मेरे घर
के पास एक किताबों की दूकान खुली है। मैं कल शाम को इस
दूकान में गई थी। यहाँ पर किताबों की अलमारियों के साथ साथ
कुछ मेजें और कुर्सियाँ भी हैं। अगर कुछ किताबें पसंद आती
हैं तो वहाँ बैठकर पढ़ भी सकते हैं।
दूकान के
मालिक ने कहा, जो किताबें पढ़ रही हो उनको गंदा मत करना।
गंदी हो जाने पर या फट जाने पर पैसे देने होंगे। अगर ठीक
से पढ़ो तो सब किताबें पढ़ सकती हो। पैसे देने की जरूरत
नहीं है। पढ़ने के बाद पसंद आए तो खरीद सकती हो।
वाह
कितनी अच्छी दूकान है। मैं रोज यहाँ आऊँगी फिर छाँटकर अपने
पसंद की किताब खरीद लूँगी।
- पूर्णिमा वर्मन |