अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

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अभिव्यक्ति हिंदी पुरस्कार- २०१२ //  तुक कोश  //  शब्दकोश //
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२४. . २०१२

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
दिगंबर नासवा, बल्ली सिंह चीमा, मनोज श्रीवास्तव, ज्योत्सना शर्मा और दीपक वाईकर की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हर मौसम में स्वास्थ्य वर्धक, मध्य-पूर्व के तीन लोकप्रिय सलादों की शृंखला में- पार्सले सलाद जिसे स्थानीय भाषा में तब्बूलेह कहते हैं।

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु- सर्दी के समय

रक्षक फ़ाउंडेशन द्वारा आयोजित
देशभक्ति काव्य प्रतियोगिता
"गौरवगाथा २०१२" में हिस्सा लें।
अधिक जानकारी - गौरवगाथा फ़ेसबुक पर

भारत के अमर शहीदों की गाथाएँ- स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रारंभ इस पाक्षिक शृंखला के अंतर्गत- इस अंक में पढें तात्या टोपे की अमर कहानी।

- रचना और मनोरंजन में

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला-२३ के नवगीतों का प्रकाशन निरंतर जारी है। रचनाएँ अभी भी प्रकाशनार्थ भेजी जा सकती हैं।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है पुराने अंकों से ९ जनवरी २००३ को प्रकाशित भारत से राजेश जैन की कहानी—"प्रोग्रामिंग"।

वर्ग पहेली-१००
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
          कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-


समकालीन कहानियों में सूरीनाम से
भावना सक्सैना की कहानी- खुले सिरों के जोड़

थिर जल पर बारिश की बूंदें गिरती हैं तो बस सतह को ही हिलाती हैं, अंतर जल शांत रहता है। लेकिन टीन की छत पर टप-टप करती ये बूंदें तो अंतर को बींध रहीं हैं और फिर एकत्र होकर परनाले से जो धार बनकर नीचे गिर रही हैं तो बहाये ले जा रही हैं उसे अतीत की ओर.... वह अतीत की ओर रुख करना नहीं चाहती , वह आगे बढ़ना चाहती है, अतीत की परछाइयों से परे... तो क्या आगे बढ़ने के लिए पंद्रह बरस बाद इस शहर में फिर लौट आई है? बारिश के इस शहर में, जहाँ पंद्रह बरस पहले यहाँ की बारिश ने उसे हर दिन अलग अलग तरह से भिगोया, कभी तन को कभी मन को, रिश्तों में भिगोया, दर्द में डुबोया। नहीं वह यहाँ स्वयं नहीं आई नियति उसे यहाँ ले आई है, यदि यहाँ आने के प्रस्ताव को अस्वीकार करती तो अपने प्रगतिवादी विचारों के आगे, स्वयं अपने आगे छोटी हो जाती। समय के साथ उसकी आंतरिक पीड़ा कम तो हो गयी थी किन्तु यह टीस बची थी कि काश उसने उस समय थोड़ा समझदारी व शांति से काम लिया होता तो जीवन का रुख... आगे-
*

सुधीर ओखदे का व्यंग्य
खूबसूरत दुर्घटना
*

सामयिकी में प्रभु जोशी का आलेख
उनकी नजरों से देखेंगे अपना सच

*

रंगमंच में मोतीलाल क्यूम से जानें
कश्मीर- नाट्य लेखन व मंचन
*

पुनर्पाठ- गुरमीत बेदी के साथ
पर्यटन में- भंगाहल का तिलिस्मी संसार

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पिछले-सप्ताह-


गिरीश बख्शी की लघुकथा
सारा झगड़ा खत्म
*

आज सिरहाने
गीत/नवगीत संकलन- सप्तराग

*

प्रौद्योगिकी में श्रीश बेंजवाल से जानें
डिजिटल दुनिया में हिंदी का विकास
*

पुनर्पाठ में- डॉ. रामप्रकाश सक्सेना
का संस्मरण- पुण्य का काम

*

समकालीन कहानियों में कैनेडा से
पंखुरी सिन्हा की कहानी- अर्जुन का दूसरा नाम

पार्थ। अभी भी, कभी-कभी वह आधी रात को, बीच रात को, भयानक अँधेरे में, सुबह होने से पहले, तीन बजे के आसपास चौंककर जागती, उसे टटोलती, जैसे प्यार अंधा हो, तलाशती, पुकारती, खामोशी से। पार्थ। वह कब का जा चुका था। पसीने की कुछ ठंडी बूँदे, एक झीनी सी परत, उसकी बाहों के नीचे तैर आती। यहीं तो सारी लड़ाई थी, पार्थ अब भी प्रिय था, पार्थ बहुत प्रिय था, प्रिय था तो तलाक क्यों? तलाक के बाद प्रिय क्यों ? ये विरोधी खेमे के सवाल थे। करुणा के सवाल थे कि वह इतना मौजूद क्यों था ? कोई प्रिय होकर भी दूर हो सकता है उसके जाने के बाद सबकुछ खत्म क्यों था? कि सबकुछ उसी से क्यों था? कि वही सबकुछ क्यों था ? कि अब कुछ भी पाने के लिए उसे उससे लड़ना क्यों था ? लड़ना नहीं विकराल युद्ध। पार्थ अब भी प्रिय था-सबसे ज्यादा अपनी गैर हाजिरी में। लेकिन उसकी सारी हस्ती उसके होने न होने के दरमियान सिमट गई लगती थी। पार्थ बेशक प्रिय था। आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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