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'त्रियात्र' : गोवा का अनोखा लोकनाट्य
-सूर्यकांत
जोशी
भौगोलिक दृष्टि से यद्यपि गोवा भारत का सबसे छोटा
राज्य है, तो भी सांस्कृतिक विशेषताओं से यह बहुत ही
समृद्ध है। यहाँ भारतीय और पाश्चिमात्य संस्कृतियों
का खूबसूरत मिलाप हुआ है। गोवा के लोकजीवन में नाट्य
कला का एक विशेष स्थान है। गोमांतकीय लोकनाट्य के
क्षेत्र में अलग-अलग प्रकृति घटक, लोकशैलियों का
अंतर्भाव हुआ है। मुख्य रूप से यहाँ नकाबों का उपयोग
करके प्रस्तुत किया जानेवाला 'पेरणी जागर' दशावतार के
विषय पर आधारित 'काला', रामायण की कथाओं पर आधारित
'रणमाले' और सामाजिक विषयों पर आधारित 'गावड़ा जागरण'
- ऐसे चार प्रकृति के लोकनाट्य प्रकार देखने को मिलते
हैं। इसके अलावा लोकनाट्य की परिभाषा से जरा हटकर
किंतु प्रस्तुतीकरण के हिसाब से तथा यहाँ के लोकजीवन
के साथ समन्वय
रखने वाला 'तियात्र' नाम का लोकनाट्य प्रकार यहाँ
मशहूर है।
'तियात्र' नाट्यप्रकार गोमांतकीय ख्रिस्ती लोकजीवन के
मनोरंजन का एक साधन है। 'तियात्र' पूर्णरूप से गद्य
नाटक नहीं है, फिर भी यह गोवा प्रदेश के रंगमंच का
अविभाज्य अंग बन गया है। इसमें गाए जाने वाले गीत और
नाटक की कहानी का एक दूसरे से कोई संबंध नहीं होता।
ऐसा माना जाता है कि इटालियन आपेरा और लोकनाट्य
'गावड़ा जागर' इन दोनों के मिलाप से इस नाट्य प्रकार
की र्निमिती हुई है। ऐसे अलग किस्म के लोकनाट्य का
जन्म करीब सौ साल पहले सन १८९२ में मुंबई में हुआ।
'इटालियन भुरगो' इस नाम से तियात्र का प्रथम सादरीकरण
लुकाझिन रिबेरो ने मुंबई के न्यू आल्फ्रेड थियेटर
में किया था। अगस्तिन फर्नांडिस नाम के उस समय के
मशहूर रंगकर्मी ने 'तियात्र' को लोकप्रिय बनाने
में बहुत बड़ा योगदान
दिया। इसके बाद बहुत कठिनाइयों से गुजरते हुए आज
तियात्र, गोवा के प्रादेशिक रंगमंच का एक हिस्सा बन
गया है।
'खेल तियात्र' और 'तियात्र' ये तियात्र के दो उप
प्रकार हैं। दोनों में प्रस्तुतिकरण के अलावा ज्यादा
कोई फर्क नहीं है। 'खेल तियात्र' पुराना है और मराठी
रंगभूमि के संगीत नाटक से मिलता जुलता है। इसमें गाने
ज्यादा होते थे और परिकथा, अमानवी शक्ति, अद्भुत
विषयों पर कथाएँ प्रस्तुत की जाती थी। इसमें मुद्रा
अभिनय से शारीरिक अभिनय को ज्यादा महत्व दिया जाता
था। लोगों का मनोरंजन करना इसका मुख्य उद्देश्य था।
जैसे जैसे समय बीतता गया, 'खेळ तियात्र' पीछे पड़ता
गया और तियात्र का आज का प्रकट रूप उभरकर सामने आ गया।
'खेळ तियात्र' का सादरीकरण आज भी गोवा के सासष्टी
तालुका में कई जगहों पर किया जा रहा है।
तियात्र पाँच, छ: या सात खंडों में बँटा होता है। हर
एक खंड को 'पड्डो' कहा जाता है। प्रत्येक 'पड्डो' में
एक कथा/कहानी होती है। दूसरे नाटकों की तरह सुख, दु:ख,
हँसी, रोने जैसी मानवी भावनाओं का प्रस्तुतीकरण इसमें
होता है। दो पड्डों के बीच में तीन-चार गीत होते हैं
जिनको 'कातार' कहते हैं। ये गाने ज्यादातर समूह में
गाए जाते हैं। अगर दो गायक इसे गाते हैं तो उसे 'दुवो'
या 'दुयेट' कहा जाता है। तीन या चार गायक जब मिलक गाते
हैं तो उसे 'त्रियो' या 'क्वार्टेट' कहते
हैं।
साथ में जो संगीत बजता है उसमें क्लैरेनेट, ट्रंपेट
ड्रम जैसे पाश्चिमात्य वाद्यों का उपयोग किया जाता
है। तियात्र में प्रॉम्पटर की सहायता भी ली जाती है।
तियात्र के कथासूत्र में सामाजिक विषयों पर
उपहासात्मक चर्चा की जाती है।
कलाकार अपनी भूमिका से बाहर आ कर गीत गाने में शामिल
हो जाता है और गीत समाप्त होने पर पुन: अपनी भूमिका
में घुलमिल जाता है। तियात्र यथार्थवादी होता है और
सहजता तथा सीधापन इसके विशेष पहलू हैं। ऐसा अनोखा
'तियात्र' गोवा के ख्रिस्ती लोक जीवन का एक
महत्वपूर्ण अंग है और कोंकणी भाषा में रंजन का
लोकप्रिकय साधन है।
१०
अक्तूबर २०११ |