अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

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३१. १०. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
गुलाब सिंह, चंद्रभान भारद्वाज, सुशील जैन, कल्पना रामानी और विनोद कुमार की रचनाएँ।

कलम-गही-नहिं-हाथ--आदरणीय-श्रीलाल शुक्ल का पार्थिव शरीर अब हमारे बीच नहीं है। लेकिन उनका नाम अनंतकाल तक बीसवी शती की व्यंग्यधारा... आगे-

- घर परिवार में

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- शिशु का ४४वाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- मुँह और गले के कष्टों के लिये सौंफ और मिश्री

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १ नवंबर से १५ नवंबर २०११ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- गूगल प्लस फ़ेसबुक की तरह का एक सामाजिक जालस्थल है जिसे गूगल ने बनाया है। इसका प्रमुख आकर्षण यह है कि ...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-१८, की रचनाओं को अनुभूति के दीपावली विसेषांक में प्रकाशित किया गया है। इस सप्ताह होगी नए विषय की घोषणा। 

शुक्रवार चौपाल- इस शुक्रवार को चौपाल में बहुत महीनों बाद बहुत से लोग जुटे। बहुत से लोगों को देखना अच्छा लगता है। लेकिन... 

वर्ग पहेली-०५३
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

1
प्रसिद्ध लेखकों की चर्चित कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में भारत से श्रीलाल शुक्ल की कहानी- इस उम्र में

व्यंग्य के नाम पर, या सच तो यह है कि किसी भी विधा के नाम पर पत्र-पत्रिकाओं के लिए जल्दबाजी में आएँ-बायँ-शायँ लिखने का जो चलन है, उसके अंतर्गत कुछ दिन पहले मैंने एक निबंध लिखा था। वह एक पाक्षिक पत्रिका में ‘हास्य-व्यंग्य’ के स्तंभ के लिए था। हल्केपन के बावजूद उसे लिखते-लिखते मैं गंभीर हो गया था (बक़ौल फ़िराक़, ‘जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए’) यानी, इस निबंध से ‘शायँ’ ग़ायब हो गई थी, सिर्फ ‘आयँ-बायँ’ बची थी। ‘आयँ-बायँ’ की प्रेरणा शहर के एक बहुत बड़े दार्शनिक ने दी थी जो उतने ही बड़े कवि और कथाकार भी थे परंतु वास्तव में प्रेरणा उन्होंने नहीं, उनकी मौत ने दी थी। वे एक सड़क दुर्घटना में घायल हो गए थे। एक सप्ताह तक अस्तापल और घर की सेवा अपसेवा के बीच झूलते हुए उनकी मृत्यु हो गई। उनके बेटे को पता था कि वे ऊंचे दर्जे के विद्वान हैं, पर उनके प्रशंसकों और मित्रों के नाम का उसे पता न था। इसलिए उसने एक अखबार के दफ्तर को छोड़कर-जो उतना ही गुमनाम था-दो-चार गिने-चुने रिश्तेदारों को ही उनके... विस्तार से पढ़ें...

रमेश बतरा की लघुकथा
लोग
*

सुशील सिद्धार्थ का आलेख
व्यंग्य के विलक्षण शिल्पी- श्रीलाल शुक्

*

पुनर्पाठ में श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास
राग विराग पर कृष्ण बिहारी
*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

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पिछले सप्ताह-

1
शिल्पा अग्रवाल का व्यंग्य
श्री गणेश के साक्षात दर्शन
*

आज सिरहाने इंदुजा अवस्थी का
शोधग्रंथ- रामलीला : परंपरा और शैलियाँ

*

डॉ. पांडुरंग राव का
निबंध- रामायण में स्‍वयंप्रभा
*

पुनर्पाठ में राजेन्द्र तिवारी का
आलेख- सिरमौर की बूढ़ी दिवाली

*

समकालीन कहानियों में भारत से
सुमति सक्सेना लाल की कहानी विस्थापित

आदित्य का फोन आया था...अपनी दिल्ली की पोस्टिंग से बहुत ख़ुश है वह। काफी सालों तक उत्तर प्रदेश से दूर प्रांत में रहने के बाद दिल्ली आ गया है...अलीगढ़ से कुछ ही घंटों का तो रास्ता है...फिर अब की से उसे घर बहुत ही बढ़िया मिला है...वैल मेन्टेन्ड। चाहता है कि दिवाली सब लोग उसके घर पर मनाएँ। कह रहा था ख़ूब जश्न रहेगा ...पिछले साल हम लोग दीवाली पर इकट्ठा भी नहीं हो पाए हैं। मुझे भी यह कार्यक्रम सही लगा था.. इधर कुछ समय से बच्चे यह जमावड़ा अपने घर पर करने लगे हैं...कभी आदित्य..कभी दिव्या। आदित्य बता रहा था कि उसने दिव्या और दीपा दी दोनों से बात कर ली है। दिव्या बहुत खुश है इस प्रोग्राम से। उसका दिल्ली के आस पास की जगह घूमने का मन है। आदित्य चाहता है कि कम से कम हफ्ते दस दिन का प्रोग्राम बना लें यह दोनों तो आगरा, मथुरा, भरतपुर, जयपुर घूमने चला जा सकता है।  विस्तार से पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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