इस सप्ताह- |
1
अनुभूति
में-
अमन दलाल, लक्ष्मण,
ब्रजेश नीरज, योगेन्द्र वर्मा और सुरेन्द्रनाथ मेहरोत्रा की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत
दक्षिण भारत के व्यंजनों की विशेष शृंखला में इस बार प्रस्तुत है-
दही के चावल। |
रूप-पुराना-रंग
नया-
शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें
रूप बदलकर-
खिड़की
के दरवाजे का लटकता हुआ शेल्फ। |
सुनो कहानी- छोटे
बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में
इस बार प्रस्तुत है कहानी-
किताबों की दूकान। |
- रचना और मनोरंजन में |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला- २८ में विषय है चंपा का फूल। रचनाओं का प्रकाशन
जल्दी ही प्रारंभ हो जाएगा। टिप्पणी के लिये
यहाँ
देखें। |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें। |
लोकप्रिय
कहानियों
के
अंतर्गत- इस
सप्ताह प्रस्तुत है १६ अप्रैल २००६ को
प्रकाशित ए असफल की कहानी-
अब कहाँ जाओगे।
|
वर्ग पहेली-१४१
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
|
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
अपनी प्रतिक्रिया
लिखें
/
पढ़ें |
|
साहित्य
एवं
संस्कृति
में-
|
समकालीन कहानियों में भारत से
डॉ. कुसुम अंसल की कहानी
मेज पर जमी
धूल
उसने फिर से मेज के शीशे की ओर देखा। उसके ‘ऐंगल’ से अभी भी
शीशे पर मिट्टी जमी दिखाई दे रही थी। सीधी खड़ी होकर रधिया दो
बार पोंछ गई थी उसे, पर फिर भी जैसे एक ही गति से घूमते उसके
हाथ बीच की धूल के धब्बों को साफ नहीं कर सके। मन में आया एक
बार उसे बुलाकर डाँटे, पर फिर स्वयं ही उठकर ‘डस्टर’ ले आया और
झुक कर खास ऐंगल से जमी उस मिट्टी को पोंछ दिया। फिर झुक कर
देखा तो उस शीशे पर एक परछाई मुखरित हो उठी।
‘’पम्मी आंटी.....” वह पलट कर खड़ा हो गया।
“हैलो आंटी!”
“हैलो सनी....” और वे पापा के कमरे की ओर बढ़ गईं। फिर ‘सनी’
कहा उन्होंने...? जिस प्यार की चाशनी में लपेट कर वह सनी शब्द
उसके मन में उतारती है वह चाशनी कड़वाहट बनकर उसके गले में अड़
जाती थी। कितने ही साल हो गए थे वह पम्मी आंटी को इस घर में
आते-जाते देख रहा था. माँ तब जीवित थीं और वह नौ या दस साल का
था। पापा और माँ सदा ही जाने किस बात पर झगड़ा किया करते थे।...आगे-
*
हरीश नवल का व्यंग्य
पुस्तक (झ)मेला
*
डॉ रमेश मयंक का रचना प्रसंग
राजस्थान की गीत
यात्रा निरंतर
*
अशोक उदयवाल से स्वास्थ्य चर्चा
तरावट तरबूज की
*
पुनर्पाठ में मनीष कुमार के साथ
सिक्किम के सफर पर |
अभिव्यक्ति समूह
की निःशुल्क सदस्यता लें। |
|
पिछले
सप्ताह- चंपा विशेषांक के अंतर्गत |
१
मुक्ता की कलम से
लोककथा-
चंपा और बाँस
*
डॉ. राकेश कुमार प्रजापति से
प्रकृति और पर्यावरण में-
अद्भुत फूल चंपा
*
प्रयाग शुक्ल का
ललित
निबंध- ओ चम्पा
*
पूर्णिमा वर्मन का आलेख
डाक-टिकटों पर चंपा का फूल
*
साहित्य संगम में सुमतीन्द्र नाडिग की
कन्नड़ कहानी का हिन्दी रूपांतर
चंपा का पेड़
कुछ मास पहले
मेरे सपने में एक चंपा का पेड़ आकर बोला, ‘‘मेरे बारे में भी एक
कहानी लिखना।’’ मैंने सोचा यह कौन-सा चंपा का पेड़ हो सकता है ?
हमारे घर के पिछवाड़े एक चंपा का पेड़ था, उसके आस-पास लंटान की
घनी झाड़ी थी। मेरा भाई जो तब दस बरस
का था, एक शाम लंटान के फूल तोड़ता हुआ उस पेड़ के पास खड़ा था।
तब अँधेरा होने को ही था जरा आहट होने से मेरी माँ ने सिर
उठाकर देखा। एक शेर मेरे भाई के सिर को फलाँग चला गया। मेरी
माँ बरतन धोना छोड़कर बच्चे को घर के भीतर घसीट लायी। यह
आश्चर्य की बात थी कि बच्चे को कोई आघात नहीं पहुँचा था। इसके
कारण मेरी स्मृति सोरब के चंपा के पेड़ के आस-पास मँडराने लगी।
एक और भी बात उसके बारे में याद हो आयी। जब मैं बीस
वर्ष का नौजवान था, तब उस पेड़ के नीचे कपड़े धोने के पत्थर पर
अपनी प्रिया के संग बैठा अष्टमी का चंद्रमा देख रहा था।
गाँव के और भी चंपा के पेड़ों की याद आयी। इस घर में आने
से पहले मैं जिस किराये के घर में रहता था
...आगे-
|
अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ |
|