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थिर जल पर
बारिश की बूंदें गिरती हैं तो बस सतह को ही हिलाती हैं, अंतर
जल शांत रहता है। लेकिन टीन की छत पर टप-टप करती ये बूंदें तो
अंतर को बींध रहीं हैं और फिर एकत्र होकर परनाले से जो धार
बनकर नीचे गिर रही हैं तो बहाये ले जा रही हैं उसे अतीत की
ओर.... वह अतीत की ओर रुख करना नहीं
चाहती , वह आगे बढ़ना चाहती है, अतीत की परछाइयों से परे...
तो क्या आगे बढ़ने के लिए पंद्रह बरस बाद इस शहर में फिर
लौट आई है? बारिश के इस शहर में, जहाँ पंद्रह बरस पहले यहाँ की
बारिश ने उसे हर दिन अलग
अलग तरह से भिगोया, कभी तन को कभी मन को, रिश्तों में भिगोया,
दर्द में डुबोया।
नहीं वह यहाँ स्वयं नहीं आई नियति उसे यहाँ ले आई है, यदि यहाँ
आने के प्रस्ताव को अस्वीकार करती तो अपने प्रगतिवादी विचारों
के आगे, स्वयं अपने आगे छोटी हो जाती। समय के साथ उसकी आंतरिक
पीड़ा कम तो हो गयी थी किन्तु यह टीस बची थी कि काश उसने उस समय
थोड़ा समझदारी व शांति से काम लिया होता तो जीवन का रुख कुछ और
हो सकता था, लेकिन वह अपने जीवन से संतुष्ट है क्योंकि वह
जानती है जीवन का सार आगे बढ़ने में है, किन्तु कई बार कुछ सिरे
खुले छूट जाते हैं और पीछे मुड़कर उन खुले सिरों को जोड़ देना
सभी के लिए सुखकर होता है... बस यही विचार था मन में जब यहाँ
आने के लिए स्वीकृति दे दी। परिणाम की कोई परवाह नहीं थी उसे
किन्तु अपनी आंतरिक शांति के लिए उस टीस से मुक्ति पाना चाहती
थी वह। |