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२८. १. २१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में- 1श्याम निर्मम, अशोक रावत, परमेश्वर फुँकवाल, कनकरेखा चौहान, रामकृष्ण द्विवेदी मधुकर की रचनाएँ एवं खबरदार कविता।

- घर परिवार में

रसोईघर में- सर्दी का मौसम थोड़ा ही बचा है। इस मौसम के लिये तिल के व्यंजनों की विशेष शृंखला में शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- तिल के रोल।

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर, फिर से सहेजें रूप बदलकर- फाइलकेस का सुंदर शेल्फ

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- खेल का मैदान

- रचना और मनोरंजन में

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला- २५ की रचनाओँ का प्रकाशन पूरा हो गया है। नई कार्यशाला की तिथि और विषय निश्चित होने पर सूचित करेंगे।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है पुराने अंकों से २४ दिसंबर २००३ को  प्रकाशित सुरेश कुमार गोयल की कहानी— "हिरासत के बाद"।

वर्ग पहेली-११८
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
          कीर्तीश की कूची से

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-साहित्य-एवं-संस्कृति-में--

समकालीन कहानियों में यू.के. से जय वर्मा
की कहानी— कोई सवाल क्यों

आज डोरीन ने आजादी की साँस ली। बाईस वर्षों में पहली बार डोरीन अकेली घर से बाहर निकली थी। लहराती हुई पतली सड़क पर लाल रंग की डबल डेकर बस तेजी से वादियों के बीच चली जा रही थी। चार्नवुड लेस्टरशायर की छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच में बसा एक रमणीक और आकर्षक गाँव है। इंग्लैंड की मुख्य सड़क ‘मोटरवे वन’ के पास में होते हुए भी यहाँ पर यातायात के बहुत ही कम साधन उपलब्ध हैं। रेल तो यहाँ है ही नहीं और बस भी दिन में केवल दो बार आती है। मार्ग में बिना कुछ कहे अपने गंभीर विचारों में लीन केवल डोरीन ही जानती है कि उसने शादी से लेकर अब तक बाईस वर्ष कैसे बिताए। डोरीन देखने में सुंदर थी। मां-बाप ने उसे बहुत प्यार और दुलार से पाला था। अपनी नीली आँखें, सुनहरे तथा घुँघराले बालों के सौंदर्य के कारण प्रत्येक वर्ष स्पोलडिंग मेले में आयोजित सुंदरी प्रतियोगिता में ‘ब्युटी क्वीन’ का खिताब जीतती थी। जब वह अपने पापा की ट्यूलिप के फूलों से सजी बड़ी लंबी लारी में मुकुट पहनकर बैठती तो समस्त परिवार उस पर गर्व करता। ... आगे-
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डॉ. दिनेश पाठक शशि की लघुकथा
समानांतर दर्द
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प्रभु जोशी से सामयिकी में-
जन से भिड़ता तंत्

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डॉ. बलदेव सिंह बद्दन का आलेख
संत रविदास की अमृत वाणी
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पुनर्पाठ में- गौतम सान्याल का रचना प्रसंग
लघुकथा:-प्रकार,-प्रविधि-और-भाषा-आकार-से-प्रकार-की-ओर

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पिछले सप्ताह- गणतंत्र दिवस के अवसर पर


नितिन जैन का व्यंग्य
राष्ट्रीय गणतंत्र विद्यालय
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प्रदीप श्रीवास्तव की कलम से
राष्ट्रध्वज के निर्माता पिंगली वैंकैया

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शशि पाधा से जानें
भारतीय सेना के उच्च नैतिक मूल्य
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पुनर्पाठ में- प्रभात कुमार का आलेख
नार्वे में भारतीय तिरंगा
*

समकालीन कहानियों में भारत से शीला इंद्र
की कहानी— फाँसी से पहले

संध्या का झुटपुटा गहराने लगा था। जेल का एक वार्डर बनवारी हाथ में एक छोटी-सी लालटेन लिये कुछ गुनगुनाता चला आ रहा था- कोठरियों के तालों की चेकिंग करने। वह हर कोठरी के सामने ठहरता, ताला खींचकर इत्मीनान करता कि ताला अच्छी तरह बंद है, फिर उस सीलन भरी अँधेरी कोठरी में झाँक कर कैदी को आवाज देता-“ऐ मोशाय शो गिया?” अंदर का कैदी कुछ ‘हाँ-हूँ’ करके जवाब दे देता। इसी तरह कई कोठरियों के तालों को झिंझोड़ता, कैदियों से एक-दो बातें करता, वह एक कोठरी के सामने आकर ठहर गया। ताला खींचा, फिर एक क्षण को उस लालटेन की मद्धिम रोशनी में इधर-उधर देखकर आहट ली और फिर बहुत धीमी फुसफुसाती आवाज में बोला, “कन्हाई बाबू! ऐ कन्हा ई बाबू, जरा इधर आओ!” वार्डर की यह फुसफुसाती रहस्यभरी पुकार सुनकर एक दुबला-पतला युवक जेल के सीखचों के पास आकर खड़ा हो गया-“क्या है बनवारी भैया?”
“सुनो, तुम्हारा नरेन गुसाईं सरकार से मिल गया है।“
आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।



प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : कल्पना रामानी

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