दीर्घआवधिक धूमकेतु (लॉंग पीरियड कॉमेट) कहा जाता है। हमारा
चिरपरिचित हेली का धूमकेतु लघुआवधिक धूमकेतु है जो हर ७५-७६
वर्ष के बाद सूर्य के नजदीक आता है।
धूमकेतुओं की चमक की भविष्यवाणी सदा पूर्णतया सत्य नहीं होती
हालाँकि उनका प्रदर्शन घोषित भविष्यवाणी से कम या अधिक हो सकता
है। यदि इस धूमकेतु का प्रदर्शन अनुमानों और गणनाओं के मुताबिक
होता है तो संभवतः यह इस सभ्यता की एकमात्र ज्ञात खगोलीय घटना
होगी। यदि भूतकाल में झाँकें तो पहले भी कई धूमकेतुओं का बहुत
बढ़-चढ़ कर महिमामंडन किया गया था परन्तु उनका प्रदर्शन फीका ही
रहा था। अब खगोलविदों के पास अपेक्षाकृत उन्नत उपकरण हैं इसलिए
आशा है कि और नजदीक आने पर पूर्व भविष्यवाणी में सुधार होता
रहेगा। अभी तो हमें केवल इतना ही जान कर उत्साहित हो जाना
चाहिए कि बस कुछ समय बाद ही हम इस अभूतपूर्व खगोलीय घटना के
दर्शक बनने जा रहे हैं।
नासा ने ली है इसोन धूमकेतु की पहली
तस्वीर
नासा ने उस दूरस्थ धूमकेतु की पहली तस्वीर ले ली है जो कुछ
महीने बाद हम पृथ्वीवासियों को शानदार प्रकाश का नजारा दे सकता
है। धूमकेतू जिसका नाम C/२०१२ S१ (ISON) है, की ताज़ा तस्वीर
नासा के डीप इम्पेक्ट स्पेसक्राफ्ट ने १७ और १८ जनवरी को अपने
मध्यम रिसोल्यूशन के इमेजर से ३६ घंटे के पीरियड में तब ली जब
डीप इम्पेक्ट स्पेसक्राफ्ट इस धूमकेतू से ४९३ लाख मील(७९३ लाख
किलोमीटर) दूर था।
बहुत से वैज्ञानिकों ने इसोन के उज्जवल भविष्य की कामना की है।
पासाडेना स्तिथ नासा की जेट प्रोपल्सन प्रयोगशाला में डीप
इम्पेक्ट स्पेसक्राफ्ट परियोजना के प्रबंधक टिम लार्सन का कहना
है कि यह चौथा धूमकेतू है जिसके इससे वैज्ञानिक प्रेक्षण लिए
जा रहे हैं और पृथ्वी के पास से गुजरने पर इस संभावित शानदार
धूमकेतु के पृथ्वी से दूरस्थ बिंदु से सम्बन्धित आँकड़े एकत्र
किये जा रहे हैं। जैसे ही धूमकेतू सूर्य के नजदीक पहुँचेगा तो
सूर्य की गर्मी से धूल व गैसीय वाष्पों से इसकी चमकीली पूँछ
बनेगी। जबकि अभी इसोन अभी बहुत दूर है फिर भी नासा का कहना है
कि अभी भी इसके केन्द्र से चालीस हजार मील विस्तारित/लंबी धूल
और गैसों की पूँछ सक्रिय है।
इसोन
सम्भवतः २६ दिसम्बर २०१३ को पृथ्वी से ४० लाख मील की दूरी पर
होगा। इसोन को दीर्घ आवधिक धूमकेतु कहा जाएगा जिनकी परिक्रमण
कक्षाएँ सैकड़ों, हजारों और लाखों वर्षों की होती हैं। नासा का
विश्वास है कि सम्भवतः यह इसोन का पहला परिक्रमण पथ है। सौर
मंडल में धूमकेतू उर्ट बादलों से आते हैं सौर मंडल के बाह्य
सिरे पर बर्फ के विशाल गोलाकार पिंड स्थित हैं जो कि कभी कभी
किसी कारण से गुरुत्वाकर्षण विचलन के कारण भटक कर सौरमंडल में
सूर्य के चारों और अपना लंबा परिक्रमण पथ बना लेते हैं। नासा
ने यह भी चेतावनी दी है कि यह धूमकेतू अंजाम से पहले टूट भी
सकता है।
१५ जुलाई २०१२ |