वार्तालाप
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२. ५. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
शशि पाधा, वीनस केसरी, अशोक कुमार पाण्डेय, रामदरश मिश्र और सुकीर्ति गुप्ता की रचनाएँ।

- घर परिवार में

मसालों का महाकाव्य- देश-विदेश में लोकप्रिय चटपटे मिश्रणों के बारे में प्रमाणिक जानकारी दे रहे हैं शेफ प्रफुल्ल श्रीवास्तव। इस अंक में- ज़ातर

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- शिशु का अठारहवाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- माइग्रेन और सिरदर्द के लिये सेब

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- हमारे कंप्यूटर पर बहुत सारे प्रोग्राम अपनी अस्थायी फाईलें बना लेते हैं जिनकी न तो हमें ज़रुरत होती है और जिनकी वजह से...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- १५ नवगीतों का प्रकाशन पूरा हो चुका है। इस सप्ताह नए विषय की घोषणा हो जाएगी।

वर्ग पहेली-०२७
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपाल- के साहित्य सत्र में पिछले कुछ दिनों से इसमें हाइकु कार्यशालाएँ चलती रही हैं।... इस बार यहीं से काम आगे बढ़ा। आगे पढ़ें...

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य और संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में भारत से
इंदिरा दांगी की कहानी- करिश्मा ब्यूटी पार्लर

बड़ी चर्चा है, कॉलोनी में नया ब्यूटी पार्लर खुला है। पिछले एक दशक से आसपास की चार कॉलोनियों सहित इस कॉलोनी पर एकछत्र राज करने वाले भव्य ब्यूटी पार्लर की गर्वीली संचालिका राजेश्वरी इन दिनों अपनी पुरानी ग्राहकों के मुँह से भी बस उसी पार्लर की चर्चाएँ सुन रही हैं। भव्य ब्यूटी पार्लर को ग्राहकों की कमी नहीं थी, पर यों ग्राहकों का घटना राजेश्वरी को ईर्ष्या और चिड़चिड़ाहट से भर रहा था। राजेश्वरी के पति व्यवसायी थे। आमदनी कम न थी और राजेश्वरी को घर में करने को कोई काम भी न था सो लगभग दस साल पहले मकान के निचले, खाली पड़े हिस्से में ब्यूटी पार्लर खोला लिया और अब इतने वर्षों बाद उनका ब्यूटी पार्लर इतना प्रतिष्ठित हो चुका था कि काम सम्हालने के लिये उन्होनें दो सहायिकाएँ रख लीं थीं। वे संचालन भर करतीं, पार्लर सहायिकाएँ चलातीं। राजेश्वरी इन दिनों उखड़ी-उखड़ी-सी रहती हैं। एक दिन पति ने प्यार से पूछा, क्या बात है राजो, इन दिनों कुछ उदास-सी दिखती हो ? पूरी कहानी पढ़ें...
*

रतनचंद जैन का प्रेरक प्रसंग
स्वर्ग - नर्क की पात्रता
*

मेधा सेठ के शब्दों में
मराठी रंगमंच का विकास

*

डॉ. मनोज मिश्र की दृष्टि से
भारत का स्वास्थ्य पर्यटन और ओबामा की चिंता
*

पुनर्पाठ में दो पल के अंतर्गत
अश्विन गांधी का आलेख पहली रात

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पिछले सप्ताह-

1
गिरीश बिल्लौरे मुकुल का व्यंग्य
उफ़ ये चुगलखोरियाँ
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डॉ चैत्यन्य सक्सेना का आलेख
ऐतिहासिक बूँदी की सांस्कृतिक यात्रा

*

पुनर्पाठ में अर्बुदा ओहरी की कलम से
एक दिन माँ के लिये
*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

*

समकालीन कहानियों में भारत से
अभिज्ञात की कहानी- सोने की आरामकुर्सी

रोज़ की तरह सुरेश आठ घंटे की क्लर्की की ड्यूटी बजाने के बाद घर लौटा था। वह एक निज़ी जूट मिल में कार्यरत था, जहाँ मज़दूरों और बाबुओं के वेतन में कोई खास फर्क नहीं था। प्रबंधन के लिए सभी नौकर एक जैसे थे और वेतन भी एक जैसा। भले वे अलग-अलग काम जानते और करते हों। इसलिए मज़दूर, झाड़ूदार, दरबान और क्लर्क सबके वेतन में लगभग समानता थी। सुरेश का जीवन-स्तर भी मजदूरों से कुछ भिन्न नहीं था। उसके पिता को अफसोस था कि बेमतलब ही उन्होंने बेटे को एमए तक पढ़ाया। यदि मैट्रिक के बाद ही दरबानी के काम पर लगा दिया होता आज उसका वेतन कुछ ज्यादा ही होता। खैर पिता तो अब रहे नहीं, सुरेश एक बेटी, एक बेटे और पत्नी के साथ एक झोपड़पट्टीनुमा मकान में अपना जीवन बसर कर रहा था। यह डेढ़ कट्ठा जमीन भी उसके पिता ने जैसे-तैसे खरीदी थी।  पूरी कहानी पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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