खबर यह है कि कौए बढ़ रहे हैं।
पर्यावरण वैज्ञानिक चिंतित हैं कि कौए क्यों बढ़ रहे हैं? पर्यावरण वैज्ञानिक कभी
अकारण चिंतित नहीं होते।
मैं एक पर्यावरण वैज्ञानिक से मिला! वह चिंतित था कि कौए क्यों बढ़ रहे हैं? वह वाकई
चिंतित था! उसके माथे पर तीन लकीरें काफी पर्याप्त गहराई तक चमक रही थीं जो कि
पर्यावरण विज्ञानी की चिंतन गंभीरता का भौतिक प्रमाण थीं! वह पर्यावरण विज्ञानी इधर
ही पर्यावरण से जुड़ा था तथा कौओं के बारे में उतना ही जानता था जितना कि कौए उसके
विषय में जानते थे। इसके बावजूद वह कौओं के भविष्य के प्रति पर्याप्त चिंतित था!
दुखद बात यह थी कि मुझे उसके आसपास कोई कौआ नज़र नहीं आया जो इस चिंता भरे समय में
उस पर्यावरण विज्ञानी के सिर पर चोंच मारकर ढाढ़स बँधा सकता था! मुझे समझ में नहीं
आया कि कौओं की चिंता में डूबे उस पर्यावरण वैज्ञानिक का मैं क्या करूँ?
तुम्हें पता है कि कौए क्यों बढ़ रहे हैं? क्या तुम जानते हो कि कौए क्यों बढ़ रहे
हैं? कौओं के बढ़ने के बारे में तुम क्या जानते हो? उफ तुम कुछ नहीं जानते? वह एकदम
से बोला और फिर कौओं में डूब गया।
मुझे अपने अज्ञान पर शर्म आयी फिर मैं अपनी स्वार्थपरता के संदर्भों को लेकर कुंठित
हो गया! इसके बाद मुझे समझ में नहीं आया कि क्या करूँ?
मैंने बेशर्मी ओढ़ ली छोड़िये कौओं को, क्या करना है कौओं का? किसी काम के नहीं होते
हैं ये कौए! देखने में कितने भद्दे लगते हैं! आप इतने सुन्दर रेस्तराँ में बैठकर
कौओं के बारे में कैसे सोच सकते हैं? किसी अन्य विषय पर सोचिये! आपको पता है कि
गालिब़ कौओं के बारे में क्या सोचते थे?
वह तड़प उठा ‘‘गालिब़! गालिब़ सोचते थे कौओं के बारे में तुम सच कह रहे हो न? गालिब़
कौओं के बारे में सोचते थे! वाह! गालिब़ जरूर सोचते होंगे कौओं के बारे में! हर
समझदार आदमी सोचेगा कौओं पर! कौओं के अलावा और सोचा ही क्या जा सकता है! गालिब़
कौओं के बारे में सोचते थे! क्या बात है? बहुत अच्छे! वैसे कौन थे गालिब़?’’ उसने
नोटबुक निकाल ली और उस पर गालिब़ के बारे में लिखने के लिए तैयार हो गया।
मेरा तीर निशाने पर बैठा था? मैं कौओं के बारे में नहीं जानता था और वह गालिब़ के
बारे में नहीं जानता था! अज्ञानता के विस्तृत धरातल पर हम दोनों एक ही स्तर पर खड़े
थे! मेरे मन में गालिब़ के प्रति श्रद्धा पैदा हो गयी! यह भी समझ में आ गया कि
गालिब़ वगैरह इतने प्रासंगिक क्यों बने रहते हैं?
मैंने उसे बताया ‘‘गालिब़ शायर थे! पूरा नाम था मिर्जा अब्दुल्ला खाँ गालिब़!
मिर्जा उन्हें कहा जाता था, अबदुल्ला खाँ उनका नाम था और गालिब़ उनका तखल्लुस था
यानि कि उपनाम! शायरी करते थे और शराब बहुत पीते थे! ताज्जुब यह है कि आप गालिब़ के
बारे में नहीं जानते और कौओं के बारे में इतने चिंतित हैं? शर्म आनी चाहिए आपको!
आखिर आपको शर्म कब आयेगी?
उसने मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिया और बोला हाँ तो गालिब़ के बारे में तुम क्या
बता रहे थे? कौओं के बारे में उन्होंने कुछ कहा था। वैसे क्या कहा था मिर्जा गालिब़
ने? बताओ, गालिब़ कौओं के बारे में क्या कहते थे? बताओ!
‘‘गालिब़ ने कुछ न कुछ तो कहा ही होगा! गालिब़ ने हर चीज पर कुछ न कुछ कहा है! कौओं
पर भी कहा होगा! दिल्ली में रहते थे और दिल्ली के कौए तो अकबर के समय से ही मशहूर
रहे हैं? फिर गालिब़ शायर थे। छत पर बैठकर शायरी करते होंगे तो तमाम कबूतर और दो
चार कौए तो उनकी छत पर आते जाते ही होंगे। कबूतर तो खैर उन्होंने पाल रखे थे।
कबूतरबाजी का उन्हें खास शौक था! तरह-तरह की उम्दा नस्लों के कबूतर गालिब के पास
थे। उनके पास एक सफेद स्लेटी कबूतर था जो मोर की तरह चलता था और उनके पास एक नीला
कबूतर था जो...’’ मैं बता ही रहा था पर मैंने देखा कि वह मेरी बात नहीं सुन रहा था।
“दिल्ली के कौए मशहूर होते थे! अकबर के समय से ही दिल्ली के कौए मशहूर थे”! वाह!
क्या बात है? बहुत अच्छे! कौए मशहूर होते थे! दिल्ली के कौए मशहूर होते थे! वह
प्रसन्नता के मारे अपनी नोटबुक निकाल कर कुछ लिखने लगा परंतु उसका उत्साह इतना
ज्यादा था कि उसकी उँगलियाँ काँप रही थीं और वह लिख नहीं पा रहा था। उसकी लगन देखने
लायक थी!
‘‘दिल्ली के कौए! मशहूर! मशहूर कौए! गजब कर दिया। और बताओ! दिल्ली के कौए क्यों
मशहूर होते थे? नीले होते थे क्या? नीला कौआ? कैसा लगता होगा नीला कौआ? कोई खास
प्रजाति रही होगी कौओं की! हो सकता है कि उनकी दो चोंचें रहीं हों। दो चोंचों वाला
कौआ! मैंने केवल सुना है ऐसे कौओ के बारे में। दुर्लभ कौए! मशहूर कौए! दिल्ली के
कौए!’’
वह विभोर था। ‘‘कहीं सुना है आपने दो चोंचों वाले कौओं के बारे में? मैंने तो आज तक
नहीं सुना। आपको ये उड़न खटोले की कहानियाँ कौन सुना जाता है?’’ मैंने पूछा। ‘‘हाँ,
होते हैं! उधर दक्षिण अमेरिका के घने जंगलों में एक पुराना आदिवासी कबीला है! वहाँ
के सरदार के पास तीन कौए हैं जिनकी दो चोंचे हैं। मैं एकदम पक्की बात बता रहा हूँ!
चाहे जाकर देख आओ!’’ उसने चुनौती दी।
‘‘आप देख आये हैं क्या? दो चोंचों वाला कौआ? नीला कौआ? दिमाग खराब हो गया है क्या?
कौन बता रहा है यह सब?’’ मैं चिल्लाया।
वह भी उठकर खड़ा हो गया “मैं बता रहा हूँ मेरी नोटबुक में सब कुछ लिखा है! कौए बढ़
रहे हैं! पूरी दुनिया में कौए बढ़ रहे हैं! कौओं की तीन सौ पचास प्रजातियाँ पायी
जाती हैं! गालिब ने भी कौओं के बारे में लिखा है! क्या लिखा है यह पता करने के लिए
मुझे गालिब का दीवान पढ़ना पड़ेगा। पूरी दुनिया में दो करोड़ से ज्यादा कौए रहते हैं!
कौआ एक सामाजिक पक्षी है। इसका रंग काला होता है। इसके दो पंजे, एक पूँछ और एक चोंच
होती है! दक्षिण अमेरिका में दो चोंच वाले कौए भी देखे गए हैं! दिल्ली के कौए मशहूर
होते थे! क्यों होते थे....अब बताओ”! वह दोबारा नोट बुक खोलकर बैठ गया! हम देर तक
काँव-काँव करते रहे। |