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कहानियाँ

मकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से सतवंत सिंह बावा की कहानी— नंगे पाँव


सुगना का जन्म झारखंड के एक अविकिसत गाँव में हुआ था। हालाँकि उसके माँ-बाप बहुत ही गरीबी के दौर से गुजर रहे थे, फिर भी करीबी रिश्तेदारो ने ढे़रों बधाईयाँ देने के साथ सुगना को लक्ष्मी का रूप बताया। सारा दिन जानवरों की तरह मेहनत करने के बावजूद भी सुगना के माँ-बाप अपनी बेटी के लिये दो वक्त का खाना ठीक से नही जुटा पाते थे।

सुगना की माँ जब दिन भर मजदूरी करती तो सुगना उसके साथ कंकड़-पत्थरों से कुछ न कुछ खेल खेलती रहती। कंकड़-पत्थरों के बीच खेलते हुए कई बार उसके पैर कभी तीखे काटों और कभी तेज धार वाले पत्थरों से घायल हो जाते थे। जब कभी सुगना को खेलते हुए पैर में चोट लगती तो वो हर बार अपने पिता को अपने नंगे घायल पाँव दिखा कर एक अच्छी सी चप्पल लाकर देने के लिये कहती।

मजबूर और लाचार पिता हर बार उसे झूठा दिलासा दे देता कि अब जिस दिन भी अच्छी मजदूरी मिलेगी तो सबसे पहले तुम्हें अच्छी सी चप्पल लेकर दूँगा। लेकिन यह इंतजार दिनों से महीनों और महीनों से सालों में तबदील होता जा रहा था। परंतु सुगना का पिता किसी न किसी मजबूरी के चलते अपनी जान से प्यारी बेटी के लिये चप्पल का जुगाड़ नही कर पा रहा था।

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