इस सप्ताह-
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अनुभूति
में-
1
रोहित रुसिया, ओम प्रकाश
यती, शैलजा अस्थाना, आकुल और हरिहर झा का रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- नवरात्र के शुभ अवसर पर हमारी शेफ शुचि
द्वारा तैयार- व्रत के फलाहारी व्यंजनों की शृंखला
में इस सप्ताह प्रस्तुत हैं-
कूटू के पकौड़े |
बचपन की
आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में
संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु-
बागबानी का उत्साह।
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सुनो कहानी- छोटे
बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के पाक्षिक स्तंभ में
इस बार प्रस्तुत है कहानी-
पुस्तकालय। |
- रचना और मनोरंजन में |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-२४ का विषय है- दीप जले टल
गए अँधेरे। रचनाएँ अभी भी भेजी जा सकती हैं। विस्तृत
जानकारी के लिये यहाँ देखें
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लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत-
प्रस्तुत है पुराने अंकों
से
९ दिसंबर २००३ को प्रकाशित
भारत से तरुण भटनागर की कहानी—"खिड़की
वाला संसार"।
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वर्ग पहेली-१०५
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
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सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों में बाहरीन से
मंजु मधुकर की कहानी
चन्न चढ़े ते पाणी पीना
‘‘हैल्लो!’’
‘‘हैल्लो, मैं बोल रई गीता।’’
‘‘हाँ-हाँ, बोलो।’’ दीपाली ने उतावली में कहा।
‘‘सुन, पंद्रह की है करवाचौथ। अपनी पिंकी की तो पैल्ली करवाचौथ
है न, तो साड्डे घर ही सब्ब जुड़ेंगे। हमारी तो तू जानती ही है
कि सब सरदार पंजाबियों की ही सोसाइटी है, खूब रौनक होनी है।’’
गीता उत्साह से बोली।
‘‘लेकिन गीता, दिल्ली में तो सब सोलह की ही कर रहे हैं।’’
दीपाली ने गीता की वाणी को ब्रेक लगाया।
‘‘सुहा, कोलकाता में तो बीस बरस से देख रही है कि सभी त्योहार
एक दिन पैल्ले ही होता है और हाँ, पेन-शेन पर्स में रख लेना।
बाद में हाउजी के भी एक-दो राउंड हो जाने है।’’
‘‘अरे हाँ, अबकी तो तेरी बहू के घर से खूब बायना आया होगा।’’
दीपाली ने अपनी सरल सखी को छेड़ते हुए कहा।
आगे-
*
मधु संधु की लघुकथा
अभिसारिका
*
रंगमंच में दिनकर कुमार से जानें
असमिया नाटकों की
विकास यात्रा
*
शिखा वार्ष्णेय का आलेख
न्यू
मीडिया और सामाजिक सरोकार
*
पुनर्पाठ में-
राजेन्द्र तिवारी का संस्मरण
शिमला में घुला निर्मल
* |
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पिछले-सप्ताह-
विजयदशमी के अवसर पर |
१
डॉ. संजीव कुमार से सामयिकी में
रामचरित मानस में वर्णित समाजवाद एवं साम्यवाद
*
रामकृष्ण का आलेख
विजय के वैदिक प्रतीक देवराज इंद्र
*
डॉ. ऋषभदेव शर्मा का
ललित निबंध-
विजय रथ
*
पुनर्पाठ में- पुराने अंकों से
विजय दशमी के संबंधित रचनाएँ
*
विजयदशमी के
अवसर पर
भारत से
शीला इंद्र का संस्मरण-
वे
सुंदर दिन बचपन के
मैं बदहवास सी उस विशाल भीड़ के
सामने खड़ी थी, समझ ही नहीं आरहा था, कि किधर से अन्दर जाऊँ?
कहाँ जाकर बैठूँ? ज़िन्दगी में पहली बार तो राम लीला देखने
का अवसर मिला था, वह भी
इतनी भीड़ के कारण रह जाएगा... तभी औरतों की ओर की उस भीड़ के
बीच में एक लड़की खड़ी हो कर चिल्लाई,‘‘ऐ!... शीला... इधर से आ
जाओ, इधर रास्ता है। मेरी छोटी बहन सुधा और मैं उसके बताए
रास्ते से आगे बढ़े और हमने देखा, कि ज़मीन पर बैठे लोग अपने आप
हमें रास्ता देते गए। और हम दोनों उस लड़की के पास पहुँच गए। वह
हँसी, ‘‘पहचाना नहीं मुझे? मैं कमला... ’’
‘‘हाँ! हाँ! तुम मेरे स्कूल में ही पढ़ती हो न? तुम्हें रोज़ ही
तो देखती हूँ।’’
‘‘हाँ! मैं भी तो देखती हूँ। और तुम्हारा नाम भी जानती हूँ।
तुम छठी कक्षा में पढ़ती हो न? मैं सातवीं में पढ़ती हूँ। आगे- |
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