इस सप्ताह-
|
अनुभूति
में-
पं. रामप्रकाश अनुरागी,-शिवकुमार-पराग,
शेख मोहम्मद कल्याण, रामदरश मिश्र और हंसराज सिंह वर्मा
हंसकल्प
की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हर मौसम में स्वास्थ्य वर्धक, मध्य-पूर्व के
लोकप्रिय सलादों की शृंखला में-
हरा सलाद जिसे
'सलत अरबीया'
या अरबी सलाद कहते हैं। |
बचपन की
आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में
संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु-
शिशु के साथ बाजार की सैर।
|
भारत के अमर शहीदों की गाथाएँ-
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रारंभ पाक्षिक शृंखला के अंतर्गत- इस अंक
में पढें राम प्रसाद बिस्मिल की अमर
कहानी। |
- रचना और मनोरंजन में |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-२३ के नवगीतों का प्रकाशन
पूरा हो चुका है। इस सप्ताह इसकी समीक्षा और नए विषय
की घोषणा होनी है।
|
लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत-
प्रस्तुत है पुराने अंकों से
२४ नवंबर २००३ को प्रकाशित भारत से प्रत्यक्षा की कहानी—"दंश"।
|
वर्ग पहेली-१०२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
|
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
अपनी प्रतिक्रिया
लिखें
/
पढ़ें |
|
साहित्य एवं
संस्कृति में- |
१
समकालीन कहानियों में भारत से
सुधा गोयल की कहानी-
मृत्युपर्व
अम्मा का मर
जाना लगभग तय हो चुका है। अम्मा है अस्सी, पाँच पचासी की। भला
और कितना जिएगी! अपने सामने भरा-पूरा परिवार है। नाती-पोते,
पड़ोते, बेटे-बहुएं। अम्मा-अम्मा कहकर गाहे-ब-गाहे सभी अम्मा के
दर्शन कर जाते हैं। क्या पता कब अम्मा की आँख मुँद जाए और मन
में अम्मा से न मिल पाने का दुख कचोटता ही रहे!
अम्मा जैसे एक तीर्थ हो गई हैं। सब अम्मा के पाँव छूते हैं।
अम्मा अपने झुर्रीदार सख्त चमड़ी जैसे पाँवों को (जिन पर खाल की
मामूली-सी पर्त है) अपनी तार-तार पीली पड़ी सफेद धोती में
छुपाने का असफल-सा प्रयास करती हैं। ऐसे अवसरों पर अपनी
दीर्घायु के कारण अम्मा को अक्सर संकुचित हो जाना पड़ता है।
पोपले मुँह से आशीष निकलने की जगह अपनी जिंदगी की बेबसी पर
उनकी आँखें भर जाती हैं। जुबान तालू से चिपट जाती हैं ऐसा नहीं
कि अम्मा आशीर्वाद देना नहीं जानतीं या
भूल गई हो। कोशिश करने पर बरबस निकल ही पड़ता है।
आगे-
*
जवाहर चौधरी का व्यंग्य
लेओजी लेओजी लेओ बैंक लोन
*
डॉ. राजेन्द्र गौतम से रचना प्रसंग
नवगीत का
सौंदर्यबोध
*
डॉ. प्रेमशंकर का नगरनामा
हम फिदाए लखनऊ
*
पुनर्पाठ में डॉ. गुरुदयाल सिंह प्रदीप
की विज्ञान वार्ता-
जैविक
एवं रासायनिक हथियार |
अभिव्यक्ति समूह
की निःशुल्क सदस्यता लें। |
|
पिछले-सप्ताह- |
१
भगवान वैद्य प्रखर की
लघुकथा- ताली
*
कुमुद शर्मा का आलेख
पीतांबर बड़थ्वाल
*
गोवर्धन यादव के साथ पर्यटन में
धरती पर अजूबा
पातालकोट
*
पुनर्पाठ- जानकी प्रसाद शर्मा का
संस्मरण- मजरूह सुल्तानपुरी
*
समकालीन कहानियों में यू.के. से
तेजेन्द्र शर्मा की कहानी-
सपने मरते नहीं
डिलीवरी की दर्द सहते हुए भी इला
बस एक आवाज़ सुनना चाहती थी – अपने पहले बच्चे के रोने की
आवाज़ ! लगभग अर्धमूर्छित इला ने ध्यान लगा कर सुनने का प्रयास
भी किया। उसकी चेतना उसका साथ छोड़ती महसूस हो रही थी। कमरे
में रौशनी थी मगर उसके लिये बस अंधेरा ही अंधेरा था।... आवाज़
हलक़ से बाहर नहीं आ पा रही थी। पहले से जानती थी कि पुत्र ही
होने वाला है... अल्ट्रासाउण्ड करते हुए डॉक्टर ने बता दिया
था। आमतौर पर लंदन के डॉक्टर पैदा होने वाले शिशु का सेक्स
बताते नहीं हैं। इस समय इला के मन में बस एक ही कामना थी कि वह
अपने पुत्र के रोने की आवाज़ सुन सके। अपनी पहली संतान की
आवाज़ सुनने की चाह कैसी हो सकती है... ! उसके हाथ का दबाव
नीलेश के हाथ पर ढीला होता जा रहा है। प्रसव की पीड़ा के समय
उसने नीलेश के हाथ को कस कर पकड़ लिया था।
आगे- |
अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ |
|