अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

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अभिव्यक्ति हिंदी पुरस्कार- २०१२ //  तुक कोश  //  शब्दकोश //
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२७. . २०१२

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
निर्मला साधना,  डॉ. शिवशंकर मिश्र, सुशील जैन, धर्मवीर भारती और डॉ. भारतेन्दु श्रीवास्तव की  रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- अंतर्जाल पर सबसे लोकप्रिय भारतीय पाक-विशेषज्ञ शेफ-शुचि के रसोईघर से शीतल सलादों की शृंखला में- सब्जियों का कचूमर

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु- सीख दाँत साफ करने की

रक्षक फ़ाउंडेशन द्वारा आयोजित
देशभक्ति काव्य प्रतियोगिता
"गौरवगाथा २०१२" में हिस्सा लें।
अधिक जानकारी - गौरवगाथा फ़ेसबुक पर

भारत के अमर शहीदों की गाथाएँ- स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रारंभ इस पाक्षिक शृंखला के अंतर्गत- इस अंक में पढें रानी लक्ष्मीबाई की अमर कहानी।

- रचना और मनोरंजन में

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला-२२ - में प्रकाशित नवगीतों पर समीक्षा प्रकाशित हो गई है। नए विषय की घोषणा सितंबर के प्रथम सप्ताह में होगी।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है पुराने अंकों से १६ मार्च २००३ को प्रकाशित भारत से जयनंदन की कहानी- हीरो

वर्ग पहेली-०९६
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-


समकालीन कहानियों में
अमर गोस्वामी की कहानी कैलेंडर

मेरे कमरे में एक कैलेण्डर था। किसी तानाशाह की तरह दीवार पर अकेले डटा रहता। नये साल पर यह मुझे मिला था। इसे पाने के लिए काफी प्रयास करना पड़ा था। मैंने खाली दीवार पर उसे टाँग दिया। जो भी आता उसकी नजरें उस पर टिक जाती थीं। कैलेण्डर में एक गोरी खड़ी थी। विश्वसुन्दरी की तरह। गोरी के पीछे एक लाल कार थी। तय करना मुश्किल था कि दोनों में ज्यादा खुबसूरत कौन थी। गोरी के सीने और कमर पर कपड़ेनुमा कुछ था। उसका तन तना हुआ था। उसके खुले बदन को देखकर सात्विक विचार संकोच में पड़ जाते थे। लगता था उस कार के कारण ही वह ऐसी दशा में पहुँच गयी थी। हालाँकि गोरी के सारे कपड़े लुट चुके थे, वह सर्वहारा की स्थिति को प्राप्त हो चुकी थी पर उसके चेहरे पर कोई गम नहीं था, उलटे वहाँ पर दम था जो उसकी आँखों में भी कम नहीं था। कुल मिलाकर सबकुछ बड़ा सरगम था। गोरी कैलेण्डर में इस अदा से खड़ी थी कि समझदार भी एकाएक नासमझ बन जाता था। विस्तार से पढ़ें
*

गिरीश पंकज का व्यंग्य
हिट होने के फार्मूले
*

श्यामसुंदर दुबे का ललित निबंध
धूल पर अंकित चरण चिह्न

*

विश्वमोहन तिवारी का आलेख
क्या प्रौद्योगिकी नैतिक रूप से तटस्थ है

*

पुनर्पाठ में अमृता प्रीतम का
संस्मरण- जुल्फिया खानम

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पिछले-सप्ताह-


कर्मजीत सिंह नडाला की
लघुकथा- भूकंप
*

कुन्नुकुषि कृष्ण कुट्टी से रंगचर्चा
नाट्यविधा मलयालम की

*

राजीव रंजन का आलेख
अगर तुम न होते ह्वेनसांग
*

पुनर्पाठ में भावना कुँअर की
श्रद्धांजलि- हृषिदा का फ़िल्म संसार

*

समकालीन कहानियों में भारत से
सतवंत सिंह बावा की कहानी नंगे पाँव

सुगना का जन्म झारखंड के एक अविकिसत गाँव में हुआ था। हालाँकि उसके माँ-बाप बहुत ही गरीबी के दौर से गुजर रहे थे, फिर भी करीबी रिश्तेदारो ने ढे़रों बधाईयाँ देने के साथ सुगना को लक्ष्मी का रूप बताया। सारा दिन जानवरों की तरह मेहनत करने के बावजूद भी सुगना के माँ-बाप अपनी बेटी के लिये दो वक्त का खाना ठीक से नही जुटा पाते थे। सुगना की माँ जब दिन भर मजदूरी करती तो सुगना उसके साथ कंकड़-पत्थरों से कुछ न कुछ खेल खेलती रहती। कंकड़-पत्थरों के बीच खेलते हुए कई बार उसके पैर कभी तीखे काटों और कभी तेज धार वाले पत्थरों से घायल हो जाते थे। जब कभी सुगना को खेलते हुए पैर में चोट लगती तो वो हर बार अपने पिता को अपने नंगे घायल पाँव दिखा कर एक अच्छी सी चप्पल लाकर देने के लिये कहती। मजबूर और लाचार पिता हर बार उसे झूठा दिलासा दे देता कि अब जिस दिन भी अच्छी...  विस्तार से पढ़े

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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