ट्रेन निकल गई और
प्लेटफॉर्म बहुत हद तक खाली हो गया...सुमि को लगा कि एक बंधन
के खुल जाने से उसकी जिंदगी की पोटली खुलकर बिखर रही है... वह
एकाएक निरुद्देश्य...निरुपाय और निराश्रित हो आई...रेल गुजर
जाने के बाद भी वह वहीं रुकी रह गई...वह दो बार प्लेटफॉर्म के
अंतिम सिरे तक होकर आ चुकी थी। घर जैसी किसी भावना का सिरा ही
पकड़ में नहीं आ पा रहा है। यूँ लग रहा है उसे जैसे वह बिना
किसी तैयारी के युद्ध में ढकेली गई है। आदत की लकड़ी के तड़ाक
से टुकड़े हो चुके हैं और एक आकारहीन, खुरदुरा सा सिरा निकल आया
था। मेधा के बिना उसकी आत्मा सूनी हो आई थी। मेधा- उसकी बेटी,
पति के असमय दिवंगत हो जाने से उसके जीवन में मेधा के सिवा अब
कुछ न रह गया था।
वह प्लेटफॉर्म पर बहुत देर तक बैठी रही। मुम्बई जाने वाली
ट्रेन के निकल जाने के बाद स्टेशन की भीड़ छँट चुकी थी।
इक्का-दुक्का यात्री के अलावा ठेले वाले, रेलवे के स्टॉफ के
लोगों के साथ बड़ा और खुला सा स्टेशन और खुल गया। पता नहीं वह
कितनी देर तक वहाँ बैठी रही और वहीं रहती यदि लीना का फोन उसे
नहीं आता तो?
लीना सुमि के बुटीक की
मैनेजर है। पूछ रही थी कि वह कब पहुँच रही है? सुमन ने कह दिया
कि वह नहीं आ रही है और लीना चाहे तो वह भी घर चली जाए। वह घर
पहुँची तो पौने सात बज रहे थे। |