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परिक्रमा

नार्वे निवेदन

नार्वे में भारतीय तिरंगा
—प्रभात कुमार
 


भारतवर्ष को छोड़कर अन्यत्र रहने पर गणतंत्र–दिवस या स्वतंत्रता–दिवस उतना ही पावन पर्व हो जाता है जितना हिन्दुओं के लिए होली – दिवाली, ईसाइयों के लिए क्रिसमस, या मुसलमानों के लिए ईद। प्रवासी भारतीयों के लिए राष्ट्रीय तिरंगा और गणतंत्र–दिवस के अर्थ की व्यापकता एवं भाव की विभोरता कुछ अधिक ही मायने रखती है। भारत के हर राज्य, क्षेत्र, भाषा या धर्म के अनुयाइयों के लिए भारतीय होने के गर्व का अहसास संभवतः २६ जनवरी या १५ अगस्त को समग्र रूप में होता है। यह तब औैर भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है जब आप एक अरब लोगों के बीच नहीं, बल्कि विशिष्ट भौगोलिक स्थिति वाले नार्वे–जैसे देश में, एक छोटे से समूह में हों।

महज ५५ लाख की विरल जनसंख्या वाला नार्वे, यूरोप ही नहीं बल्कि दुनिया में प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से शीर्षस्थ देशों में एक है। उत्तरी ध्रुवीय वृत के पास स्थित होने के कारण दिसंबर–फरवरी का समय नार्वे एवं अन्य स्कैंडनेवियाई देशों में लंबी रात और जमाने वाली सरदी का होता है। ऐसे में अपने प्यारे तिरंगे को हिमखंडो के ऊपर अंधेरे में 'जन–गन–मन अधिनायक' का प्रतीक बनते देखकर कैसा अनुभव होगा? निश्चय ही वह एक आह्लादकारी दृश्य है जब –१० डिग्री सेल्सियस तापमान में बर्फीली हवा के झोंके भारतीय झंडे को लहरा रहे हों और श्री श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' का "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा" अपना मस्तक शान से ऊँचा कर दुनिया में भारत के बढ़ते प्रभुत्व को बुलंद करता प्रतीत हो।

भारतीय छात्रों और शोधार्थियों का एक छोटा समूह यहाँ के सबसे बड़े विश्वविद्यालय और पूरे यूरोप में प्रतिष्ठित 'नार्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ साईंस एंड टेक्नालॉजी' में अध्ययनरत है। लगभग ६४ डिग्री उत्तरी अक्षांश के पास, मध्य नार्वे में अवस्थित 'ट्राधाईम' शहर को विश्व में आज इस विश्वविद्यालय के चलते १०० से भी अधिक देशों के नागरिकों के निवास स्थान के रूप में जाना जाता है। अधिकांश प्रवासी भारतीय छात्र और शोधार्थी, ट्राधाईम शहर के 'मोहोल्ट छात्र–संकुल' या इसके इर्द—गिर्द रहते हैं। यहाँ भारतीय छात्रों की संस्था 'इंडियन स्टूडेंट फोरम' प्रमुख पर्व–त्याहारों के अतिरिक्त गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर कार्यक्रम आयोजित करती है। ४० से अधिक छात्रों, शोधार्थियों और उनके परिवारों का समूह सभी महत्वपूर्ण अवसरों पर जमा होता हैं। कुछ अन्य भारतीय, जो नार्वे के इस शहर में कार्यरत हैं वे भी गणतंत्र–दिवस और स्वतंत्रता–दिवस जैसे आयोजनों पर साथ होते हैं।

पिछले वर्षों की तरह इस वर्ष भी 'इंडियन स्टूडेंट फोरम' ने गणतंत्र दिवस के आयोजन हेतु प्रभावी कार्यक्रम बनाया था। २६ जनवरी को ध्वजारोहण, राष्ट्रगान, झंडागीत, मिष्टान्न–वितरण और फिर भारतीय चाय की चुस्कियों के बीच, सबको वही अहसास हुआ जो भारत में परिवारजनों के बीच अलाव पर बैठकर होता है। सामान्य तौर पर प्रवासी छात्र समूह में से सबसे वरिष्ठतम सदस्य को ध्वजारोहण के लिए बुलाया जाता है किंतु इस वर्ष वरिष्ठ सदस्यों के आग्रह पर छात्र परिवार की एक महिला सदस्य को इस शुभ–कार्य हेतु आगे लाया गया। यह भी एक सुखद संयोग है कि महिला अधिकारों के लिए जाने जाने वाले इस देश में 'इंडियन स्टूडेंट फोरम' की प्रेसिडेंट भी एक महिला शोधार्थी है और गणतंत्र दिवस के लिए ध्वजारोहण का पुण्य–कार्य भी महिला सदस्य ने किया।

बच्चों के लिए यों तो हर आयोजन उत्साह का कारण बनता है किंतु गणतंत्र दिवस पर उनमें जोश और उमंग कुछ ज्यादा ही मालूम पड़ रहा था क्योंकि उन्हें देश–प्रेम और हिमालय वाली अपनी कविता जो सुनानी थी! ध्वजारोहण के पश्चात् फोरम के कार्यकारी सचिव ने मुस्कुराते चेहरों और फहरा रहे झंडे की तस्वीरें खींची। इसके बाद बच्चों को मिठाईयाँ बाँटी। फोरम के 'चाय–विशेषज्ञ' ने –१० डिग्री सेल्सियस तापमान में भी अदरख वाली मसालेदार चाय पिलाकर भारत–विषयक चर्चाओं को और गर्म कर दिया।

इस भीषण सर्दी में भी एक ओर बच्चे जहाँ हिम–क्रीडाओं का मजा ले रहे थे, वहीं कुछ सदस्य नार्वे की अँधेरी और ठंडी सुबह का बहाना लेकर ज़रा देर आए। फिर भी, भारत की दुनिया में बढ़ती धाक पर हो रही चर्चाओं में भाग लेकर, राष्ट्रगान में हिस्सा न लेने की अपनी कसर पूरी की। बहस–चर्चाओं का एक हिस्सा अफ़सोस के रूप में था क्योंकि सभी दिल्ली में हो रही सैनिक परेड को देखने से वंचित थे। नार्वे में चूँकि अधिकांश राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय टीवी चैनल नार्वेजियन या अंग्रेजी भाषा में आते हैं इसलिए भारतीय चैनल को देखना विशेष व्यवस्था के तहत ही संभव होता है। तय हुआ कि इंटरनेट पर विभिन्न समाचारपत्रों के ज़रिए ही जानकारी लेना उपयुक्त होगा।

भारत में तो प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष को बुलाने की परंपरा रही है किंतु यहाँ इस परंपरा का पालन कैसे किया जाय? इसके लिए हम लोगों ने भारतीय संस्कारों और मूल्यों में गहरी रुचि रखने वाले इटली के एक सहपाठी मित्र को विशिष्ट अतिथि के रूप में बुलाया। सैनिकों की परेड की जगह बच्चों की ड्रेस–परेड करायी गयी जो कम रंगीन नहीं थी। अध्ययन या शोध–कार्य पूरा कर लौटनेवाले भारतीयों के लिए तो सिहराने वाली सर्दी में हिमखंडो के ऊपर लहराता तिरंगा देखना एक विशिष्ट अनुभव रहा किंतु यहाँ बसे प्रवासी भारतीयों के लिए तो 'हमारा भारत' शीर्षक कविता का बच्चों द्वारा किया गया पाठ सबसे तृप्तिदायक अनुभव रहा। कार्यक्रम की समाप्ति पर लोग गुनगुना रहे थे–

बच्चों मां ने पालपोस कर, तुमको बड़ा बनाया है
लेकिन यह मत भूलो तुमने, अन्न कहाँ का खाया है।
तुमने पानी पिया कहाँ का, खेले मिट्टी मे किसकी
चले हवा में किसकी बोलो, बच्चों प्यारे भारत की।

२४ फरवरी २००४

 
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