अक्षय
और रजनी के बीच वैवाहिक सम्बंधों में रिक्तता का सूत्रपात
जल्दी ही हो गया था। अक्षय ने रजनी की परवाह कम कर दी,
परंतु बदले में रजनी ने सेवा और परवाह कभी नहीं छोड़ी।
अपने जीवन के तमाम विवाद और उदासीन पलों को परे झटक कर
रजनी हर साल करवा चौथ के व्रत को अपने उताह और आस्था के
रंग में रंगती रही। आसपास की सभी महिलाओं ने हमेशा इस बात
में रजनी का लोहा माना। सभी का मानना था कि अक्षय ने तलाक
के पचास तरीके अपनाए और रजनी ने अपने मृदु व्यवहार के बल
पर सभी इरादों की हवा निकाल दी।
अक्षय और सीमा के संबंध जब सीमाएँ तोडने लगे तो सहज और
मर्यादित विद्रोह कर रजनी ने धैर्य का परिचय दिया और समाज
के सामने ढाई साल पहले गंगाजल हाथ में उठाकर अक्षय ने सीमा
से अपने संबंधों की पूर्ण समाप्ति की जिस दृढ़ता से घोषणा
की, वह पति-पत्नी के जीवन में गंगा की धारा बनकर बहने लगी।
इन दो वर्षों में करवा चौथ के रंग और भी गाढ़े चटक हुए।
आज सातवीं करवाचौथ। रजनी सुबह से ही खिली खिली धूप-सी घर
आँगन में उत्साह बिखेरती और रिश्तों की गुनगुनाहट हवा में
घोलती बस मगन...
अक्षय के फोन की घंटी देर तक बजती रही और वह नहाकर नहीं
निकला तो रजनी ने फोन उठा लिया- 'तुम्हारी सीमा, अक्षय, कल
तुमने फोन पर जो प्यार के दो बोल बोले... मेरी करवाचौथ
प्यार के उसी समंदर में डुबकी लगा रही है...' सीमा की आवाज
को रजनी और अधिक सह न सकी। फोन काटकर वहीं पटक दिया। एक
ज्वालामुखी उसके भीतर फटा और नस नाड़ियों विलीन हो गया। इस
बार न आँखों में आँसू और न चेहरे पर आक्रोश।
अक्षय के बाहर आते ही रजनी ने थाली निर्जीव हाथों से लगा
दी। दूसरी थाली जब लगाकर लायी तो हैरानी से अक्षय न पूछा,
'यह किसके लिये? तुम्हारा तो व्रत है?'
उत्तर देने से पहले ही आस पड़ोस की महिलाएँ दरवाज़ा खोलकर
अंदर आ गयीं। रजनी जानती थी, उसे ही व्रत कथा पढ़नी थी।
'अरे रजनी यह क्या? तुम खाना खा रही हो... और करवा चौथ का
व्रत ...चाँद का तो इंतज़ार किया होता।' सब एक साथ बोल
पड़ीं।
पराठे को तोड़ते हुए रजनी ने उन सभी को बैठने के लिये कहा
और फूट पड़ी, 'मेरा चाँद निकलते ही डूब गया। सोई हुई भूख
जाग गई है। आस्था... विश्वास... धैर्य... संयम सभी की सारी
जंजीरे कच्चे धागे सी टूट जाती हैं... भूख तब अनियंत्रित
हो जाती है। किसी के काबू में नहीं रहती है भूख। मेरे भीतर
पहली बार जागी है- सोचती हूँ मैं भी मिटा डालूँ अपनी भूख।'
रजनी गहन सोच में डूब गई और अक्षय आश्चर्य की गहरी खाई में
जा गिरा। सभी महिलाएँ किंकर्तव्य विमूढ़ और अवाक् जेसै
पत्थर की मूर्तियाँ।
१० अक्तूबर २०११ |