बहुत समय पहले की बात है किसी
देश में एक राजा राज्य करता था। उसकी दो रानियाँ थीं। राजा
निःसन्तान था। संतान प्राप्ति के उसने सभी उपाय किये पर
उसके घर में किलकारियाँ नहीं गूँजी। एक बार एक सन्यासी उस
राज्य से गुजर रहे थे। सबकी सलाह हुई उस महात्मा को
राजदरबार में बुलाकर इस समस्या के हल के लिये विनती की
जाय। सन्यासी को आदर से महल में बुलाया गया और दोनो
रानियों पर उनकी सेवा का भार आ पड़ा। बड़ी रानी ने सन्यासी
की सेवा में कोई कसर न रखी जबकि छोटी रानी अपने रूप शृंगार
और आनंद मंगल में लगी रही।
जाते समय सन्यासी बड़ी रानी को पुत्रवती होने का आशीर्वाद
दे गए। सचमुच कुछ ही दिनों के भीतर वह गर्भवती हो गईं। यह
समाचार राजा के पास पहुँचा तो राजा बहुत प्रसन्न हुए।
शीघ्र ही समाचार प्रजा तक पहुँचा तो पूरे राज्य में युवराज
के आगमन की खुशियाँ मनाई जाने लगीं। बड़ी रानी का सम्मान
बहुत बढ़ गया, और उनकी देखभाल करने के लिए और भी लोग रखे
गये।
छोटी रानी को यह सब देखकर बहुत ईर्ष्या हुई। वह सोचने लगी
कि जब अभी से बड़ी रानी का इतना आदर सत्कार हो रहा है तो
संतान के जन्म के बाद न जाने कितना ज्यादा आदर होगा, उसकी
अपनी पूछ न रहेगी, उसका कोई सत्कार न रहेगा। छटपटा उठी
छोटी रानी। उसने राजमहल की दाई को बुला भेजा और उसे ढेर
सारा धन देकर अपने साथ शामिल कर लिया। दोनों मिलकर प्रसव
के दिन की प्रतीक्षा करने लगीं। समय पर बड़ी रानी ने दो
बच्चों को जन्म दिया - एक बेटी, एक बेटा। छोटी रानी ने दाई
की सहायता से बच्चों को एक टोकरी में रखकर जंगल में फिंकवा
दिया।
बड़ी रानी बच्चों को न पाकर बहुत विह्वल हुई और दिन रात
पूजा पाठ में लग गई। उसकी पूजा के लिये फूल लाने दो सिपाही
जाया करते थे। एक दिन की बात है सिपाहियों को आसपास कोई
फूल नहीं मिले और वे फूल लेने जंगल की ओर चले गए। जंगल में
सिपाही ने देखा कि दो बड़े सुंदर वृक्ष पास पास उगे हुए
हैं। एक चंपा का और दूसरा बाँस का। सिपाही फूल तोड़ने के
लिए जैसे ही नज़दीक आया,
चम्पा के पेड़ ने कहा "ए भैया बाँस" -
बाँस पेड़ ने कहा "हाँ बहन चंपा?"
चंपा ने कहा - "राजा के सिपाही फूल तोड़ने आए।",
बाँस ने कहा - "लग जा बहन आकाश।" - जैसे ही बाँस ने यह
कहा, वैसे ही चम्पा का पेड़ ऊँचा होने लगा, वह इतना ऊँचा
हो गया कि सिपाही फूल तक नहीं पहुँच पाए। आश्चर्यचकित होकर
वे दौड़ते हुए सेनापति के पास पहुँचे और उन्हें सारी बात
बताई। सेनापति ने विश्वास ही नहीं किया - "ये सब क्या कह
रहे हो?"
सैनिकों ने कहा - "आप एक बार हमारे साथ जंगल चलें और स्वयं
देख लें।"
सेनापति चल पड़े सैनिको के संग - जैसे ही सेनापति चम्पा और
बाँस के पास पहुँचे,
चम्पा ने कहा- "ए भैया बाँस" -
बाँस ने कहा- "हाँ बहन चंपा?"
चम्पा ने कहा - "राजा के सेनापति फूल तोड़ने आए।"
बाँस ने कहा, "लग जा बहन आकाश"
चम्पा का पेड़ ऊँचा होने लगा, वह इतना ऊँचा हो गया कि
सेनापति फूल तक नहीं पहुँच पाए। सेनापति भी डर गए, दौड़ते
हुए मन्त्री के पास पहुँचे और सारी घटना सुनाई।
मन्त्री चल पड़े सेनापति और सैनिकों के संग। चम्पा को ऊपर
से दूर तक दिखाई दे रहा था, उसने दूर से ही देख लिया कि
मन्त्री जी आ रहे हैं, उन्हें देखते ही-
चम्पा ने कहा- "ए भैया बाँस" -
बाँस ने कहा - "हाँ बहन चम्पा",
चम्पा ने कहा - "राजा के मन्त्री फूल तोड़ने आए।" -
बाँस ने कहा- "लग जा बहिनी आकाश।"
मन्त्री जी जैसे ही पेड़ तक पहुँचे, पेड़ और ऊपर और भी ऊपर
तक पहुँच गया। इतना ऊपर कि मंत्री जी भी फूल नहीं तोड़
पाए। इस सबसे हैरान मन्त्री जी सीधे पहुँचे राजा के दरबार
में। राजा ने कहा - "इतना घबरा क्यों गये हो?"
मन्त्री ने कहा - "आप इसी समय मेरे साथ चलें राजा जी।"
सारी बात सुनकर राजा अपनी दोनों रानियों के साथ जंगल में
ऐसे अद्भुत पेड़ को देखने पहुँचे।
चंपा ने पहले राजा और छोटी रानी को देखकर कहा- "ए भैया
बाँस" -
बाँस ने कहा- "हाँ बहन चम्पा",
चम्पा ने कहा- "छोटी रानी संग राजा फूल तोड़ने आए।"
बाँस ने कहा- "लग जा बहन आकाश।"- चम्पा का पेड़ और भी ऊँचा
हो गया।
ऊँचे पहुँचकर पीछे आ रही बड़ी रानी को चंपा ने देखा और
कहा- "ए भैया बाँस"
बाँस ने कहा - "हाँ बहन चम्पा",
चम्पा ने कहा - "हमारी दुखिया माँ फूल तोड़ने आई।"
बाँस ने कहा- "बहन पाँव पड़ो उसके" - चम्पा ज़मीन में झुक
गई और बड़ी रानी के पैरों के पास झूमने लगी।
साथ-साथ बाँस का पेड़ भी झुककर बड़ी रानी के पैरों को छूने
लगा।
इसके बाद चम्पा और बाँस ने राजा को सारी बात बताई। राजा ने
उसी वक्त छोटी रानी को देशनिकाला दे दिया और बड़ी रानी से
क्षमा माँगने लगे।
बड़ी रानी बड़े दुख से चम्पा और बाँस को देख रही थी। ये
दोनों मनुष्य कैसे बनेंगे? वह उनके पास पहुँचकर, दोनों से
लिपटकर रोने लगी। जैसे ही रानी के आँसुओं ने चम्पा और बाँस
को छुआ, चम्पा और बाँस मनुष्य बन गये। बेटा, बेटी को बड़ी
रानी ने गले से लगा लिया। सब रथ में बैठ कर राजमहल की ओर
चल पड़े, साथ में बाजे, गाजे बजने लगे और पूरे देश में
खुशियाँ फैल गई।
१७ जून २०१३ |