इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
गुलाब सिंह, चंद्रभान भारद्वाज, सुशील जैन, कल्पना रामानी और
विनोद कुमार की रचनाएँ। |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
1
प्रसिद्ध लेखकों की चर्चित
कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में भारत से श्रीलाल शुक्ल की कहानी-
इस
उम्र में
व्यंग्य के नाम पर, या सच तो यह
है कि किसी भी विधा के नाम पर पत्र-पत्रिकाओं के लिए जल्दबाजी
में आएँ-बायँ-शायँ लिखने का जो चलन है, उसके अंतर्गत कुछ दिन
पहले मैंने एक निबंध लिखा था। वह एक पाक्षिक पत्रिका में
‘हास्य-व्यंग्य’ के स्तंभ के लिए था। हल्केपन के बावजूद उसे
लिखते-लिखते मैं गंभीर हो गया था (बक़ौल फ़िराक़, ‘जब पी चुके
शराब तो संजीदा हो गए’) यानी, इस निबंध से ‘शायँ’ ग़ायब हो गई
थी, सिर्फ ‘आयँ-बायँ’ बची थी। ‘आयँ-बायँ’ की प्रेरणा शहर के एक
बहुत बड़े दार्शनिक ने दी थी जो उतने ही बड़े कवि और कथाकार भी
थे परंतु वास्तव में प्रेरणा उन्होंने नहीं, उनकी मौत ने दी
थी। वे एक सड़क दुर्घटना में घायल हो गए थे। एक सप्ताह तक
अस्तापल और घर की सेवा अपसेवा के बीच झूलते हुए उनकी मृत्यु हो
गई। उनके बेटे को पता था कि वे ऊंचे दर्जे के विद्वान हैं, पर
उनके प्रशंसकों और मित्रों के नाम का उसे पता न था। इसलिए उसने
एक अखबार के दफ्तर को छोड़कर-जो उतना ही गुमनाम था-दो-चार
गिने-चुने रिश्तेदारों को ही उनके...
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रमेश बतरा की लघुकथा
लोग
*
सुशील सिद्धार्थ का आलेख
व्यंग्य के विलक्षण शिल्पी- श्रीलाल शुक्ल
*
पुनर्पाठ में श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास
राग विराग पर कृष्ण बिहारी
*
समाचारों में
देश-विदेश से
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पिछले सप्ताह- |
1
शिल्पा अग्रवाल का व्यंग्य
श्री गणेश के साक्षात दर्शन
*
आज सिरहाने इंदुजा अवस्थी का
शोधग्रंथ- रामलीला : परंपरा और
शैलियाँ
*
डॉ. पांडुरंग राव का
निबंध- रामायण में स्वयंप्रभा
*
पुनर्पाठ में राजेन्द्र तिवारी का
आलेख-
सिरमौर की बूढ़ी दिवाली
*
समकालीन कहानियों में भारत से
सुमति सक्सेना लाल की कहानी
विस्थापित
आदित्य का फोन आया था...अपनी
दिल्ली की पोस्टिंग से बहुत ख़ुश है वह। काफी सालों तक उत्तर
प्रदेश से दूर प्रांत में रहने के बाद दिल्ली आ गया है...अलीगढ़
से कुछ ही घंटों का तो रास्ता है...फिर अब की से उसे घर बहुत
ही बढ़िया मिला है...वैल मेन्टेन्ड। चाहता है कि दिवाली सब लोग
उसके घर पर मनाएँ। कह रहा था ख़ूब जश्न रहेगा ...पिछले साल हम
लोग दीवाली पर इकट्ठा भी नहीं हो पाए हैं। मुझे भी यह
कार्यक्रम सही लगा था.. इधर कुछ समय से बच्चे यह जमावड़ा अपने
घर पर करने लगे हैं...कभी आदित्य..कभी दिव्या। आदित्य बता रहा
था कि उसने दिव्या और दीपा दी दोनों से बात कर ली है। दिव्या
बहुत खुश है इस प्रोग्राम से। उसका दिल्ली के आस पास की जगह
घूमने का मन है। आदित्य चाहता है कि कम से कम हफ्ते दस दिन का
प्रोग्राम बना लें यह दोनों तो आगरा, मथुरा, भरतपुर, जयपुर
घूमने चला जा सकता है।
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