परिसर के कोने-कोने तक उनकी आवाज़
स्पष्ट रूप से सुनी जा सकती है। चारों तरफ लाउड स्पीकर जो लगे हुये हैं। इन्हीं
लाउड स्पीकरों के कारण उनकी आवाज़ हमेशा से ही लाउड रही। हमने तो उन्हें जब भी
सुना लाउड ही सुना। उनके सफेद झक्क कुर्ते पायजामें देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे
किसी वर्ग विशेष के युवा संघ पर विशेष कृपा दृष्टि के एवज़ में संघ ने सामूहिक रूप
से उनके दामन पर लगे ....ओ हो हो ... माफ कीजियेगा... उनके धवल वस्त्रों पर लगे एक
एक दाग को उजला बनाने का सफल प्रयास किया है। वो अपनी कृपा दृष्टि हर समय किसी न
किसी पर बराबर रखते हैं।
कृपा दृष्टि का आलम यहाँ तक है कि कृपा पात्रों को, उनके सफेद शुभ्र वस्त्रों पर,
बालों की सफेदी अच्छी नहीं लगी इसलिए जाने क्या जुगत भिड़ाई कि बाल पकें ही नहीं।
कारण बहुत से हो सकते हैं, शायद वे उम्र की सीढि़याँ वे इतनी तेजी से चढ़े कि बालों
को सफेद होने का समय ही नहीं मिल पाया या फिर किसी युवा संगठन से भयभीत होकर बालों
ने पकना ही छोड़ दिया ताकि उनके चेहरे का ओज सर्वदा अमर रहे।
उनकी नजरों में युवा संगठनों का बड़ा महत्व है। वे संगठन के प्रति सम्मान का भाव
रखते हैं। आखिर, नख से लेकर शीश तक पूरी जिम्मेदारी युवा संगठनों के मजबूत कंधों पर
ही तो है। संगठन को चाहे दिशा भ्रम हो या दशा भ्रम उनको इसकी परवाह नहीं होती।
परवाह सिर्फ एक ही होती है कि वे संगठन पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें। आखिर इसी
कृपा दृष्टि के कारण ही तो उनका वर्तमान और भविष्य सुरक्षित होता। दूसरी ओर
भ्रमोत्पादक स्थितियाँ पैदा करते हुये स्वयं भ्रम में न रहना ही उनका विशेष गुण है।
बाकी उनके अन्य सामान्य गुणों में विशेष बात यह है कि उनके आने से पहले उनके आने की
खबर आ जाती है। आसमान में तेज पंखों की गड़गड़ाहट उनके आगमन की सूचना देती है और
जिस स्थान पर उनका पदार्पण होता है, वहाँ मेला-सा लग जाता हैं। फूलमाला की दुकान
लगाने वालों की चाँदी हो जाती है। युवा संगठनों में नई ऊर्जा का संचार इस कदर हो
जाता है कि उन्हें संभालने के लिए पुलिस को समझदारी और सच्चाई के बीच तारतम्य रखते
हुये अपना उत्कृष्ट प्रदर्शन करना होता है। दूर-दूर से युवा संगठन उनका स्वागत करने
के लिये जीप, ट्रैक्टर, बाईक और कभी-कभी बस या ट्रक में भी आ जाते हैं। हर बार
स्वागत ! बार बार स्वागत ! कभी-कभी लगता है कि स्वागत परम्परा को मूर्त रूप प्रदान
करने में उनका ही सबसे बड़ा योगदान है और इससे भी बड़ा योगदान यह है कि वे कभी
अकेले नहीं आते उनके साथ कार्पोरेट जगत का लाव लश्कर हमेशा चलता है। जिनके बलबूते
पर वे युवाओं को सौगात बाँटते हैं और फिर संबोधित भी करते हैं -‘‘आज से तीस बरस
पहले जब मैं यहाँ आया था, तब यहाँ...थम्सअप भी नहीं मिलता था और आज... इसके बाद का
भाषण तो हम सबको याद ही है। पिछले तीस वर्षों से हम और साठ वर्षों से हमारे पिता जी
वही बातें बार बार सुन रहे हैं और उनका थम्ब(अंगूठा) अप ही देख रहे हैं।
अरे रे रे .... कहीं आप गलत तो नहीं समझ बैठे। मैं किसी बहुत बड़े जन- प्रतिनिधि
की बात नहीं कर रहा हूँ। यह तो राष्ट्रीय गणतंत्र विद्यालय के एक प्रतिभाशाली और
होनहार विद्यार्थी की उपलब्धियों का वर्णन है। प्रति पाँच वर्ष में विद्यालय में
पंच-वार्षिक उत्सव आयोजित किया जाता है, जिसके अंतर्गत फैंसी ड्रेस (विविध वेशभूषा)
प्रतियोगिता आप देखते ही आ रहे हैं। विद्यालय के कई विद्यार्थी अलग-अलग स्वांग
रचाकर अपनी प्रस्तुति देते हैं। इन्हीं में से एक वे भी हैं जिनके बारे में वार्षिक
उत्सव कार्यक्रम के संचालक जानकारी प्रदान कर रहे थे और मुझे बतौर निर्णायक यहाँ
हमेशा ही बुलाया जाता है।
इस विद्यालय में एक से बढ़कर एक होनहार विद्यार्थी हैं, पर अव्वल दर्जा तो उन्हें
ही प्राप्त होता है जिनकी कृपा दृष्टि युवा संगठनों पर होती है।
पाँच साल बाद आज, मैं फिर निर्णायक की भूमिका में हूँ। मेरे लिये निर्णय लेना थोड़ा
कठिन होता है क्योंकि मैं ठहरा एक आम आदमी। कहीं किसान, कहीं मजदूर, कहीं व्यापारी,
कहीं नौकरीपेशा। जिसकी जिंदगी ही दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में ही निकल जाती है।
ऐसी स्थिति में रंग-रूप, वेश-भूषा, भाषण-राशन, झण्डा-डंडा, संगठन-यूनियन
वगैरह-वगैरह देखते हुये निर्णय लेना कोई आसान काम नहीं। एक तो यह गंभीर मुद्दा है
दूसरे निर्णय लेना तो हमेशा ही एक कठिन काम होता है।
आम आदमी की इसी कठिनाई को देखते हुए ‘‘निर्णय’’ कृपा दृष्टि के स्वामियों और सेवकों
द्वारा मिलजुलकर, स्वयं प्रतियोगी और संचालक की उत्तम प्रस्तुतिकरण क्षमता के आधार
पर, निर्णायक पर थोप दिया जाता है और थोपे गए के अनुसार निर्णय देना निर्णायक की
मजबूरी हो जाती है। इस तरह राष्ट्रीय गणतंत्र विद्यालय में पाँच वर्षों के लिए वही
विजेता घोषित हो जाता है, जिसके विषय में आपके विचार कुछ ज्यादा ठीक नहीं थे। और
फिर शुरू हो जाता है एक नया सत्र सफेदी के साथ लाउडस्पीकर पर थम्स अप करता हुआ। |