कलम गही नहिं हाथ
श्रद्धांजलि...
श्रीलाल शुक्ल
जी का पार्थिव शरीर अब हमारे बीच नहीं है। लेकिन उनका नाम अनंतकाल तक
बीसवी शती की व्यंग्यधारा के कुशल नाविक के रूप में अमर रहेगा।
उन्होंने एक सम्मानित जीवन जिया, सरकार के प्रशासनिक अधिकारी होने का
गौरव प्राप्त किया, नगर के बुद्धिजीवियों में चर्चित बने रहे, पाठकों
में लोकप्रियता प्राप्त की, हर छोटे बड़े साहित्यप्रेमी का सम्मान किया और
शान से इस संसार से विदा ली। साहित्यकार को अभीष्ट
लगभग सभी पुरस्कारों सम्मानों को प्राप्त किया, यहाँ तक कि जाते जाते
ज्ञानपीठ भी उनके दरवाजे पधारा। ऐसे गरिमामय व्यक्तित्व को कुछ
जानेमाने साहित्यकारों ने इस प्रकार याद किया-
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"उन्होंने विषय
एवं शिल्प के धरातल पर ऐसी अनेक चुनौतियाँ उपस्थित की हैं जो
सकारात्मक सृजनशील प्रतियोगिता का मार्ग प्रशस्त करती हैं ।"
-प्रेम जनमेजय
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"शुक्ल जी एक ऐसे
लेखक थे जिन्होंने लोकतंत्र की बहुत गहरी व्याख्या की। उतनी शिद्दत
से कटाक्ष करने वाला लेखक शायद ही अब दुनिया को मिले। वह सही मायने
में एक महान लेखक थे।" -अखिलेश
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"उन्हें अपने समय
की बहुत गहरी समझ थी। शुक्ल को 'राग दरबारी' जैसी कालजयी रचना के
लिए जाना जाता है। इस कृति में उनके धारदार राजनीतिक व्यंग्य ने
उपन्यास विधा को नया कलेवर और एक नई दिशा दी।" - प्रियंवद
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"अपनी विशिष्ट
कथनभंगी, यथार्थ को उद्घाटित करने वाली वक्रोक्तिपूर्ण कथावस्तु और
देश के सामाजिक-राजनीतिक जीवन की विसंगतियों की पहचान की वजह से
'राग दरबारी' की विशिष्टता हमेशा के लिए रेखांकित होती रहेगी। इस
महान कथाकृति के संदर्भ में यथार्थग्राही रचनाधर्मिता की दृष्टि से
वे नई उद्भावनाओं के प्रवर्तक माने जाएँगे।" -मुरली मनोहर प्रसाद
सिंह
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"श्रीलाल जी एक
ऐसे साहित्यकार थे जो बहुत ही अध्ययनशील और मननशील रहे और जिहोंने
अपने उपन्यासों में समाज के हर वर्ग का, हर परिवर्तन का और हर स्तर
का वर्णन किया।" -गोपाल चतुर्वेदी
शुक्ल जी को एक उपन्यासकार व व्यंग्यकार के रूप में याद किया जाता है। कम लोग जानते हैं कि वे कुशल कहानीकार भी थे।
अपने समय से अलग उनकी कहानियाँ व्यंग्य का अनोखा तेवर रखती हैं। उनकी ऐसी चुनी हुई कहानियों को
"दस प्रतिनिधि कहानियाँ- श्रीलाल शुक्ल" नाम
से किताबघर द्वारा प्रकाशित किया गया है। इन दस कहानियों के शीर्षक इस
प्रकार हैं- ‘इस उम्र में',
‘सुखांत, ‘सँपोला’, ‘दि ग्रैंड मोटर ड्राइविंग स्कूल’, ‘शिष्टाचार’,
‘दंगा’, ‘सुरक्षा’, ‘छुट्टियाँ’, ‘यह घर मेरा नहीं’, तथा ‘अपनी पहचान’।
अभिव्यक्ति के
इस अंक में अपने पाठकों के लिये हम इसी संग्रह से उनकी कहानी "इस उम्र
में" प्रकाशित कर रहे हैं। वेब पर अनेक स्थानों पर प्रकाशित उनकी इस
रचना का अंत गायब है। अभिव्यक्ति में हमने इसे खोजकर पूरा करने की
कोशिश की है।
आज जब शुक्ल जी हमारे बीच नहीं हैं हमारा कर्तव्य है कि हम उनकी संचित
धरोहर को संजोएँ और उनकी समृद्ध परंपरा को उस निष्ठा से आगे बढ़ाएँ जिसकी अपेक्षा हर पुरानी पीढी, नई पीढी से
करती है। यही एक कर्मठ रचनाकार के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। ईश्वर उनकी
आत्मा को शांति प्रदान करे और उनके परिवार व मित्रों को उनका बिछोह
सहने की शक्ति। अभिव्यक्ति परिवार की ओर से वरिष्ठ रचनाकार को भावभीनी
श्रद्धांजलि के साथ,
पूर्णिमा वर्मन
३१ अक्तूबर २०११
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