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प्रकृति और पर्यावरण

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भूगर्भ नदी हमजा
-भक्त दर्शन श्रीवास्तव


चित्र में डॉ. मन्नथल वलिया हमजा


लातिन अमेरिका के कई देशों से होकर बहने वाली दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में शामिल अमेजन नदी की सतह से लगभग १३ हजार फुट नीचे एक और विशाल जलधारा बह रही है। इस बात की सूचना डॉ मन्नथल वलिया हमजा ने १७ अगस्त २०११ को रियो डि जेनेरियो में आयोजित 'इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ द ब्राजीलियन सोसायटी आफ जियोग्राफ़िक्स' में दी। डॉ. हमजा अपनी टीम के साथ पिछले ४० वर्षों से भी अधिक समय से रियो डि जेनेरियो की राष्ट्रीय वेधशाला में इस क्षेत्र के बारे में अनुसंधान कर रहे हैं। भारतीय मूल के भूगर्भ वैज्ञानिक डॉ. वलिया हमजा के नेतृत्व में खोजी गई इस नदी का नाम उन्हीं के नाम पर 'हमजा' रखा है।

डॉ. हमजा ने बताया कि सरकारी तेल कंपनी 'पेट्रोब्रास' ने इस क्षेत्र में १९७० के दशक में तेल के २४२ कुएँ खोदे थे जिनके तापमान में काफी विभिन्नता थी। इसी के आधार पर वैज्ञानिकों के दल ने इस क्षेत्र में जांच की जिसमें अमेजन नदी के ठीक नीचे लगभग १३ हजार फुट (लगभग तीन से चार किलोमीटर) की गहराई पर एक विशाल जलधारा का पता चला। वेधशाला के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस भूमिगत नदी की लंबाई अमेजन नदी के लगभग बराबर यानी छह हजार किलोमीटर है। वैज्ञानिकों के अनुमान के मुताबिक इस नदी में प्रति सेकंड तीन हजार घन मीटर पानी बहता है। यह नदी दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप की सबसे बड़ी नहीं अमेजन की तरह एंडीज पर्वत माला से निकलकर पश्चिम से पूर्व की ओर अटलांटिक महासागर में गिरती है। ऐसा माना जा रहा है कि इस भूमिगत नदी के कारण ही अमेजन नदी के मुहाने पर पानी अपेक्षाकृत कम खारा है।

विज्ञान ने हमें बताया है कि समुद्र के भीतर भी पानी, पहाड़, जीव-जंतुओं और वनस्पति का अनोखा संसार है। मगर जमीन के नीचे नदियाँ बहती होंगी और सागर उद्वेलित होते होंगे, यह अजीब बात है। सुदूर अंतरिक्ष में नये नये तारों, ग्रहों, ब्लैकहोलों और आकाशगंगाओं की खोज करने वाला मानव अपनी पृथ्वी के बारे में कितना कम जानता है। जीव जंतुओं, और वनस्पतियों की प्रजातियों की खोज प्रतिदिन होती रहती है फिर भी ऐसा माना जा सकता है कि उसके एक छोटे से अंश के बारे में ही हम अब तक जान पाये हैं।

भौगोलिक रूप से यह एक असाधारण बात है कि अमेजन के लगभग लगभग समानान्तर पृथ्वी के भीतर भी उतनी ही विराट नदी बह रही है, यानी ब्राजील में हमारी धरती की क्रस्ट में दो विभिन्न स्तरों पर बहती दो नदियों की एक प्रणाली है। अमेजन नदी जहॉ एक किलोमीटर से सौ किलोमीटर तक चौड़ी है। वहॉ हमजा नदी की चौढाई दो सौ किलोमीटर से चार सौ किलोमीटर तक है। मगर अमेजन की तुलना में हमजा कहीं कम वेग से बहती है। अमेजन का वेग है पँच मीटर प्रति सेकण्ड, जबकि हमजा का वेग है एक मिलीमीटर प्रति सेकण्ड। हमजा नदी के अस्तित्व का पता तब चला जब तेल के २४१ निष्क्रिय कुओं में गहराई के विभिन्न स्तरों पर तापमान में असामान्य उतार चढाव देख गया। दूसरी ओर इसके पूर्व भूमिगत सागर का पता सन २००७ में तब चला था, जब कुछ सीलन भरे क्षेत्रों के कारण भूकंपनीय तरंगो के धीमा पड़ने पर उन इलाकों में जाँच की गई। यह जल राशि इण्डोनेशिया से लेकर रूस तक सात सौ किलोमीटर से लेकर चौदह सौ किलोमीटर की गहराई में फैली है। इसे भूमिगत सागर का नाम दिया गया।

पानी की इतनी विराट जलराशि धरती के भीतर किस प्रकार मौजूद है, अपने आप में विस्मयकारी व चौंकाने वाली जानकारी है। सभी जानते हैं कि पृथ्वी के नीचे लावा और आग भी है। आग, पानी और विराट चट्टानों के बीच पता नहीं कैसे संतुलन बना रहता होगा। सामान्य समझ से यह कहा जा सकता है कि धरती में इतनी गहराई पर पानी ऊपर की तरफ जोर मारता होगा। आग के ताप व पानी से भाप बनती होगी और बाहर निकलने का रास्ता तलाश करती होगी, मगर वैज्ञानिकों की व्याख्या है कि पूर्वी प्रशांत महासागरीय रिम के साथ-साथ जरूर कुछ असामान्य स्थितियाँ या कारण है कि वहाँ नमी जस की तस बनी रहती है। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि प्रशांत महासागर की तली धरती की जिस प्लेट पर स्थित है, वह प्लेटों की टकराहट में दबकर कांटिनेंटल प्लेट के नीचे आ गई होगी और इस तरह यह भूमिगत सागर बना होगा। हमजा नदी उस इलाके के भूगोल के कारण बनी होगी, जहाँ चट्टानों से रिसकर पानी जमीन के नीचे पहुँचता होगा। फिर अमेजन नदी के बेसिन की ऊपरी सीमा की संरचना चूने के पत्थरों वाली है, जिसके कारण भी पानी नीचे पहुँचता होगा। नीचे के चित्र में पतली हरी धारी अमेजान की और मोटी धारा हमजा की दिखाई गई है।

आज का मानव पानी की कदर नहीं कर रहा है, वह उसे उजाड़ रहा है। इस बात को समझ कर भी नासमझ बन रहा है कि पानी के बिना जीवन संभव नहीं है। इसलिये अनेक ग्रहों पर पानी हेतु शोध कर रहा है। धरती के भीतर पानी तलाशने की कोशिश कर रहा है। दूसरी ओर आज आम आदमी ने नदियों को तबाह कर डाला है। कई नदियाँ नालों में बदल चुकी हैं। कई नदियाँ केवल बरसात में ही नजर आती हैं। धरती के नीचे नदी व सागर की खोज ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि ईश्वर अपनी दयालुता अभी भी बनाये हुए हैं। प्रकृति को बचाने के लिए हमसे जो अच्छा बन सके अवश्य करें।

१७ अक्तूबर २०११

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