एक
आदमी एक जगह बैठा बैठा अपना काम कर रहा था। कुछ लोग उधर से
निकले, ठिठके, काफी देर तक देखते रहे, फिर उनमें से एक
बोला, 'बताओ साला काम कर रहा है।'
आदमी ने काम करना बंद कर दिया और देखने लगा। दूसरा बोला,
बताओ, साला देख रहा है।
आदमी उठकर खड़ा हो गाया। तीसरे ने कहा, बताओ, साला खड़ा हो
गया।
आदमी ने कुछ बोलने की कोशिश की। चौथा बोला, बताओ, साला बोल
रहा है।
आदमी चुप हो गया तो पाँचवाँ बोला, देखो, साला चुप हो गया।
आदमी अपने घर के अंदर घुस गया। सब चिल्लाए, बताओ, साला घर
में घुस गया। आदमी नहीं निकला, तब तक कुछ और भीड़ जुट गई
थी और लोगों के स्वर में स्वर मिलाकर चिल्लाने लगी थी।
आदमी नहीं निकला। साल भर हो गया। दो साल हो गए। सौ साल हो
गए। हजार साल हो गए। आदमियों के ठट्ठ के ठट्ठ उसके मकान के
सामने जुटते रहे। लोग पत्थर मारते रहे, गालियाँ देते रहे,
ताने कसते रहे, आदमी नहीं निकला।
आखिरकार लोगों ने सोचा कि कि क्यों न दरवाजा तोड़ डाला
जाए। हो सकता है, साला दरवाजा बंद करके काम कर रहा हो।
दरवाजा तोड़ डाला गया, अंदर आदमी की लाश छत से झूल रही थी,
बताओ, साला मर गया। एक आदमी ने कहा और भीड़ वहां से हट गई।
अब सुना है भीड़ किसी अन्य आदमी के घर पर इकट्ठी है।
३१ अक्तूबर २०११ |