नीलेश रोते हुए स्कूल से अपनी
झोंपड़ी में लौटा तो श्रमिक पिता ने पूछा, ’’क्या हुआ?‘‘
“मैं इस साल भी पास कर दिया गया हूँ।“
“अरे यह तो खुशी की बात है इसमें रोना कैसा अब कौन सी
कक्षा में चले गए?‘‘ शहर से गाँव में आए बाबू ने नीलेश से
पूछा।
“चौथी कक्षा में चला गया होगा। तीसरी में था।“ जवाब नीलेश
के पिता ने दिया वह भी परीक्षा फल सुनकर मायूस हो गया था।
’’आप क्यों मायूस है और नीलेश रो क्यों रहा है?‘‘
’’इसलिए बाबू कि नीलेश को कुछ नहीं आता। पिछले बरस दूसरी
से तीसरी में गया तभी मैंने स्कूल जाकर मास्टर जी से कहा
था कि नीलेश को कुछ नहीं आता इसलिए उसे एक बरस स्कूल दूसरी
में ही रहने दीजिए। लेकिन उन्होंने मेरी एक नहीं मानी और
उसे तीसरी में बिठा दिया। इस बरस फिर पास कर दिया। अब चौथी
में बैठेगा। आप कुछ पूछकर देखिए उससे जोड़-घटाना तो छोड़िए
एक से सौ तक के आँकड़ों की पहचान तक नहीं है।‘‘ इससे पिता
ने हताशा जताई।
’’बाबू ने नीलेश को जाँचा-परखा और यह जान गए कि नीलेश के
पिता की बात सौ फीसदी सही है। अगले दिन बाबू नीलेश को लेकर
स्कूल पहुँच गया। स्कूल के प्रांगण में भव्य कार्यक्रम चल
रहा था। बाबू ने स्कूल के एक कर्मचारी से कहा मैं
मुख्याध्यापक से मिलना चाहता हूँ।‘‘
’’मुख्याध्यापक तो वे बैठे है व्यास पीठ पर। यहाँ आज
विधायक जी और शिक्षा निदेशक पधारे है। इस वक्त
मुख्याध्यापक जी से भेंट तो संभव नहीं है। अलबत्ता, आप भी
बैठ जाइए कार्यक्रम में।‘‘
’’तभी माइक पर घोषणा हुई- ’’पिछले पाँच वर्ष से हमारे
स्कूल का परीक्षा फल शत-प्रतिशत रहा है। इस उपलब्धि के लिए
स्कूल को शिक्षा विभाग की शील्ड प्रदान की जाती है। साथ ही
मुख्याध्यापक समेत स्कूल के समस्त शिक्षकों को विशेष
पुरस्कार देकर सम्मानित किया जा रहा है। मैं माननीय विधायक
जी से अनुरोध करता हूँ कि मुख्याध्यापक जी को शील्ड प्रदान
करके उन्हें सम्मानित करें।‘‘
सब ओर से जोरदार तालियों की आवाज गूँज उठी। बाबू ने एक हाथ
से नीलेश की उँगली धाम रखी थी वह कब छूट गई कब वह भी ताली
बजाने लगा उसे ज्ञात नहीं।
१ अक्तूबर २०१२ |