इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
विजय किशोर मानव,
गौतम सचदेव, नवीन चंद्र लोहानी, मीनाक्षी धन्वंतरि और
अमिता दुबे की रचनाएँ। |
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साहित्य व संस्कृति में-
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1
समकालीन कहानियों में भारत से
जयनंदन की कहानी
बदरीमैया
रात जब अपना अंचरा ओढ़ा देती है धरती को तो नैका धान की पहली
गमक से सगरी घर-दुआर एकाएक गमगमा जाता है। आज महीनों बाद बदरी
मैया को लगता है कि रात लोरी गा रही है और एक गमक लुटा रही है।
जबकि रोज ऐसा लगता था कि रात सिसक-सिसककर विलाप कर रही है और
मुर्दा जलाने जैसी बदबू फैला रही है।
बगल की खाट में बबनी और उसके बेटे सोनू को बेखबर सोया देख मैया
का हर गम गलत हो जाता है। आज शाम ही बबनी आयी है। मैया अपनी
खाट छोड़कर जगह न रहने पर भी बबनी की बगल में तंगी से लेट जाती
है। उसका मुँह अपनी ओर करके उसे छाती से चिपटा लेती है, जैसे
वह कोई दूधमुँही बच्ची हो। फिर उसके बदन को अपने हाथ से सहलाने
लगती है। उसे महसूस होता है कि बबनी की देह बहुत खुरदरी हो गयी
है। लगता है बेचारी को तेल भी मयस्सर नहीं होता। वह उठकर मलिया
में तेल लाती है और उसके गोड़ आदि में लगाने लगती है। बबनी की
नींद उचट जाती है। वह आँखें मल-मलकर भौंचक देखती है कि एक साठ
बरस की बूढ़ी मैया अपनी छब्बीस बरस की जवान बेटी को तेल लगा रही
है।
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दामोदर दीक्षित का व्यंग्य
धूर्तराज का पुनराभिषेक
*
भक्तदर्शन श्रीवास्तव से जानें
भूगर्भ नदी हमजा
के विषय में
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पूर्णिमा वर्मन का आलेख
डाक-टिकट
और पंचतंत्र की कहानियाँ
*
पुनर्पाठ में पर्यटक की कलम से
रोमांचक रोमानिया |
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पिछले
सप्ताह- |
1
सुरेश यादव की लघुकथा
करवाचौथ
*
शशिपाधा का संस्मरण
विजय स्मारिका
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रंगमंच में सूर्यकांत जोशी का आलेख
'त्रियात्र'
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गोवा का अनोखा लोकनाट्य
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पुनर्पाठ में रति सक्सेना से सुनें
आस की कथा प्यास की व्यथा
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समकालीन कहानियों में भारत से
अमिता नीरव की कहानी
बोनसाई
ट्रेन निकल गई और प्लेटफॉर्म
बहुत हद तक खाली हो गया...सुमि को लगा कि एक बंधन के खुल जाने
से उसकी जिंदगी की पोटली खुलकर बिखर रही है... वह एकाएक
निरुद्देश्य...निरुपाय और निराश्रित हो आई...रेल गुजर जाने के
बाद भी वह वहीं रुकी रह गई...वह दो बार प्लेटफॉर्म के अंतिम
सिरे तक होकर आ चुकी थी। घर जैसी किसी भावना का सिरा ही पकड़
में नहीं आ पा रहा है। यूँ लग रहा है उसे जैसे वह बिना किसी
तैयारी के युद्ध में ढ़केली गई है। आदत की लकड़ी के तड़ाक से
टुकड़े हो चुके हैं और एक आकारहीन, खुरदुरा सा सिरा निकल आया था।
मेधा के बिना उसकी आत्मा सूनी हो आई थी। मेधा- उसकी बेटी, पति
के असमय दिवंगत हो जाने से उसके जीवन में मेधा के सिवा अब कुछ
न रह गया था।
वह प्लेटफॉर्म पर बहुत देर तक बैठी रही। मुम्बई जाने वाली
ट्रेन के निकल जाने के बाद स्टेशन की भीड़ छँट चुकी थी।
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